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अर्दली के नाम पर अंधेरगर्दी! अर्दली के रूप में जाया हो रहे हैं ३०० पुलिसकर्मी, आजादी का अमृतकाल मना रहे देश में अब भी बरकरार है अर्दली प्रथा

एक ओर जहां अंग्रेजों की गुलामी की याद दिलानेवाली निशानियों को मिटाने के प्रयास में ‘इंडिया’ का नाम बदलकर ‘भारत’ करने की सियासी महाभारत तेज है, वहीं अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही पुलिस विभाग में अर्दली रखने की प्रथा अब भी बरकरार है। हाल ही में सेवानिवृत्त सहायक पुलिस आयुक्त राजेंद्र त्रिवेदी ने इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल की है। इसलिए एक बार फिर अर्दली रखने का मुद्दा सुर्खियों में छाने को तैयार है।
मुंह चिढ़ाते हैं आंकड़े
मुंबई जैसे घनी आबादीवाले शहर में जहां लोगों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त पुलिसबल का अभाव है, वहीं मुंबई में १३० आईपीएस अधिकारियों के घरों पर लगभग ३०० पुलिस कांस्टेबल अर्दली के रूप में तैनात हैं और राज्य सरकार उन पर हर साल ३० करोड़ रुपए से अधिक खर्च करती है। इसी साल जुलाई में गृह विभाग की जो रिपोर्ट सामने आई थी, उसके अनुसार, मुंबई में ४० हजार ६२३ कर्मियों का स्वीकृत पुलिसबल है, जिसमें से कांस्टेबल और ड्राइवरों के लगभग १० हजार पद खाली हैं, जबकि चल रहे भर्ती अभियान में कांस्टेबलों और ९९४ ड्राइवरों के ७,०७६ पद भरे जाएंगे, तब भी लगभग ३,००० कांस्टेबलों की कमी होगी।
पुलिसकर्मी हैं या अधिकारियों के नौकर?
देखा जाए तो अर्दली के रूप में तैनात पुलिसकर्मियों को आम लोगों को सुरक्षा प्रदान करने और अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है, लेकिन बतौर अर्दली वे ड्राइवर बनकर अपने अधिकारियों के निजी वाहन चला रहे हैं। अपने वरिष्ठ अधिकारियों के लिए रोजमर्रा के जरूरी सामानों की खरीदारी कर रहे हैं। अधिकारियों के बच्चों को सुरक्षित स्कूल तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
अर्दली के इर्द-गिर्द अफसर की दुनिया
भले ही सरकारी नियम अधिकारियों के निजी कामकाज के लिए पुलिसकर्मियों की तैनाती पर रोक लगाते हैं, लेकिन पुलिस महकमे में आलम यह है कि अफसर तक पहुंचने का हर रास्ता अर्दली से होकर गुजरता है। कई पुलिस थानों में सीनियर इंस्पेक्टर के अर्दली को इलाके में घूम-घूमकर अपने साहब के लिए आर्थिक रसद इकट्ठा करते आसानी से देखा जा सकता है।
हाई कोर्ट पहुंचा मामला
सेवानिवृत्त सहायक पुलिस आयुक्त राजेंद्र त्रिवेदी ने इस अवैध प्रथा के खिलाफ हाल ही में वकील माधवी अय्यप्पन के माध्यम से बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ की खंडपीठ के समक्ष एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की है। त्रिवेदी ने दावा किया है कि साल २०२० में सूचना का अधिकार (आरटीआई) के जरिए अर्दली से संबंधित हासिल की गई जानकारी के आधार पर उन्होंने यह पीआईएल दायर की है।
इस प्रथा का विरोध करता है राष्ट्रीय पुलिस आयोग
राष्ट्रीय पुलिस आयोग अंग्रेजों के शासनकाल में शुरू हुई इस अर्दली प्रथा का पुरजोर विरोध करता है। आयोग की राय को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने इसे खत्म करने का आदेश जारी किया, लेकिन यह सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। राष्ट्रीय पुलिस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि शिकायतों को सुनने या फिर अधिकारियों के फोन कॉल्स का विवरण दर्ज करने जैसे प्रशासनिक कार्यों के लिए अर्दली के रूप में कांस्टेबलों की नियुक्ति स्वीकार्य है। लेकिन कुछ अधिकारियों ने इस सुविधा की गलत व्याख्या करते हुए अर्दली के रूप में नियुक्त कांस्टेबलों को घरेलू काम, बच्चों की देखभाल, किराने के सामान की खरीदारी, सफाई और परिवार के बुजुर्ग सदस्यों की देखभाल जैसे छोटे-मोटे काम करने के लिए बाध्य कर रखा है। यह अनुचित है।

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