सामना संवाददाता / मुंबई
जी-२० की पृष्ठभूमि में शहर में खूबसूरती के नाम पर जगह-जगह पेड़ों को रंगीन लाइटों से सजाया गया है। ये लाइटें देर रात तक जलती रहती हैं। ऐसे खूबसूरती बढ़ाने के चक्कर में भविष्य में इन पेड़ों के साथ-साथ पर्यावरण को किस कदर नुकसान हो सकता है, इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। खूबसूरती के नाम पर पेड़ों की जिंदगी से खिलवाड़ हो रहा है।
गौरतलब है कि `ईडी’ सरकार ने जी-२० आयोजन की पृष्ठभूमि में पूरी मुंबई को खूबसूरत बनाने के लिए जगह-जगह रंग-रोगन करवाया है। जहां पर मेट्रो के काम शुरू हैं, वहां बेरिकेड्स पर जी-२० के पोस्टर लगवा दिए हैं। यहां तक कि जहां मुख्य सड़कों के किनारे झोपड़े हैं, वहां पर्दे लगाकर ढंकने की कोशिश की गई है। इसके अलावा सड़क के लाइट पोल पर विभिन्न डिजाइन के लाइट्स लगाए गए हैं। इसी तरह सड़क के किनारे लगे पेड़ों पर लाइटिंग करवाई गई है, ताकि सड़क के बगल की खूबसूरती बढ़ जाए। लेकिन खूबसूरती बढ़ाने के चक्कर में पेड़ों पर की गई एलईडी लाइटिंग का भविष्य में पेड़ों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर कितना दुष्प्रभाव पड़ेगा इस बारे में सोचने की सुध `ईडी’ सरकार को नहीं है।
इस खूबसूरती के चलते पेड़ों को कितना नुकसान झेलना पड़ रहा है, इसको लेकर पर्यावरण विशेषज्ञ और वृक्ष प्रेमी में नाराजगी तो है ही, साथ ही लोग भी दबी जुबान में इस बेवजह की गई लाइटिंग पर सरकार को कोस रहे हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि पेड़ों पर की जानेवाली लाइटिंग को न केवल बंद करना चाहिए बल्कि इसके खिलाफ कोई कड़े नियम बनाए जाने चाहिए और यदि नियम बनाए भी जाते हैं तो उनका कड़ाई से पालन भी किया जाना चाहिए।
वृक्ष प्रेमी डॉ. नागेश टेकाले का कहना है कि पेड़ों पर लाइटिंग नहीं होनी चाहिए। रात में पेड़ सोए रहते हैं। ऐसे में यदि पेड़ पर लाइटिंग की जाती है और देर तक लाइटें जलती रहती हैं तो उसकी गर्मी से पेड़ जग जाते हैं। इससे पेड़ की दिनचर्या गड़बड़ा जाती है। इस लाइटिंग के लिए कई बार पेड़ों पर कीलें भी ठोकनी पड़ती हैं, जिस वजह से पेड़ों की जल वाहिनी और अन्न वाहिनी डैमेज हो जाती है, जिससे कुछ महीनों बाद पेड़ सूखने लगते हैं। इसके खिलाफ एक्शन लेना चाहिए।
पर्यावरण विशेषज्ञ वैभव राजे ने भी कुछ इसी प्रकार की प्रतिक्रिया दी है। राजे कहते हैं कि थोड़ी देर तक लाइटिंग से पेड़ों पर कुछ खास परिणाम नहीं होता है। लेकिन ज्यादा देर लाइट जलने पर इसकी गर्मी से पेड़ पर परिणाम होता है। पेड़ पर रहने वाले कीट-पतंगों पर इस कृत्रिम रोशनी का असर पड़ता है। वैभव राजे के अनुसार, ये कीट-पतंगे भी प्रकृति के लिए जरूरी होते हैं। मुंबई में जगह-जगह पेड़ों पर की गई लाइटिंग की वजह से शीतलता और सुकून देनेवाले पेड़ खुद गर्मी में झुलसने पर मजबूर हैं।