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दुविधा में दीपू परिवार! …मौत का गम मनाए या बेटे के जन्म की खुशी

आतंकियों की गोलियों का शिकार दीपू की पत्नी ने दिया ७ दिनों के बाद बेटे को जन्म
–सुरेश एस डुग्गर–
जम्मू। इससे ज्यादा हृदयविदारक दृश्य शायद ही कोई होगा कि जिस दीपू को आतंकियों ने ७ दिन पहले कश्मीर में गोलियों से भून दिया था, उसकी पत्नी ने आज एक बेटे को जन्म दिया पर इस खुशी का साक्षी दीपू खुद नहीं बन सका। ऐसे में दिवंगत दीपू के घर पर हालत यह है कि वे दीपू की मौत का मातम मनाएं या फिर बेटे के पैदा होने की खुशी।
७ दिन पहले बेहद ही गरीब परिवार के एकमात्र कमाई करने वाले सदस्य दीपू को आतंकियों ने अनंतनाग मेंं गोली मार दी थी जहां नौकरी कर वह अपने परिवार और अपने दृष्टिहीन भाई के परिवार को पाल रहा था। उसका परिवार कितनी गरीबी की हालत में है, अंदाजा इसी से लगाया जा सकता था कि उसके कच्चे घर ने आज तक बिजली की रोशनी के दर्शन भी नहीं किए हैं।
दीपू की पत्नी साक्षी उस समय नौ महीने की गर्भवती थी जब आतंकियों ने जिहाद के नाम पर उसकी जान ले ली थी। अभी तक साक्षी अपने पति की मौत के सदमे से नहीं उबर पाई है। अब जबकि उसने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया है, उसके घर पर आने वालों का तांता लगा है पर वे अजीब दुविधा में हैं।
दरअसल कई आने वाले दीपू की मौत के गम में सांत्वना के लिए आ रहे हैं पर जब उनको बेटे के जन्म की खबर मिलती है तो वे उसके जन्म की बधाई भी नहीं दे पाते। शायद यही क्रूर नियति है कि दीपू का परिवार बदकिस्मती के थपेड़ों को सहन करने को मजबूर है। करीब १५ साल पहले गरीबी के चलते दीपू का परिवार जम्मू से उधमपुर के मजालता तहसील के बिलासपुर गांव की ओर कूच कर गया था।
फिर दीपू एक सर्कस के साथ जुड़ गया, जिसे जी-२० की बैठक से पहले ‘कश्मीर में सब चंगा है’ दिखाने की खातिर अनंतनाग में डेरा डालने को कहा गया था। पर दीपू का परिवार शायद यह नहीं जानता था कि अब उसके परिवार के लिए कुछ भी चंगा नहीं रहेगा। हालांकि, दीपू की आतंकियों के हाथों हत्या के बाद प्रशासन ने उसके परिवार की सुध तो ली पर ५ हजार रुपए महीने की पेंशन से परिवार किस किस का पेट भरेगा, यह उनके लिए यक्ष प्रश्न है।

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