मुख्यपृष्ठनए समाचारदिल्ली डिस्पैच : अपना रुतबा खो रहा है हिंदुस्थान!

दिल्ली डिस्पैच : अपना रुतबा खो रहा है हिंदुस्थान!

मनमोहन सिंह

बांग्लादेश में प्रदर्शनकारियों द्वारा पिछले दिनों बांग्लादेश की आजादी के प्रतीक शेख मुजीबुर रहमान के पुतले को तोड़ने के साथ ही हिंदुस्थान और बांग्लादेश के बीच रिश्तों का पुल भी लगभग टूट गया है। उन्होंने प्रतीकात्मक रूप से अपने देश के विश्वसनीय सहयोगी हिंदुस्थान की जड़ों पर भी प्रहार कर उसके वजूद पर भी सवाल उठा दिए! ऐसे हालात में जब हिंदुस्थान बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद के देश पलायन के बाद से जूझ रहा है, जिन्होंने नई दिल्ली में अस्थायी आश्रय मांगा है, (इस बीच बांग्लादेश के कुछ सियासी पार्टियों का मानना है कि शेख हसीना वाजेद देश की अपराधी हैं और हिंदुस्थान को उन्हें बांग्लादेश को सौंप देना चाहिए, ताकि उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सके!) तो उसे एक कठिन सच्चाई का सामना करना होगा कि दक्षिण एशिया में हिंदुस्थान के रुतबे को चुनौती मिल रही है और वह अपने करीबी दोस्तों को खो रहा है। इस प्रक्रिया में बांग्लादेश का मामला ताजा है बस। मालदीव में, राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू पिछले साल हिंदुस्थान विरोधी मंच पर सार्वजनिक रूप से अभियान चलाकर सत्ता में आए थे और तब उन्होंने हिंदुस्थानी सैनिकों की एक छोटी टुकड़ी को निष्कासित कर दिया, जो नई दिल्ली द्वारा माले को तोहफे में दिए गए एक विमान का प्रबंधन कर रहे थे। नेपाल में, के.पी. शर्मा ओली, जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अपने पिछले कार्यकाल के दौरान क्षेत्रीय विवादों और २०१५ में नई दिल्ली द्वारा कथित तौर पर लागू की गई नाकाबंदी को लेकर हिंदुस्थान के साथ टकराव को लेकर गुरेज नहीं किया था, फिर प्रधानमंत्री के रूप में नेपाल में तख्तनशीन हो गए हैं। हिंदुस्थानी हुकूमती इंस्टीट्यूशंस की नजरिए से देखा जाए तो मुइज्जू और ओली दोनों के रवैए चीन की ओर उनके झुकाव के रूप में परिलक्षित दिखते हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बांग्लादेश अब हिंदुस्थान के लिए भी वैसा ही चिंताजनक रुख ले सकता है! बांग्लादेशी सेना एक अंतरिम सरकार का गठन कर रही है, जिसमें बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी से जुड़े तत्व शामिल होने की संभावना है, विपक्षी दल जो परंपरागत रूप से चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ संबंधों की वकालत करते हैं। शेख हसीना की सरकार को केंद्र, नई दिल्ली के समर्थन के कारण हिंदुस्थान विरोधी राष्ट्रीय भावना के बीच वे सत्तानशीन हो जाएंगे। मौजूदा हालात में हिंदुस्थान के सामने दो महत्वपूर्ण ऑप्शन हैं, पहला यह कि उसे एक ऐसा संतुलन खोजने की जरूरत है जो पड़ोसी मुल्कों में उसकी मौजूदगी को मजबूत और शाईस्ता बनाए और दूसरा यह कि जब उसके मित्र मुल्क या पड़ोसी सार्वजनिक समर्थन खोने लगे, उसे उन पर वक्त रहते सुधार करने के लिए दबाव डालें, वह भी इस तरह की उनके अहम को चोट न पहुंचे।

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