- लोकसभा का ४४.३% और राज्यसभा ५६.६% फीसदी समय बीता ‘गैर-विधायी’ कार्यों में
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
भाजपा और केंद्र की मोदी सरकार पर देश में तानाशाही और मनमानी करने तथा मंदिर बनाम मस्जिद, छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर देश को गुमराह करने का आरोप आज तमाम विपक्षी पार्टियां लगा रही हैं। विपक्ष के उक्त आरोपों की पुष्टि करने वाली जानकारी लोकतंत्र के मंदिर यानी देश के संसद भवन से सामने आई है। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि बीते ७ वर्षों में संसद में ७९ज्ञ् बजट बिना चर्चा पास हुए हैं। गौर करने लायक बात यह है कि लोकसभा का ४४.३ज्ञ् और राज्यसभा ५६.६ज्ञ् फीसदी समय बीता ‘गैर-विधायी’ कार्यों में व्यतीत हुआ है। इससे दुनियाभर में भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की विश्वसनीयता कम होने की बात कही जा रही है।
बता दें कि संसद का बजट सत्र ३१ जनवरी २०२३ से ६ अप्रैल २०२३ तक आयोजित किया गया था, जिसमें १४ फरवरी से १२ मार्च तक अवकाश की घोषणा की गई थी। संसद २५ दिनों तक बैठने के बाद ६ अप्रैल को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गई। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, सरकार के व्यय के अधिकांश प्रस्ताव किसी भी सदन में बिना चर्चा के ही पारित कर दिए गए। जबकि पेश किए गए और पारित किए गए विधेयकों की संख्या में गिरावट देखने को मिली। आंकड़ों के अनुसार, ‘१९५२ के बाद से यह छठा सबसे छोटा बजट सत्र रहा है। लोकसभा ने वित्तीय कारोबार पर केवल १८ घंटे खर्च किए, जिनमें से १६ घंटे बजट की सामान्य चर्चा पर बिताए गए।’ १७वीं लोकसभा के पिछले बजट सत्रों में वित्तीय कारोबार पर औसतन ५५ घंटे चर्चा हुई थी। लोकसभा में चर्चा के लिए पांच मंत्रालयों के खर्च (११ लाख करोड़ रुपए) को सूचीबद्ध किया गया था। हालांकि, किसी पर भी चर्चा नहीं हुई। पीआरएस रिसर्च टीम की रिपोर्ट के अनुसार, ‘सभी मंत्रालयों का ४२ लाख करोड़ रुपए का प्रस्तावित व्यय बिना किसी चर्चा के पारित कर दिया गया। इस तरह पिछले सात वर्षों में औसतन ७९ज्ञ् बजट बिना चर्चा के पास हो गया है।’
गौरतलब हो कि राज्यसभा में बजट सत्र के दौरान चुनिंदा मंत्रालयों के कामकाज पर ही चर्चा होती है। इस सत्र में रेल, कौशल विकास, ग्रामीण विकास, सहकारिता और संस्कृति मंत्रालय समेत सात मंत्रालयों के कामकाज पर चर्चा होनी थी, लेकिन किसी पर चर्चा नहीं हुई। लोकसभा का ४४.३ प्रतिशत समय ‘गैर-विधायी’ कार्यों में बीता, जबकि राज्यसभा का ५६.६ प्रतिशत समय ‘गैर-विधायी’ कार्यों में बीता। कुल मिलाकर पीआरएस रिसर्च के मुताबिक, ‘इस लोकसभा में अब तक १५० बिल पेश किए गए हैं और १३१ पारित किए गए हैं (वित्त और विनियोग विधेयकों को छोड़कर)। पहले सत्र में ३८ विधेयक पेश किए गए और २८ पारित किए गए। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले चार लगातार सत्रों में से प्रत्येक में १० से कम बिल पेश या पारित किए गए हैं। इस चिह्नित ट्रेंड के लिए मोदी सरकार के दो कार्यकाल को विशेष रूप से जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।