– भारत के लिए खतरनाक है ड्रैगन का सुपर डैम
– नॉर्थ ईस्ट में मच सकती है भारी तबाही
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
दुनिया कुछ भी कहती रहे, चीन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बात चाहे इंसानों पर मंडराते संकट की हो या पर्यावरण के साथ छेड़छाड़। ड्रैगन अपनी जिद के आगे किसी की नहीं सुनता। ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने की जो उसकी योजना है वो इसी का उदाहरण है। चीन तिब्बत के जिस क्षेत्र में बांध बनाने जा रहा है वहां पर भूकंप का सबसे ज्यादा खतरा रहता है। वो हाई सिस्मिक जोन में आता है।
चीन की यह परियोजना नाजुक हिमालयी क्षेत्र में टेक्टोनिक प्लेट सीमा पर स्थित है, जहां अक्सर भूकंप आते रहते हैं। यह बांध तिब्बत के मेडोग काउंटी में हिमालय के उस बिंदु पर आएगा, जहां नदी अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश के लिए यू-टर्न लेती है। जहां बांध बनाने का प्लान है वो भारत के साथ विवादित सीमा से बहुत दूर नहीं है। बांध को बनाने में १३.७ अरब अमेरिकी डॉलर का खर्च आएगा। इसे दुनिया का सबसे बड़ा बांध बताया जा रहा है। बांध बनाने की चर्चाओं के बीच मंगलवार को भारत समेत ५ देशों में भूकंप के झटके महसूस किए गए। भारत के अलावा नेपाल, बांग्लादेश, चीन और तिब्बत में धरती हिली। सबसे ज्यादा तबाही तिब्बत में मची। ५० से ज्यादा लोगों की मौत हुई। कई घरों को नुकसान पहुंचा। जहां पर बांध बनाने का प्लान है वहां पर अक्सर भूकंप आते रहते हैं, क्योंकि यह टेक्टोनिक प्लेटों के ऊपर स्थित है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भूकंप के कारण बांध अगर विफल हो जाता है तो डोमिनो एफेक्ट आ सकता है। इससे पानी का उछाल बढ़ेगा और बांध के झरनों को नीचे की ओर पुश करेगा। ऐसे में सवाल उठता है कि तिब्बत में जो तबाही मची है कहीं वो ट्रेलर तो नहीं है। चीन ने तिब्बती क्षेत्रों में कई बांध बनाए हैं। १९५० के दशक में कब्जे के बाद से बीजिंग द्वारा नियंत्रित क्षेत्र में यह एक विवादास्पद विषय है। एक्टिविस्ट कहते हैं कि बांध बीजिंग द्वारा तिब्बतियों और उनकी भूमि के शोषण का ताजा उदाहरण है।
भारत जता चुका है चिंता
भारत बांध पर अपनी चिंताएं व्यक्त कर चुका है। भारत ने चीन से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि ब्रह्मपुत्र के प्रवाह वाले निचले इलाकों के हितों को ऊपरी इलाकों में होनेवाली गतिविधियों से नुकसान न पहुंचे। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि हम अपने हितों की रक्षा के लिए निगरानी जारी रखेंगे और आवश्यक कदम उठाएंगे।
जायसवाल ने कहा कि नदी के प्रवाह के निचले क्षेत्रों में जल के उपयोग का अधिकार रखने वाले देश के रूप में हमने विशेषज्ञ स्तर के साथ-साथ कूटनीतिक माध्यम से चीनी पक्ष के समक्ष उसके क्षेत्र में नदियों पर बड़ी परियोजनाओं के बारे में अपने विचार और चिंताएं लगातार व्यक्त की हैं।
एक्सपर्ट की राय
धर्मशाला में तिब्बत पॉलिसी इंस्टीट्यूट में शोधकर्ता और डिप्टी डायरेक्टर तेम्पा ग्यालस्टन ने बातचीत में बताया कि इसका भारत पर बहुत गंभीर असर होगा। उन्होंने कहा कि साल २०२० में जब इस बांध का विचार आया, तब मैंने एक आर्टिकल लिखा था, जिसका नाम चाइना सुपर डैम इन तिबर एंड इट्स इम्प्लीकेशेंस फार इंडिया और अब इसे आधिकारिक मंजूरी मिल गई है, जिसका मतलब है कि निर्माण तेजी से होगा।