जय सिंह
मुंबई तथा गुजरात की सीमा से सटा डहाणू जो पालघर जिले में आता है, को कम संवेदनशील नहीं कहा जा सकता। यहां कई बार ऐसे मौके भी आए हैं जब मामूली झगड़े को सांप्रदायिक रंग दे दिया गया और दंगा भड़क गया। पालघर, बोइसर, वसई, नालासोपारा, नायगांव जैसे इलाके बांग्लादेशियों के छिपने के बेहतरीन अड्डे माने जाते हैं। यही नहीं, बीहड़ से कम नहीं हैं ये इलाके, जहां भारी पैमाने पर बनी हुई लोड बैरिंग बिल्डिंगें, झोपड़पट््िटयां और समुद्री किनारे से बेहतर छुपने की जगह कोई और हो ही नहीं सकती।
वैसे भी यहां बांग्लादेशियों के रहने और उनके भारी संख्या में पकड़े जाने का भी इतिहास रहा है। अभी हाल ही में ४ जनवरी को वसई में तीन बांग्लादेशियों को गिरफ्तार किया गया। पुलिस निरीक्षक सुरभि पवार के मुताबिक, खुफिया जानकारी के आधार पर पुलिस के मानव तस्करी रोधी प्रकोष्ठ ने नालासोपारा इलाके की झुग्गी बस्ती में रविवार को पांच लोगों को पकड़ा। हिंदुस्थान में रहने के लिए कोई वैध दस्तावेज उनके पास से बरामद नहीं हुआ है। अधिकारी के मुताबिक, करीब १० वर्ष पहले आरोपी नदी के रास्ते हिंदुस्थान में दाखिल हुए और बतौर दिहाड़ी मजदूर काम कर रहे थे। पुलिस ने पालघर जिले में २२ बांग्लादेशियों को गिरफ्तार किया है और यह सभी अवैध रूप से यहां रह रहे थे। पकड़े गए लोगों में १२ महिलाएं भी शामिल हैं। पुलिस ने बताया कि राजोड़ी गांव में ये लोग झुग्गी में रह रहे थे। स्थानीय व्यक्ति की सूचना पर पुलिस ने छापेमारी कर इन्हें गिरफ्तार किया। पकड़े गए सभी बांग्लादेशियों पर भारतीय पासपोर्ट कानून १९२० तथा विदेशी नागरिक अधिनियम १९४६ के तहत मामला दर्ज किया गया है। पुलिस ने बताया कि पकड़े गए किसी भी व्यक्ति के पास से कोई भी वैध दस्तावेज नहीं मिला। पकड़े गए बांग्लादेशियों ने बताया कि वे यहां रहकर छोटा-मोटा काम करने के साथ ही नौकरी करते हैं। समुद्र के रास्ते बांग्लादेशियों के आने की वजह से यहां हमेशा भय बना रहता है।
ज्ञात हो कि इस तालुका में सेक्युलर ताकतों का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक समुदाय की आड़ में यहां हमेशा लोग घुसपैठ करते रहते हैं। सांप्रदायिक दृष्टिकोण से यहां कासा, चिंचणी, शिरगांव के कुछ क्षेत्र संवेदनशील हैं। मुंबई से डेढ़ घंटे की दूरी पर स्थित डहाणू भविष्य में मिनी बांग्लादेश का रूप ले सकता है। पाकिस्तान दहशत गर्द पालघर तालुका को स्थानीय भूमिपुत्रों का गढ़ कहा जाता है, किंतु धीरे-धीरे यहां पर भी अवैध बांग्लादेशियों की आबादी बढ़ती ही जा रही है। इसकी पहली झलक तब मिली जब १९९२ के दंगों के वक्त तारापुर तथा मनोर के बांग्लादेशी खून के प्यासे हो गए थे। गौरतलब हो कि तारापुर एक औद्योगिक क्षेत्र है तथा उक्त क्षेत्र में एक सुनियोजित षड्यंत्र के अंतर्गत बांग्लादेशी अवैध तरीके से घुसते जा रहे हैं। बताया जाता है कि उक्त औद्योगिक क्षेत्र से कई गिरोह के पंटरों ने हफ्ताउगाही शुरू कर दी है, जिससे उद्योगपतियों में दहशत का माहौल है। इससे एक जाति विशेष के आतंक का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस प्रकार धीरे-धीरे पालघर तालुका भी संवेदनशील बनता जा रहा है।