संजय राऊत
`महाराष्ट्र में भाजपा और उसके सहयोगियों को प्रचंड बहुमत मिलने के बावजूद राज्य आगे बढ़ता नजर नहीं आ रहा है, जिसकी वजह मुख्यमंत्री फडणवीस और एकनाथ शिंदे के बीच अनबन है। शिंदे अब भी दोबारा मुख्यमंत्री न बनाए जाने के सदमे से जूझ रहे हैं और एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, फडणवीस इस बात से वाकिफ हैं।’
आए दिन ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जो साबित करती हैं कि अपने ‘लाडले’ मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फडणवीस और भाजपा पुरस्कृत उपमुख्यमंत्री श्री एकनाथ शिंदे के बीच फिलहाल कोई खास रिश्ता नहीं रहा है, जिसके चलते लोगों का मनोरंजन हो रहा है। इसमें भाजपा कोटे के मंत्री श्री गणेश नाईक ने शिंदे के ठाणे जिले में नियमित जनता दरबार लगाने की घोषणा करके ‘कहर’ बरपा दिया है और इस तरह एक नए विवाद की चिंगारी पड़ी है। इस पर शिंदे के लोगों ने चुनौती देते हुए कहा कि अगर ऐसा है तो हम पालघर जिले में जाएंगे जहां नाईक पालकमंत्री हैं और दरबार लगाएंगे। राज्य की सरकार कितनी निकम्मी है और आपसी झगड़ों से प्रशासन और जनता को कितनी परेशानी हो रही है, किसी को इसकी परवाह नहीं है शिंदे गुट के एक विधायक से हवाई यात्रा के दौरान मुलाकात हुई। उन्होंने और जानकारी जोड़ी और भ्रम को और बढ़ा दिया। ‘शिंदे खुद को अपमानित करने के दर्द से बाहर आने को तैयार नहीं हैं। मुख्यमंत्री के ढाई साल के कार्यकाल के दौरान शिंदे और फडणवीस के मुंह विपरीत दिशा में थे। अब फडणवीस सारी कसर निकाल रहे हैं, क्योंकि शिंदे के हाथ में कुछ भी नहीं बचा है।’
मैं- ‘क्या शिंदे अब भी इसी दुख में हैं कि उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री पद नहीं मिला?’
विधायक- ‘वे इससे भी आगे समाधि की अवस्था में पहुंच गए हैं। शून्य में चले गए।’
मैं- ‘क्या शिंदे को सदमा पहुंचा है?’
विधायक- ‘वे मन से टूट गए हैं।’
मैं- ‘क्यों? क्या हुआ?’
‘हम आपके नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे और २०२४ के बाद भी आप फिर से मुख्यमंत्री होंगे, चिंता मत करो। चुनाव में दिल खोलकर खर्च करें, ऐसा आश्वासन अमित शाह ने शिंदे को दिया था। शिंदे ने चुनाव में बहुत पैसा खर्च किया, लेकिन शाह ने अपना वादा नहीं निभाया और उन्हें लगता है कि उनके साथ धोखा हुआ है।’-विधायक महोदय।
इस विधायक ने और भी जानकारी दी जो महत्वपूर्ण है। ‘शिंदे को विश्वास है कि शिंदे और उनके लोगों के फोन टैप किए जा रहे हैं और उन्हें संदेह है कि दिल्ली में एजेंसियां उनकी गतिविधियों पर नजर रख रही हैं और शिंदे को बहुत परेशानी हो गई है।’
ये एक हवा (ई) यात्रा में हुई चर्चा है, जो बताती है कि महाराष्ट्र की राजनीति किस दिशा में जा रही है। आखिर क्या, वो ये कि भाजपा किसी की नहीं है।
शिंदे पर दबाव
शिंदे और उनके लोग आज महाराष्ट्र के राजनीतिक मामलों में कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर शिंदे का तेज खत्म हो गया है और शिंदे खुद इस बात के दुख में आकंठ डूबे हैं कि मुख्यमंत्री फडणवीस उन्हें नहीं पूछ रहे हैं। फडणवीस और शिंदे के बीच सतही बातचीत है और यह सच्चाई है कि मंत्रिमंडल की बैठक में भी उपमुख्यमंत्री शिंदे हाजिर नहीं होते। जब दुख नाकाबिले बर्दाश्त हो जाता है तो उपमुख्यमंत्री शिंदे हेलिकॉप्टर से सातारा के दरेगांव पहुंच जाते हैं और जब उनका दिमाग शांत हो जाता है तो वे ठाणे लौट आते हैं, लेकिन दिमाग शांत होने के बावजूद उनके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो रहा है।
एकनाथ शिंदे का मानसिक स्वास्थ्य इस हद तक खराब हो गया है कि वह अब विधायकों से चिढ़ जाते हैं, उनके एक प्रिय विधायक ने यह खुलासा किया। शिंदे सरकारी बैठकों में दो घंटे देरी से पहुंचते हैं। ३० तारीख को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में जिला योजना बोर्ड की बैठक हुई। शिंदे उस बैठक में कम से कम ढाई घंटे देरी से पहुंचे। यह इस बात का संकेत है कि उन्हें अपने काम में कोई दिलचस्पी नहीं है। भाजपा विधायकों ने अब मुख्यमंत्री से शिकायत की है कि शिंदे बैठकों में देर से पहुंचते हैं और इस वजह से सभी परेशान हैं।
आज जिस सरकार के मुखिया फडणवीस हैं और कल तक शिंदे उसी सरकार के मुखिया थे और अब दोनों में नहीं बनती है। हाल ही में भाजपा के एक वरिष्ठ मंत्री ने मुझसे कहा,’ ‘मुख्यमंत्री फडणवीस और उपमुख्यमंत्री शिंदे दोनों के बीच में कोई बड़ा मतभेद नहीं है।’ (मतलब छोटे-मोटे मतभेद हैं। उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच भी कोई बड़े मतभेद नहीं थे। ये छोटे-मोटे मतभेद रहे होंगे, लेकिन आगे क्या हुआ, यह देश ने देखा।) तस्वीर यह है कि शिंदे के ज्यादातर विधायक अब विचलित हैं। इनका एक बड़ा गुट सीधे भाजपा में जाकर देवेंद्र फडणवीस का नेतृत्व स्वीकार करने की तैयारी कर रहा है। दूसरा गुट शिंदे पर दबाव बना रहा है। जो हो गया उसे भूलकर फिर से स्वगृह लौटें, ये चर्चाएं जोरों पर हैं, लेकिन नेता केंद्रीय जांच एजेंसियों के डर से पैâसले नहीं लेते और सभी को हाथ-पैर में और दिमाग में गुलियन बैरी सिंड्रोम बीमारी की तरह झनझनाहट महसूस होती है। ये तस्वीर मजेदार है। शिंदे गुट के गिनती के लोग मंत्री बन गए हैं और बाकी पैसे व ठेकेदारी पर जी रहे हैं। शिंदे कब तक इन लोगों का नेतृत्व कर सकते हैं?
अजीत पवार नीति
अजीत पवार की स्थिति एकनाथ शिंदे से बेहतर है। अजीत पवार ने अपनी सीमाएं पहचान ली हैं और फडणवीस के साथ उनके रिश्ते मजबूत हैं। फिलहाल, अजीत पवार को कुछ नहीं बनना है इसलिए उन्हें अमित शाह की फेहरिस्त में जेंटलमैन बने रहना है। भाजपा के साथ जाकर अजीत पवार ने ‘ईडी’ की कार्रवाई टलवा दी। १,००० करोड़ की जब्त संपत्ति छुड़ा ली और ‘बोनस’ के तौर पर फिर से उपमुख्यमंत्री का पद मिल गया। इस लेन-देन से अजीत पवार खुश हैं। अजीत पवार ने इस नीति को स्वीकार लिया है कि उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनना है और मुख्यमंत्री बनने से बेहतर सुरक्षित बाहर रहना बढ़िया है। फिर धनंजय मुंडे का भी बचाव किया जा रहा है, लेकिन शिंदे का ऐसा नहीं है। जब वे ठाकरे मंत्रिमंडल में थे, तब भी वह मुख्यमंत्री बनना चाहते थे और जब वह फडणवीस कैबिनेट में हैं, तब भी वे फिर से मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। फडणवीस ने इस खतरे को पहचान लिया है। शिंदे के साथ मौजूद कम से कम २१ विधायक देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व को मानते हैं और फडणवीस के निर्देश पर ही सूरत गए, शिंदे भी इस सच्चाई से वाकिफ हैं इसलिए शिंदे गुट अभी भी एकजुट नहीं है। साफ है कि शिंदे खुद डगमगाए हुए हैं और उनमें आगे आकर लड़ने की ताकत बिलकुल नहीं है। शिंदे को फिलहाल, अमित शाह का समर्थन हासिल है। यह सतही है और काम पूरा होने तक है। जब ऐसा नहीं होगा तो शिंदे का नेतृत्व खत्म हो जाएगा। अमित शाह की दिलचस्पी शिंदे में नहीं, बल्कि शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना को खत्म करने और मुंबई को पूरी तरह कब्जाने में है। इसके लिए उन्हें शिंदे की मदद की जरूरत है। एक बार शाह का काम हो गया तो शिंदे का काम तमाम होना तय है। शिंदे की पार्टी (चुराई) के पास कोई नीति नहीं है। पैसे और बची-खुची सत्ता के दम पर उनकी तोड़-फोड़ की राजनीति जारी है, फिर से शिवसेना ही तोड़ते हैं। कांग्रेस-राष्ट्रवादी में नहीं घुसते, क्योंकि मालिक अमित शाह ने उन्हें यही काम दिया है। लेकिन जब वे ऐसा कर रहे हैं तो भाजपा के लोग उनके पैरों के नीचे से दरी खींच रहे हैं। आज दरी खींच रहे हैं, कल पैर काट दिए जाएंगे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग शिंदे और अजीत पवार के मंत्रियों पर नजर रखने के लिए उनके निजी सहायक बनकर बैठेंगे और इससे मंत्रियों को भरपूर पैसा खाने पर रोक लग जाएगी। शिंदे इस बारे में क्या करेंगे? रायगढ़, नासिक के पालकमंत्री पद को लेकर विवाद है और गढ़चिरौली का पालकमंत्री पद मुख्यमंत्री फडणवीस ने अपने पास रखा है इसलिए खनन उद्योग निर्भय हो गया। शिंदे ने एक ही वक्त में ठाणे और मुंबई के पालकमंत्री का पद अपने पास रखा है, इसमें वित्तीय हित अधिक हैं। ठाणे में शिंदे का एकछत्र प्रशासन अब नहीं चलेगा, क्योंकि भाजपा ने ठाणे जिले के गणेश नाईक को मंत्री और पालघर का पालकमंत्री बनाकर ठाणे में शिंदे के एकाधिकार को तोड़ दिया। शिंदे के लिए यह एक चुनौती होगी। जब गणेश नाईक शिवसेना-भाजपा के पहले मंत्रिमंडल में थे तब शिंदे ठाणे में नगरसेवक थे। इसलिए गणेश नाईक शिंदे को कोई महत्व नहीं देंगे, वे ठाणे में जनता दरबार लगाएंगे और शिंदे के सिर पर नृत्य करवाएंगे। महाराष्ट्र में यह खुला संघर्ष जारी है और इसका अंत होता नहीं दिख रहा है। बहुमत के बावजूद सरकार और राज्य अस्थिर है। तलवार चलाने वालों का अंत तलवार के घाव से होता है। शिंदे पर तलवार के घाव शुरू हो गए हैं। महाराष्ट्र निराश है और अराजकता के हालात में पहुंच गया है!
इस उन्मादित घात में महाराष्ट्र मरे या जीए, उससे अमित शाह का क्या लेना-देना है? लेकिन इतिहास एकनाथ शिंदे और अजीत पवार को माफ नहीं करेगा, यह निश्चित है।