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मुंबई का माफियानामा : डॉन को पकड़ना मुश्किल…

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

विवेक अग्रवाल

डॉन को ग्यारह मुल्कों की पुलिस खोज रही है…
पर डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं…
नामुमकिन है…
…सेलफोन की यह कॉलर ट्यून किसी फिल्मी दीवाने के फोन सुनें तो क्या कहेंगे ये तो सामान्य बात है। यही न?
मुंबई पुलिस की अपराध शाखा के अफसरान तब भौंचक्के रह गए, जब नकली करंसी के तस्कर दाऊद खान का सेल फोन रिकॉर्डिंग पर डाला और यही कॉलर ट्यून बजी।
अपराध शाखा जोन १ के तत्कालीन उपायुक्त अमर जाधव कहते हैं कि जब दाऊद खान को फोन लगाया तो ये कॉलर ट्यून सुनकर बड़ा ताज्जुब हुआ। ये कॉलर ट्यून लगाने वाला वह अकेला न था। बहुत सारे अपराधी इसका इस्तेमाल फोन पर करते थे। उससे उन्हें बड़ा अच्छा लगता था। वे भी खुद को फिल्मी डॉन सरीखा समझने लगते थे।
इस कॉलर ट्यून का एक और शैदाई था – शिवा गौड़ा। वह नई मुंबई के उरण फाटा पर पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। वह कई डकैतियों में शामिल था।
डोंगरी का हफ्ताखोर नसीम भी कभी यही कॉलर ट्यून फोन में इस्तेमाल करता था। २००६ में उसकी तलाश अपराध शाखा की इकाई ३ को थी। इकाई तीन के तत्कालीन प्रभारी यशवंत व्हटकर के मुताबिक जब ये कॉलर ट्यून उसके फोन पर सुनी तो गुस्से से भर गए। उन्होंने तुरंत एक एसएमएस भेजा – ‘तुम चूहे हो, डॉन नहीं। अगर डॉन होते, तो तुम बिल में नहीं छुपे होते।’ वे बताते हैं कि ये कॉलर ट्यून तब कई अपराधियों के फोन पर वे सुन चुके थे।
इसके अलावा कुछ और कॉलर ट्यून अपराधियों के फोन पर सुनी जाती रही हैं। वे हैं –
गोली मार भेजे में… फिल्म सत्या
गंदा है पर धंधा है ये… फिल्म कंपनी
अरे ओ सांभा… फिल्म शोले
इंस्पेक्टर ने गुस्से में कहा:
– जिनके फोन पर ऐसे डायलॉग सुनें तो समझ लीजिए… वे साले ‘बोलबच्चन – अमिताभ बच्चन’ हैं। किसी काम के नहीं।
भयभीत बमबाज
शेख अली शेख उमर तब जवान ही था…
उनके पास एके ४७ रायफलें, भरपूर गोलियां और ढेरों दस्ती बम थे…
वह मारूति वैन में अपने साथियों को लेकर दक्षिण मुंबई स्थित मनपा मुख्यालय की तरफ निकला था…
यह संहारक दस्ता जब कार में वरली के सेंचुरी बाजार इलाके पहुंचा, तब दोपहर का वक्त था…
उनके दिलों में खासी उथल-पुथल मची थी… …वे दरअसल भाजपा-शिवसेना पार्षदों पर गोलीबारी करने और दस्ती बमों से परखच्चे उड़ाने के इरादे से निकले थे। अचानक उनसे कुछ दूरी पर एक बम फटा। रास्ते में चलते-चलते उनकी मारुति वैन धक्का खाकर कुछ फुट दूर तक सरक गई। धमाके का असर जितना कार पर न हुआ, उससे कहीं अधिक शेख अली के हत्यारे दस्ते पर हुआ। उनका आत्मविश्वास चूर-चूर हो गया। उन्हें लगा कि जनता ने अगर हथियारों समेत उन्हें देख लिया तो पीट-पीटकर मार डालेंगी।
अली शेख और उसके साथियों ने फौरन पैâसला लिया कि करना क्या है। धमाका स्थल से चंद कदमों की दूरी पर स्थित वरली स्थित दूरदर्शन केंद्र के बाहर वे पहुंचे। कार व असलाह वहीं छोड़ कर भाग निकले। बाद में ये कार जब्त हुई और उसी के चलते ये तमाम गुंडे भी पकड़े गए। जब बयानात हुए तो पता चला कि यह टाइगर मेमन के शातिर दिमाग की उपज थी कि भाजपा और शिवसेना के पार्षदों को मार कर दंगों का बदला लिया जाए, लेकिन हमलावरों के जेहन में मौत का खौफ ऐसा समाया कि वे यह वहशी योजना पूरी न कर सके। सच है, मौत का खौफ तो उसे भी होता है, जो खुद मौत का सौदागर होता है।
वह पुलिस मुखबिर बड़े जोर का ठहाका लगा कर बोला:
– ऐसा है न सर, जब पिछाड़ी लगी फटने, तो रेवड़ियां लगी बंटने।

(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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