सामना संवाददाता / मुंबई
विधानसभा चुनाव से पहले घाती सरकार हर दिन सैकड़ों शासनादेश जारी कर रही थी। लेकिन अब, जबकि सभी दल चुनाव की तैयारियों में जुटे हुए हैं इसी में साजिश के तहत मौजूदा सरकार ने आधिकारिक वेबसाइट से आठ को छोड़कर बाकी अब तक लिए गए हजारों शासनादेशों को ही गायब करा दिया है। कहा जा रहा है कि यह डिजिटल घोटाला प्रशासन द्वारा चल रहा है, क्योंकि आचार संहिता के बाद जारी शासनादेशों पर चुनाव आयोग ने आंखें मूंद ली हैं। हालांकि, वेबसाइट पर पिछले सभी निर्णयों को हटाने से आवश्यक कार्य में बाधा आने की संभावना है।
उल्लेखनीय है कि १५ अक्टूबर को जैसे ही केंद्रीय चुनाव आयोग ने चुनाव की घोषणा की राज्य में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई। लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद से ही महायुति सरकार ने कैबिनेट के फैसलों और शासनादेश जारी करने की झड़ी लगा रखी थी। आचार संहिता लागू होने से पहले सप्ताह के दौरान जीआर की संख्या हजारों में थी। आचार संहिता लागू होने के बाद भी कुछ फैसले लिए गए। लेकिन अब आधिकारिक वेबसाइट पर शुक्रवार रात तक सरकार की वेबसाइट पर सिर्फ आठ सरकारी फैसले ही दिख रहे थे।
कई लोगों का सतर्क रुख
कई नेताओं ने संकेत दिया कि उनके कार्यादेश के लिए आदेश जारी किए जाएंगे। उसके लिए प्रशासन पर दबाव बनाया गया। महायुति सरकार ने महामंडलों में नियुक्तियां की झड़ी लगा दी थी। लेकिन आचार संहिता के चलते पद स्वीकार करें या नहीं, इस असमंजस में कई लोगों ने जोखिम न लेने की स्थिति अपना ली। शासनादेश की इस अभूतपूर्व गड़बड़ी का संज्ञान लेते हुए केंद्रीय चुनाव आयोग ने पत्र लिखकर मुख्य सचिव को फटकार लगाई। आचार संहिता लागू होने के बाद लिए गए निर्णय यथावत रहने के निर्देश दिए गए। इन घटनाक्रमों के चलते कई लोग सर्तक रुख अपनाए हुए हैं।
असमंजस नहीं हुई है खत्म
लोगों में असमंजस की स्थिति खत्म नहीं हुई है। शक्तिपीठ हाईवे के भूमि अधिग्रहण संबंधी आदेश का भी यही हाल था। सरकार द्वारा जारी किए गए हजारों सरकारी निर्णयों में से कौन सा आदेश मान्य होगा और कौन सा आदेश अमान्य माना जाएगा, इसे लेकर प्रशासन में अभूतपूर्व असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। आचार संहिता का मामला हमारे खिलाफ न उठे, इस डर से प्रशासन ने अचानक वेबसाइट से सभी जीआर हटा दिए हैं। क्या यह कोई तकनीकी त्रुटि है या गड़बड़ी को सुलझाने के लिए कोई प्रयास है। फिलहाल इसे लेकर अभी तक कोई भी तस्वीर स्पष्ट नहीं है।