मुख्यपृष्ठनए समाचारअनर्थ : आरबीआई हुआ लाचार ...अब विदेशी सिखाएंगे मुद्रा भंडार का प्रबंधन

अनर्थ : आरबीआई हुआ लाचार …अब विदेशी सिखाएंगे मुद्रा भंडार का प्रबंधन

नोटबंदी और फिर बढ़ती महंगाई के कारण अक्सर आरबीआई की आलोचना की जाती है। आरबीआई पर आरोप लगते रहते हैं कि वह देश में मुद्रा का प्रबंधन नहीं कर पा रहा है और इस कारण देश में महंगाई बढ़ती जा रही है। अब आरबीआई खुद मान रहा है कि वह मुद्रा भंडार का प्रबंधन ठीक से नहीं कर पा रहा है। ऐसे में वह विदेशी मुद्रा प्रबंधकों की सेवाएं लेगा। जाहिर सी बात है कि जब विदेशी प्रबंधकों की सेवाएं ली जाएंगी तो उनके लिए विदेशी मुद्रा भी खर्च करना पड़ेगा।
खुद आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस बात का संकेत दिया है कि रिजर्व बैंक ने बाहरी संपत्ति प्रबंधकों को प्रबंधन के लिए अपने विदेशी मुद्रा भंडार की एक छोटी राशि की पेशकश की है। हालांकि, उन्होंने यह साफ किया कि यह भंडार के प्रबंधन की रणनीति में बदलाव नहीं, बल्कि अनुभव हासिल करने के लिए किया गया है।
शक्तिकांत दास ने अब इस मामले में खुद सफाई देते हुए कहा, ‘रिजर्व बैंक अपने भंडार का प्रबंधन खुद करना जारी रखेगा। यह एक प्रयोग है, जिससे हम सीखना चाहते हैं कि वे किस तरह काम करते हैं। यह बहुत छोटी सी राशि है, जिसकी पेशकश उन्हें हम कर रहे हैं। हम बाहरी संपत्ति प्रबंधकों के साथ रू-बरू होकर सीखना चाहते हैं और इससे हमें अपनी आंतरिक क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी।’ अक्टूबर २०२१ में सेंट्रल बैंकिंग ने रिजर्व बेंचमार्क का हवाला देते हुए कहा था कि कई केंद्रीय बैंकों ने बताया है कि वे अपने रिजर्व पोर्टफोलियो पर बाहरी प्रबंधकों के साथ काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन की बात आती है तो ३ प्राथमिकताओं का ध्यान रखा जाता है, जिसमें पहली सुरक्षा, दूसरी नकदी की स्थिति और तीसरी प्राथमिकता मुनाफा है। दास ने कहा कि २०१३ के दौरान ‘टेपर टैंट्रम’ से मिले अनुभव से बचने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का निर्माण एक सचेत रणनीति थी। उन्होंने कहा, ‘हम वह स्थिति दोबारा दोहराना नहीं चाहते हैं। उसके लिए हमें भंडार बनाने की जरूरत थी, जो मजबूत होना चाहिए। तेज है और लक्ष्य में बदलाव की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, ‘पिछले २ या ३ साल के अनुभवों के बाद अब नीति में बदलाव में कोई भी व्यक्ति जल्दबाजी नहीं कर सकता है।’

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