हाल ही में पीएम मोदी ने ७० हजार लोगों को नौकरी का नियुक्ति पत्र देने का शो किया। शो इसलिए कि कई बरस बाद नौकरी मिली भी तो सिर्फ ७० हजार लोगों को, जबकि देश में करोड़ों लोग बेरोजगार हैं। सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटनरिंग ऑफ इंडियन इकॉनोमी) के आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले एक दशक में बेरोजगारी की दर पीक पर पहुंच चुकी है। सीएमआईई के डेटा के मुताबिक इस साल अप्रैल महीने के दौरान देश में बेरोजगारी की दर ८.५ फीसदी थी। देश में बेरोजगारी की दर तो ज्यादा है ही, अर्द्ध-बेरोजगारी की दर भी ज्यादा है। यह सब तब, जब हिंदुस्थानी अर्थव्यवस्था की विकास दर दुनिया में सबसे ज्यादा रहने की बात की जा रही है। तब भी युवा आबादी कम वेतन वाला कच्चा काम खोज रही है। जो नौकरी उन्हें मिल भी गई है, उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। सरकारी नौकरी निकल नहीं रही है। जो नौकरी निकल रही है, उसमें भी ज्वॉइनिंग की गति बेहद धीमी है। साल २०१९ के आम चुनाव से पहले रेलवे में जो लाखों नौकरियों का विज्ञापन निकला था, उसमें अभी नियुक्ति पत्र बांटा जा रहा है। केंद्र सरकार में ही इस समय लाखों पद खाली हैं। लेकिन उन पदों पर भर्ती की नहीं जा रही है। केंद्रीय सचिवालय में ही क्लेरिकल और एमटीएस के अधिकतर पदों पर आउटसोर्स स्टाफ को रखा गया है। इन्हें एक तो वेतन पक्के कर्मचारी के मुकाबले काफी कम मिलता है, तिस पर नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं। इस समय युवा आबादी को जब पक्की नौकरी नहीं मिलती है तो वे कच्ची नौकरी या दिहाड़ी नौकरी खोजते हैं। वह भी नहीं मिलती है तो अपना कोई छोटा-मोटा काम शुरू करते हैं। यही अर्द्ध-बेरोजगारी है। जिनकी पक्की नौकरी है, उनके भी रोजगार का कोई भरोसा नहीं है। निजी क्षेत्र में प्रतिष्ठित कंपनियों को छोड़ दें तो शेष में नौकरी कम शोषण ज्यादा होता है। तब भी ऐसी जगह काम करनेवालों का नाम रोजगारशुदा लोगों की लिस्ट में शामिल कर लिया जाता है। गांवों से निकलने वाले अधिकतर लोग सरकारी नौकरी चाहते हैं, लेकिन वह मिलती नहीं है। इसलिए युवा इस तरह की नौकरी में फंस जाते हैं।