सामना संवाददाता / मुंबई
हिंदुस्थान के दक्षिण-पूर्व तटीय वन क्षेत्र से ‘गेक्कोऐला’ उपप्रजाति की छिपकलियों की दो नई प्रजाति की खोज करने में ठाकरे वाइल्ड लाइफ फाउंडेशन के शोधर्ताओं को सफलता मिली है। तेजस ठाकरे, ईशान अग्रवाल और अक्षय खांडेकर महाराष्ट्र के इन तीन युवा शोधकर्ताओं ने यह गौरवपूर्ण कार्य किया है। इन शोधकर्ताओं ने छिपकली की नई प्रजाति को ‘सर्टोडॅक्टिलस ईरुलाओरम’ और ‘सर्टोडॅक्टिलस रेलिक्टस’ ऐसे नाम दिए हैं। दक्षिण-पूर्व हिंदुस्थान में पर्वतों पर पिछले कई वर्षों से लगातार नई प्रजाति के जंतु मिल रहे हैं। हाल ही में मिली दो नई प्रजातियों से दक्षिण हिंदुस्थान के सदाबहार वन को जीव-जंतुओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाने लगा है। उंगली के विशेष वक्राकार आकार के चलते छिपकली सर्टोडॅक्टिलस प्रजाति की मानी जा रही है। शरीर पर विशेष रंग, छोटा आकार और सिर पर ग्रंथि के आभाव के कारण इस छिपकली का समावेश ‘गेक्कोऐला’ उपजाति से मेल खाता है। ‘गेक्कोऐला’ इस उपजाति की छिपकली देश के द्वीपकल्प और श्रीलंका में पाई जाती हैं।
‘सर्टोडॅक्टिलस ईरुलाओरम’ इस प्रजाति का शोध तमिलनाडु के कांचीपुरम और तिरुवल्लूर इन जिलों में पता चला है। ‘ईरुला’ यह आदिवासी द्रविणी जमाति के चलते छिपकलियों का नामकरण ईरुलाओरम किया गया है। ईरुला यह जमाति सांप से विष निकालने के लिए प्रसिद्ध है। सांप के काटने पर उपचार के लिए भी जानी जाती है।
• ‘सर्टोडॅक्टिलस रेलिक्टस’ इस प्रजाति का शोध आंध्र प्रदेश के तिरुपति और नेल्लोर इन दो जिलों में पता चला है। सीमित अनुकूल भू-प्रदेश में छिपकर रहनेवाली इन छिपकलियों का नामकरण रेलिक्टस अर्थात लैटिन शब्दों में किया गया है। ‘सर्टोडॅक्टिलस रेलिक्टस’ यह प्रजाति छोटे प्रदेश में पैâली है।
ठाकरे वाइल्ड लाइफ फाउंडेशन ने अब तक महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उड़ीसा और गोवा जैसे राज्यों में छिपकली, बिच्छू, केकड़े, घोंघा, मछलियां आदि ५० से अधिक दुर्मिल प्रजातियों के जंतुओं का शोध करने में सफलता पाई है।