मुख्यपृष्ठसमाज-संस्कृति`अमलतास के फूल' काब्य-संग्रह पर परिचर्चा

`अमलतास के फूल’ काब्य-संग्रह पर परिचर्चा

कविता मैदान में प्रवाहित किसी नदी की तरह होती है। नदी के दोनों किनारे प्रवाह को नियंत्रित करते हैं, तभी लहरों की कल कल में मोहक संगीत सुनाई देता है। कनक लता की कविताएं भी मन में प्रवाहित भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति हैं। अपनी सोच, सरोकार और अपने नजरिए से वे इन भावनाओं पर नियंत्रण रखती हैं। कनक लता ने समय और समाज के सवालों के साथ ही अपनी परंपरा और संस्कृति को अपनी अभिव्यक्ति का जरिया बनाया है। उनकी कविताओं में नारी अस्मिता के साथ ही भूख, गरीबी और देश प्रेम भी है। सावन और आषाढ़ के साथ तीज-त्योहार और उत्सव भी हैं। मन की कोमल अनुभूतियों के साथ ही निजी अनुभवों और स्मृतियों के चित्र भी हैं। उनकी काव्य अभिव्यक्ति में सहजता और संप्रेषणयता है। मुझे उम्मीद है कि विविध रंगों और सुगंधों से समृद्ध कनक लता का यह संग्रह पाठकों को पसंद आएगा। ये शब्द देवमनी पांडे के थे, जो उन्होंने डॉ. कनक लता तिवारी के `अमलतास के फूल’ काव्य-संग्रह पर परिचर्चा के दौरान कहे।
रविवार, 13 अक्टूबर 2024 को मृणालताई हाल, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट, गोरेगांव में आयोजित चित्रनगरी सम्वाद मंच के कार्यक्रम में डॉ. कनक लता तिवारी के काव्य-संग्रह ‘अमलतास के फूल’ पर चर्चा हुई। राजेश सिन्हा, कृपाशंकर मिश्र, विजय पंडित और देवमणि पांडेय ने उनकी कविताओं पर विचार व्यक्त किए। वक्ताओं ने उनकी कविताओं को सराहा और उन्हें एक सम्भावनाशील कवयित्री बताया।
काव्य पाठ के सत्र में कवि और कवयित्रियों ने अपनी विविधरंगी कविताओं से माहौल को खुशगवार बना दिया। हंसते-मुस्कराते ठहाकों और तालियों के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम का सुरुचिपूर्ण संचालन डॉ. मधुबाला शुक्ल ने किया। डॉ. कनक लता तिवारी शब्दाक्षर महाराष्ट्र की अध्यक्ष हैं और राष्ट्रीय अध्यक्ष रवि प्रताप सिंह ने उनके काव्य-संग्रह की हार्दिक शुभकामनाएं प्रदान कीं।

अन्य समाचार