सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र में पिछले तीन वर्षों से घाती सरकार का राज है। इस सरकार के कार्यकाल में गैर संक्रामक बीमारियां निरंकुश हो गई हैं। इस फेहरिस्त में एनीमिया भी शामिल हो गया है। जानकारी के मुताबिक, प्रदेश के ३३ में से १६ जिले एनीमिया कुपोषित हो चुके हैं। इन जिलों में इस रोग का प्रसार ५५ फीसदी से भी ज्यादा हो चुका है। इससे स्पष्ट हो गया है कि यह सरकार लोगों के स्वास्थ्य से इस कदर खेलने का काम कर रही है।
सूत्रों के मुताबिक, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सबसे अधिक ४,१६८ मामले हैं। इसके बाद नागपुर में २,६१७, अमरावती में १८६१, गोंदिया में १,३९८ और यवतमाल में ९५० हैं। इसके साथ ही अन्य ८ जिलों में भी इसके मामले बढ़ने लगे हैं। फिलहाल, राज्य में एनीमिया की चपेट में आए १२ जिलों में भले ही कई उपाय किए जा रहे हों, लेकिन सब के सब नाकाम साबित हो रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, एनीमिया विभिन्न बीमारियों को न्योता देने की जड़ है।
तीन में से एक महिला पीड़ित
यह बीमारी मुख्यत: ग्रामीण महिलाओं में देखी जाती है। तीन में से एक महिला एनीमिया से पीड़ित है। इसके समाधान के रूप में विशेष प्रशिक्षण आयोजित किया जाता है। इसमें बताया जाता है कि महिलाओं को परिवार के साथ-साथ अपनी सेहत और सात्विक आहार का भी ख्याल रखना चाहिए। कृषि में रसायनों के अधिक प्रयोग से बीमारियां उत्पन्न होती हैं।
कैसे एनीमिया मुक्त होगा महाराष्ट्र
एनीमिया मुक्त हिंदुस्थान अभियान के तहत छह महीने से १९ वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती और शिशुवती महिलाओं को आईएफए की खुराक दी जाती है। आशा सेविकाओं द्वारा राज्य में गर्भवती और शिशुवती महिलाओं के साथ-साथ छोटे बच्चों को आयरन, फॉलिक एसिड सिरप और टेबलेट दी जाती है। साथ ही स्कूलों में भी बच्चों को आईएफए की दवाई दी जाती है। इसके बावजूद महाराष्ट्र के १२ जिलों में एनीमिया के ५५ फीसदी से अधिक मामले सामने आए हैं। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि महायुति सरकार राज्य को एनीमिया से वैâसे मुक्ति दिलाएगी।