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जहं-जहं पांव पड़े संतन के…मनमाने विकास कार्य से नाराजगी!

-अयोध्या के बाद चार धाम में भी बीजेपी की हार

मनमोहन सिंह

`जहं-जहं पांव पड़े संतन के, तहंं-तहं बंटाधार’। अब ये महज इत्तफाक है या बुरा वक्त, लेकिन ये कहावत सटीक बैठती दिख रही है। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में अयोध्या जैसी सीट पर हार के बाद अब बद्रीनाथ से भी बीजेपी को शिकस्त मिली है। भगवान राम की जन्मभूमि में किसी ने बीजेपी की हार की कल्पना नहीं की थी। इतना ही नहीं, बल्कि बीजेपी को प्रयागराज, चित्रकूट, नासिक और रामेश्वरम तक की सीटों पर भी शिकस्त मिली है। बीजेपी का देवभूमि उत्तराखंड में जादू का न चलना सिर्फ बीजेपी ही नहीं, बल्कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए भी मसला बन गया है, क्योंकि धामी के नेतृत्व में भाजपा की यह पहली चुनावी हार है।
पूरी धामी सरकार बद्रीनाथ और मंगलौर इन दो सीटों पर जीत के लिए जी जान से जुटी हुई थी। बद्रीनाथ में कांग्रेस के लखपत सिंह बुटोला ने पूर्व विधायक राजेंद्र भंडारी को ५,०९५ वोटों से हराया और मंगलौर में कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन से भाजपा के करतार सिंह भड़ाना ४२२ वोटों के करीबी अंतर से हारे। भंडारी की इस हार ने उनके सियासी भविष्य पर भी सवाल उठा दिया है। राजेंद्र भंडारी बद्रीनाथ से कांग्रेस विधायक थे, लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान वे भाजपा में आ गए, जिसके चलते उन्हें बाद में विधायकी छोड़नी पड़ी थी। उत्तराखंड में दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा पहली बार मंगलौर विधानसभा सीट पर जीत की उम्मीद से उतरी थी। हरिद्वार जिले की यह मुस्लिम बहुल सीट भाजपा के लिए हमेशा हार का कारण रही है। यहां अब तक हुए सभी चुनावों में पार्टी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है।
चार धाम वाली बद्रीनाथ सीट पर भी हार की वजह सरकार का मनमाना रवैया रहा, जिससे स्थानीय लोगों में रोष है। इसकी पहली वजह यह रही कि कुछ महीनों पहले ही बद्रीनाथ में पंडा-पुजारियों और स्थानीय लोगों ने विरोध दर्ज किया था। वजह ये थी कि वीआईपी दर्शन की सुविधा की वजह से आम दर्शनार्थियों को काफी दिक्कतें हो रही थीं। इस पर यहां के स्थानीय लोग पहले जैसी दर्शन व्यवस्था की मांग कर रहे थे। इसके साथ ही चारधाम यात्रा के शुरुआती दौर में हुई समस्याओं के कारण भी लोगों में चार धाम के मास्टर प्लान को लेकर नाराजगी देखी गई थी।
यहां तीर्थ पुरोहितों समेत स्थानीय लोगों में भी शासन-प्रशासन के प्रति भारी नाराजगी है। लोगों का कहना है कि यहां मनमाने ढंग से विकास कार्य किए जा रहे हैं। इससे तीर्थ पुरोहितों में भी नाराजगी है। विकास के नाम पर प्रहलाद धारा और नारायण धारा का रूप बदला गया है। बद्रीनाथ में चल रहे रिवरप्रâंट निर्माण कार्य के तहत अलकनंदा नदी के किनारे की शिलाओं को विकास के नाम पर हटाया जा रहा है, इसकी जगह आरसीसी दीवार बनाई जा रही है। ऐसे में मानसून शुरू होते ही भारी बारिश की वजह से अलकनंदा में बाढ़ के हालात बन रहे हैं। अब लोगों का कहना है कि इस डेवलपमेंट के नाम पर हो रहे काम की वजह से बाढ़ के हालात बन रहे हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि भाजपा विकास के नाम पर जो मनमानी कर रही है, उसका खामियाजा उत्तराखंड को भुगतना पड़ रहा है। स्थानीय राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि बद्रीनाथ विधानसभा में भाजपा की हार की वजह बद्रीनाथ धाम का मास्टर प्लान, जोशीमठ भू धंसाव आपदा, हेलंग में महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, बीजेपी द्वारा दलबदलू को टिकट देना, जैसे कई स्थानीय मुद्दे थे जिन पर जनता की सरकार से गहरी नाराजगी रही।

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