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डॉक्टर बिना मतलब के लिख रहे दवाएं … सेहत के साथ मरीजों की जेबों पर पड़ रहा असर! … एम्स के अध्ययन में चौंकानेवाला खुलासा

सामना संवाददाता / मुंबई
चिकित्सकों द्वारा प्रिस्क्रिप्शन पेपर पर लिखी गई दवाओं के नाम को समझना आम आदमी के लिए मुश्किल होता है। कई बार तो मेडिकल स्टोरों में फार्मासिस्ट के लिए भी समझना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इस बीच एम्स ने अपने अध्ययन में पाया है कि ज्यादातर चिकित्सक काफी असमंजस की स्थिति में रहते हैं। इसके साथ ही चिकित्सक ज्यादा दवाइयां भी लिख रहे हैं। ऐसे में चिकित्सकों की पर्ची से मरीजों की न केवल परेशानी बढ़ जाती है, बल्कि उनकी सेहत के साथ ही जेब पर भी असर पड़ता है।
उल्लेखनीय है कि मेडिकल गाइडलाइंस के मुताबिक, डॉक्टरों को दवा की पर्ची पर पूरी जानकारी साफ-साफ लिखना जरूरी है। एम्स के अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है कि प्रत्येक दो में से एक प्रिस्क्रिप्शन में गाइडलाइंस का पालन नहीं किया जा रहा है। ये पर्चियां असमंजस वाली और मानक इलाज की गाइडलाइंस से बिलकुल अलग थी। इनमें से १० फीसदी पर्चियां तो ऐसी थीं कि वे किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं हो सकती हैं। एम्स ने कुल ४,८३८ प्रिस्क्रिप्शन पेपर्स का अध्ययन किया।
मरीजों को होता है नुकसान
चिकित्सक बाजार और दवा कंपनियों के दबाव में अनावश्यक या अनुचित एंटीबायोटिक दवाएं लिख रहे हैं। इनके ज्यादा इस्तेमाल से लोगों में एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस पैदा होने का खतरा है। यहां तक कि सुपरबग्स भी बन सकते हैं। इससे इंफेक्शन का इलाज करना अधिक कठिन हो जाता है।
मरीजों पर पड़ता है आर्थिक बोझ
मरीजों पर जिन दवाओं की जरूरत ही नहीं है, उन्हें खरीदने का खर्च बढ़ता है। इसके अलावा अगर बिना जरूरत के इस्तेमाल की जा रही दवाओं के साइड इफेक्ट्स हुए तो उसके इलाज में भी पैसे खर्च करने होते हैं। इससे मरीज पर आर्थिक बोझ बढ़ता है। इसके साथ ही गैर जरूरी दवाइयों से इंटरनल ऑर्गन्स पर बुरा असर हो सकता है।

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