अनिल मिश्रा / उल्हासनगर
शहरी व ग्रामीण प्रशासन आवारा कुत्तों के आतंक को रोकने में फेल हुआ है जिसकी वजह से कुत्तों के काटने के मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है। इसकी वजह से मध्यवर्ती अस्पताल का बजट बिगड़ता दिखाई दे रहा है। जितने केस डॉग बाइट के आ रहे हैं उतनी संख्या में रेबीज की दवा नहीं है। बता दें कि प्रतिवर्ष करीब ४० से ५० हजार केस मध्यवर्ती अस्पताल में आते हैं। उल्हासनगर पालिका प्रशासन का कहना है कि सरकार की गाइड लाइन के अनुसार ही आवारा कुत्तों की संख्या को नियंत्रित में किया जाता है। उल्हासनगर के अलावा मध्यवर्ती अस्पताल में मुरबाड, कर्जत, भिवंडी, कसारा में रहने वाले लोग भी डॉग बाइट का इलाज करवाने यहां आते हैं। अस्पताल से मिली जानकारी के मुताबिक, अप्रैल २०२३ से लेकर जुलाई २०२३ तक चार माह में २,९९४ लोगों को रेबीज का डोज दिया गया।
इस डर से काटते हैं कुत्ते
पशु चिकित्सक डॉक्टर श्रवण सिंह ने बताया कि डॉग बाइट के मामलों की संख्या कुत्तों के बच्चे देने के बाद अधिक होती है। कुत्तों को लगता है कि उनके बच्चों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, इस डर से वे काटते हैं। नसबंदी किए हुए कुत्ते बच्चे भले ही पैदा नहीं कर सकते है परंतु वे काटते तो हैं ही। कुत्तों की नसबंदी से कुछ हद तक जनसंख्या नियंत्रण में है परंतु अभी पूरी तरह से नहीं है।
लाखों में है रेबीज इंजेक्शन का खर्चा
मध्यवर्ती अस्पताल के सिविल सर्जन डॉक्टर मनोहर बनसोडे ने बताया कि आवारा कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रण का काम नपा, मनपा, ग्राम पंचायत प्रशासन का होता है। कुत्तों के कारण अस्पताल का बजट बिगड़ जाता है। फिलहाल रेबीज का इंजेक्शन पर्याप्त मात्रा से अधिक ही रखा जाता है ताकि किसी को भी रेबीज इंजेक्शन की कमी की शिकायत न हो। साल भर में करीब ४० से ५० हजार के बीच डॉग बाइट के मामले आते हैं। रेबीज इंजेक्शन का भी खर्च लाखों में रहता है।