प्यार तो हमेशा से कहलाया अंधा
कानून की आंखों पर भी पट्टी
नफरत की खुली है सारी आंखें
जोरों से चला दहशत का डंडा।
सच तो आज है गूंगा-बहरा
झूठ के सर सजे हैं ताज
जंगल राज ताकत से चलता
फरेबियों की निरंतर ऊंची आवाज।
खुशियों के गांव दिखे कहीं न
न ही बसे चाहतों के शहर
लालच के जंगल पनप रहें हैं
भड़की आग छल-कपट की
घुल रहा धोखे-नफरत का जहर
भड़की आग, लिया लपेट
झुलस रही अब आबादी
किस से करें शिकवा-शिकायत
आगे दिखे बस बर्बादी
सच्चे लोगों का हो रहा मूंह काला
झूठों का हो रहा हर तरफ बोलबाला।
मीठे का परहेज
मीठे से अब करूं मैं परहेज
शब्द मीठे अमृत घोलें
रस रिस रिस करें घाव
जख़्म वो दे जो भरे नहीं
वक्त रहते समझ न पाऊं मैं उनके खेले दाव।
मीठे के हैं कई आकार और विकार
मन को लुभाते, ललचाते हैं इनके पेंच हजार
आकर्षण भरे इनके चमचमाते अनेकों भेस
अब तो मान लो स्यानों का उपदेश,
कड़वा खाओ, कड़वा बोलो
दो पल की होने दो बुराई
सच है कड़वा रुलाए एक बार
मीठे के वार बारंबार, कई हजार
मुंह पे आपके जो बोले कड़वा
मित्र सच्चा वही कहलाता है
मीठा बोल, जो मन बहलाता
अंततः जान पे वो बन आता है।
इसीलिए कहती हूं मीठे से करो परहेज
बड़े बूढ़ों के मान लो उपदेश।
-नैंसी कौर, नई दिल्ली