योगेश कुमार सोनी
वरिष्ठ पत्रकार
बीते दिनों अमेरिका में चुनाव हुए और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार जीत हासिल की, जिसको लेकर एक बड़ा शपथ ग्रहण समारोह हुआ, जिसमें विश्वभर के गणमान्य लोगों सहित भारत से भी अच्छी संख्या में बड़े लोगों को आमंत्रित किया गया। शपथ ग्रहण से पहले और बाद में ट्रंप भारतीयों से बड़ी आत्मीयता से मिले। सब कुछ अच्छे से संचालित हो रहा था कि अचानक वहां भारत विरोधी पन्नू दिखाई दिया, जिससे वहां हर भारतीय के अंदर एक निराशाजनक स्थिति पैदा हो गई। भारत सरकार यह सोचकर हैरान है कि जब अमेरिका इस बात से पूरी तरह अवगत है कि खालिस्तानी समर्थक पन्नू भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त है और भारत उसे लेकर अत्यंत संवेदनशील है तो भी उसे ट्रंप से शपथ ग्रहण समारोह में क्या सोचकर बुलाया गया।
जहां एक ओर मोदी के अनुसार, डोनाल्ड ट्रंप उनके अच्छे दोस्त हैं तो ऐसा सोचकर पन्नू को बुलाया गया। इस घटना की सच्चाई क्या है, यह तो अभी पूर्ण रूप से खुलकर सामने नहीं आई, लेकिन कई राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप ने पन्नू को बुलाकर यह साबित कर दिया कि वह अब ट्रंप भारत से वैसे रिश्ते नही रखेंगे, जैसे उनके पिछले कालखंड में थे। विश्व से सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति का शपथ समारोह और भारत के धुर विरोधी माने जाने वाले खालिस्तानी पन्नू का इतने बड़े आयोजन में आने से भारत ही अन्य देशों की ओर से सवाल खडे हो रहे हैं।
ट्रंप की शपथ से ज्यादा पन्नू की चर्चा हो रही है। जैसा कि ट्रंप के पिछले कालखंड में मोदी के नाम व योजनाओं के ढोल-नगाड़े बजे थे तो क्या इस बार भी ऐसा होना संभव है? क्या ट्रंप इतिहास में कुछ गलती कर गए थे, जिसको सुधार रहे हैं या पन्नू को बुलाकर केवल भारत को नीचा दिखाने या चिढ़ाने का काम कर रहे हैं। ईरान का मामला, मध्य एशिया से संबंध, अमेरिका ने जीएसपी से बाहर निकाला, भारत ने टैरिफ बढ़ा दिया, एस-400 मिसाइल का विवाद, दोनों देशों के व्यापारिक संबंध, भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक रिश्ते के अलावा ट्रंप के कालखंड में कई ऐसे मामले में थे, जिससे दोनों के रिश्तों में प्रभाव पड़ा था। उस समय पर भी इस तरह की बातें सामने आई थी कि जिससे आंतरिक तौर पर प्रभाव पड़ा था।
भारत ने रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने की डील की थी। इस पर अमेरिका ने चेतावनी दी थी कि यदि भारत इस फैसले पर आगे बढ़ता है तो अमेरिका के साथ भारत के रक्षा संबंधों पर गहरा असर पड़ेगा और हुआ भी यही था, जिससे दोनों देश के मन में कुंठा आ गई थी। अमेरिका की ओर कई अन्य ऐसे मामले हो गए थे, जिससे आंतरिक तौर पर दरारें आ गई थी, लेकिन मोदी अपने रिश्तों का ढोल बजाते रहे और हकीकत कुछ और सामने आ रही है। न गुणवत्ता पर काम और न ही नीतियां आगे बढीं। जितने ताम-झाम के साथ मोदी ने एंट्री की थी, उससे लगा था कि भारत को बड़ा फायदा होगा, लेकिन अब तक कुछ नही हो पाया। जबकि बीच में जो बाइडन का भी कालखंड निकल गया।