बहुतेरे दरवाजे खोले हैं हमने।
जाति-पांति, राग-द्वेष के दरवाजे।
धर्म-अधर्म, वाद-विवाद के दरवाजे।
प्रेम-मोहब्बत, ईर्ष्या-नफरत के दरवाजे।
ईमानदारी-बेईमानी के दरवाजे।
अशांति-कलह, दुश्मनी के दरवाजे।
ये सभी दरवाजे बाहर की दुनिया में हैं खुलते।
और अशांति का आलम सदा है रहता।
हमारे ‘अंदर’ भी है एक दरवाजा,
और वह है ‘शांति का दरवाजा’
‘शांति’ बार-बार दस्तक देकर कह रही है–
‘खोलो-खोलो इस दरवाजे को’।
और अंदर की दुनिया में प्रवेश करो,
शांति को महसूस करने का यही एक तरीका है–
अपने भीतर का यह दरवाजा खुलने से पाओगे–
‘प्रेम’-दया-आनंद’ का भाव,
सरलता-सहजता, सहानुभूति का भाव।
ईश्वर की सराहना, धन्यवाद का भाव।
जीवन को धन्य व सफल होने का भाव।
तो मित्रों! खोलो-खोलो–
यह शांति का दरवाजा, और
सुख-शांति-आनंद की बंशी बजाओ।
– आरडी अग्रवाल ‘प्रेमी’, खेतवाड़ी मुंबई।