सामना संवाददाता / नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों से संबंधित यौन सामग्री (चाइल्ड पोर्न) को रखना या उसे कहीं भेजना अपराध माना है। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय देते हुए मद्रास हाई कोर्ट का वह निर्णय पलटा है, जिसमें बच्चों से जुड़ी यौन सामग्री रखना अपराध नहीं माना गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसी के साथ ही इस प्रकार की सामग्री के नामकरण को लेकर भी कुछ आदेश दिए हैं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने इस मामले की सुनवाई करते हुए सोमवार, २३ सितंबर को यह निर्णय सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपने फोन या अन्य किसी डिजिटल उपकरण में चाइल्ड पोर्न को रखना, उसको नष्ट न करना या उसके बारे में एजेंसियों को सूचित न करना अपराध की श्रेणी में आएगा।
बता दें कि मद्रास हाई कोर्ट ने जनवरी, २०२४ में दिए गए अपने निर्णय में कहा था कि चाइल्ड पॉर्न डाउनलोड करना और इसे प्राइवेट में देखना पॉक्सो और आईटी के तहत अपराध नहीं है। यह मामला २८ साल के व्यक्ति से जुड़ा था, उसके ऊपर चाइल्ड पॉर्न डाउनलोड करने और इसे देखने पर पॉक्सो और आईटी एक्ट पुलिस ने लगाया था। हाई कोर्ट ने अपने पैâसले में कहा कि आरोपित ने प्राइवेट में ये सब किया, बिना किसी पर कोई प्रभाव डाले हुए। जज ने कहा कि यदि वो कंटेंट बांटने लगता, तब इन एक्ट्स के तहत उस पर धाराएं लगाई जा सकती हैं। कोर्ट ने इस व्यक्ति के खिलाफ इन दोनों धाराओं में दर्ज किया गया मामला भी रद्द कर दिया था। मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था कि पोर्न देखना वर्तमान समय में शराब-सिगरेट पीने जैसी बीमारी बन चुकी है।
रखना, भेजना और बेचना सब अपराध
कोर्ट ने कहा कि चाइल्ड पोर्न रखना या उसे डिलीट न करना अपराध तब माना जाएगा, जब इसे रखने वाले की मंशा इसे आगे प्रसारित करने की हो। कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति की मंशा उस समय के हालात तय करेंगे। यह पॉक्सो एक्ट की धारा १५(१) के तहत अपराध माना जाएगा। कोर्ट ने पॉक्सो के तहत अपराध मानने को लेकर दो और धाराओं के नियम तय किए। इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि अपने डिवाइस पर चाइल्ड पोर्न रखने के साथ उसे लोगों में बांटना, कहीं भेजना या फिर ऐसे ही काम में मदद करना भी अपराध माना जाएगा। कोर्ट ने इसे पॉक्सो की धारा १५(२) के तहत अपराध माना है। यहां तक कि इस तरह की सामग्री को किसी को दिखाना भी अपराध के तहत आएगा। सुप्रीम कोर्ट ने ‘चाइल्ड पोर्न’ या बच्चों से जुड़ी पोर्न सामग्री पर दिए इस निर्णय में मद्रास हाई कोर्ट के हालिया निर्णय को पलट दिया है।
यदि किसी के डिवाइस पर इस तरह का चाइल्ड पोर्न रखा न गया हो, लेकिन अगर इसे कोई इंटरनेट पर देखता है तो यह भी अपराध है। इंटरनेट पर ऐसी सामग्री देखना, इसे आगे भेजना और इसको बांटना अपराध कहा जाएगा। इंटरनेट पर देखना भी इसे अपने डिजिटल डिवाइस पर रखने के बराबर माना जाएगा। कोर्ट ने इसे पॉक्सो की धारा १५ के तहत अपराध बताया है।