३ साल में १३१ बड़े हादसे
सामना संवाददाता / मुंबई
जुलाई २०२१ से जून २०२४ के बीच भारत में १३१ बड़े ट्रेन हादसे हुए हैं, जिनमें से ९२ मामले डिरेलमेंट यानी ट्रेन के पटरी से उतरने के हैं। जानकारी के मुताबिक, इनमें ६४ पैसेंजर एक्सप्रेस ट्रेनें और २८ मालगाड़ियां शामिल हैं। हालांकि, इन हादसों में कितनी मौतें हुर्इं, इस बात की जानकारी उपलब्ध नहीं है। भारतीय रेल के अनुसार, कॉन्सीक्वेंसीअल यानी बड़े रेलवे हादसे वे हैं, जिनमें लोगों को गंभीर चोट लगी हो, किसी की मौत हुई हो, रेल यातायात में व्यवधान आया हो और रेलवे की संपत्ति का नुकसान हुआ हो। यह जानकारी अजय बसु द्वारा डाली गई आरटीआई से प्राप्त हुई है।
यह तथ्य चिंताजनक है कि २०२१ से २०२४ के बीच रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के कार्यकाल में ये हादसे हुए हैं। विपक्ष ने कई बार उनके इस्तीफे की मांग की है, जबकि वे वंदे भारत और बुलेट ट्रेन की बात करते हैं। उनकी कार्यकुशलता पर ऐसे हादसे सवाल खड़े कर रहे हैं।
२०१५-२१ के बीच ४४९ ट्रेन दुर्घटनाएं
२०१५-१६ से २०२१-२२ के बीच छह साल की अवधि में ४४९ ट्रेन दुर्घटनाएं हुई थीं, जिनमें कोकण रेलवे की दुर्घटनाएं शामिल नहीं हैं। २०१७-१८ से २०२१-२२ के बीच ट्रेन दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों और घायलों के आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि २०१९-२० और २०२०-२१ में कोई मौत नहीं हुई थी। हालांकि, इन पांच सालों में रेलवे द्वारा ६.४ करोड़ रुपए का मुआवजा दिया गया था।
जुलाई २०२१ से जून २०२४
१३१ बड़े ट्रेन हादसे
डिरेलमेंट – ९२
पैसेंजर ट्रेन – ६४
मालगाड़ी – २८
अन्य रेल हादसे – ३९
७ जुलाई २०२१ को अश्विनी वैष्णव के रेल मंत्री बनने के बाद से कोरोमोंडल एक्सप्रेस सहित कई यात्री ट्रेनें पटरी से उतरीं, जिसमें ३०० लोगों की जान गई और १,००० घायल हुए। मैंने आरटीआई दायर किया और पता चला कि इन तीन सालों में कुल ९२ दुर्घटनाएं हुर्इं, जिनमें ६४ यात्री ट्रेनें और २८ मालगाड़ियां पटरी से उतरीं। हर महीने औसतन ३ यात्री ट्रेनें और २ मालगाड़ियां पटरी से उतर रही हैं। इसके बावजूद, पीएम मोदी इस अक्षम रेल मंत्री को बनाए रखे हुए हैं।
-अजय बासुदेव बोस, आरटीआई एक्टिविस्ट
राहुल गांधी के लोको पायलट टिप्पणी पर बिफरे रेलवे मंत्री
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी द्वारा हाल ही में लोको पायलटों की स्थिति पर की गई टिप्पणी ने रेलवे मंत्री को सकते में डाल दिया है। राहुल गांधी ने रेलवे के रनिंग रूम की दयनीय स्थिति पर सवाल उठाए थे, जिसके बाद रेलवे मंत्री ने सभी रेलवे जोन को तुरंत सुधारात्मक कदम उठाने का आदेश दिया। हालांकि, यह कदम आलोचकों के बीच विवाद का विषय बन गया है। रेलवे कर्मचारी यूनियनों का कहना है कि यह आदेश केवल संकट के समय में दिखावटी कार्रवाई है, जबकि वास्तविक सुधारों की अब भी भारी कमी है। एक वरिष्ठ रेलवे कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हर बार सरकार अस्थाई उपाय करती है, लेकिन स्थायी समाधान की कोई पहल नहीं होती। अधिकारी ने आगे कहा कि राहुल गांधी की टिप्पणी के बाद अचानक प्रचार अभियान शुरू करने पर भी संदेह व्यक्त किया जा रहा है। यह केवल जन समर्थन प्राप्त करने का एक प्रयास है। सरकार को रनिंग रूम की स्थिति सुधारने के लिए समय रहते पहल करनी चाहिए थी, न कि आलोचना के बाद। इस विवाद के बीच, लोको पायलटों की स्थिति में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है। पायलटों का कहना है कि वे लंबे समय से बेहतर सुविधाओं और कार्य परिस्थितियों की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी आवाज़ अनसुनी रही है। सरकार की इस प्रतिक्रिया से स्पष्ट है कि असली समस्या पर ध्यान देने की बजाय वह केवल दिखावटी सुधारों पर जोर दे रही है। इससे लोको पायलटों और अन्य रेलवे कर्मचारियों में असंतोष बढ़ रहा है, जो न केवल रेलवे के कार्य में बाधा डाल सकता है बल्कि यात्री सुरक्षा के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है।