मुख्यपृष्ठनए समाचारईडी सरकार के पास आरटीई शुल्क प्रतिपूर्ति के बकाया 2,400 करोड़ रुपए!

ईडी सरकार के पास आरटीई शुल्क प्रतिपूर्ति के बकाया 2,400 करोड़ रुपए!

सामना संवाददाता / पुणे

आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित छात्रों की शैक्षणिक हानि को रोकने के लिए राज्य सरकार को आरटीई शुल्क प्रतिपूर्ति के बकाया 2,400 करोड़ रुपए तुरंत स्कूल संचालकों को देनी चाहिए। यह मांग राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरदचंद्र पवार) के प्रदेश महासचिव और प्रवक्ता सुनील माने ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से की है। उन्होंने इस संबंध में मुख्यमंत्री को ई-मेल के माध्यम से एक पत्र भेजा है।
महाराष्ट्र में शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम के तहत आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित छात्रों के लिए निजी, गैर-सहायता प्राप्त और स्वयं वित्तपोषित स्कूलों में 25% सीटें आरक्षित रखी जाती हैं। इन छात्रों की फीस सरकार द्वारा दी जाती है, लेकिन राज्यभर में आरटीई शुल्क प्रतिपूर्ति के लगभग 2,400 करोड़ रुपए सरकार द्वारा अब तक जारी नहीं किए गए हैं।
इस वजह से इस साल आरटीई के तहत प्रवेश लेने वाले छात्रों से पूरी फीस अग्रिम रूप से ली जाएगी। यह निर्णय महाराष्ट्र इंग्लिश स्कूल ट्रस्टीज एसोसिएशन ने लिया है। इसके तहत अभिभावकों को पहले पूरी फीस भरनी होगी और बाद में सरकार से अनुदान मिलने पर पैसे वापस किए जाएंगे। इससे आरटीई अधिनियम का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो रहा है।
स्कूल संचालकों का कहना है कि सरकार से समय पर शुल्क प्रतिपूर्ति नहीं मिलने के कारण संस्थाओं को चलाना मुश्किल हो रहा है। आरटीई के तहत प्रवेश लेने वाले छात्र आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं, जिनके लिए अच्छी स्कूलों में प्रवेश लेना संभव नहीं होता। ऐसे छात्रों को अच्छी शिक्षा देना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन सरकार इस जिम्मेदारी से बच रही है, जिससे अभिभावकों में चिंता बढ़ रही है।
सरकार और स्कूल संचालकों के इस विवाद में अभिभावकों और छात्रों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। इससे शिक्षा के अधिकार कानून के प्रावधानों का भी उल्लंघन हो रहा है। आरटीई के तहत प्रवेश लेने वाले 1 लाख छात्रों के प्रवेश अब खतरे में पड़ गए हैं। इसलिए माने ने मुख्यमंत्री से विद्यार्थियों के शैक्षणिक नुकसान को रोकने के लिए राज्य की स्कूलों को आरटीई शुल्क प्रतिपूर्ति के बकाया 2,400 करोड़ रुपए तुरंत जारी करने का अनुरोध किया है। महायुति सरकार बार-बार ऐसे फैसले ले रही है, जिससे यह संदेह होता है कि सरकार आरटीई के तहत स्कूलों में प्रवेश बंद कराना चाहती है। पिछले साल भी सरकार ने आरटीई के तहत निजी स्कूलों को बाहर कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा था।

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