प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह कर्नाटक के चुनाव प्रचार में मस्त हैं और वहां पूर्वोत्तर का एक प्रमुख राज्य मणिपुर पूरी तरह से जल रहा है। हिंसा और दंगों का प्रकोप इस हद तक फैल चुका है कि इसका असर अन्य पड़ोसी राज्यों में भी हो सकता है, लेकिन हमेशा चुनाव और राजनीतिक व्यवहार में उलझी रहनेवाली सरकार को क्या इस बात का अंदाजा है? मणिपुर एक छोटा राज्य है लेकिन यह देश की पूर्वोत्तर सीमा पर स्थित एक महत्वपूर्ण संवेदनशील राज्य है। कश्मीर की तरह वहां भी आतंकवादियों के गुट सक्रिय हैं और वे कई बार सुरक्षा दलों पर हमले करते रहते हैं। इसलिए मणिपुर को नजरअंदाज करने से काम नहीं चलेगा। मूलत: हमें यह समझना चाहिए कि मणिपुर में दंगा क्यों भड़का। इस अशांति के लिए मणिपुर उच्च न्यायालय का एक फैसला कारण बना। मणिपुर में मैती समुदाय की ओर से हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें इस समुदाय को आदिवासी वर्ग में शामिल करने की मांग की गई है। इस संबंध में, इस मांग पर विचार करके चार सप्ताह के भीतर जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश कोर्ट ने राज्य सरकार को दिया और यहीं से मैती व अन्य आदिवासी समुदायों के बीच विवाद की चिंगारी उठी। विभिन्न छात्र संगठनों ने ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन के तहत वहां के सभी यानी दस जिलों में मैती समुदाय को शामिल करने के खिलाफ मोर्चा निकाला। इसके बाद पूरे राज्य में हिंसा भड़क उठी। आगजनी की घटनाएं हुर्इं। स्थिति पर काबू पाने के लिए आखिर सेना और असम राइफल्स को बुलाना पड़ा। कुछ जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है। वहां इंटरनेट सेवा भी पांच दिनों से खंडित कर दी गई है। हालांकि, अब हिंसा पर काबू पा लिया गया है, लेकिन मैती समुदाय और अन्य आदिवासी समुदाय के बीच विवाद फिर बढ़ना मणिपुर जैसे संवेदनशील राज्य और देश के लिए अच्छा नहीं है। मणिपुर में मैती समाज का अनुपात लगभग ५३ प्रतिशत है। वे वहां घाटी में रहते हैं। लेकिन उस जगह पर रोहिंग्या मुसलमानों और बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसका प्रतिकूल प्रभाव सभी व्यवस्थाओं पर पड़ रहा है और इसका प्रभाव मैती समाज पर पड़ रहा है, जिसके कारण वह समाज बेचैन है। इसलिए उन्होंने याचिका के माध्यम से हमें आदिवासी वर्ग में शामिल करने की मांग की है। लेकिन रोहिंग्या-बांग्लादेशी तो रहे बगल में, मैती और अन्य आदिवासी समुदायों के बीच विवाद भड़क उठा। क्योंकि उन्हें डर है कि अगर मैती समुदाय को आदिवासी वर्ग में शामिल कर लिया गया तो वे हर चीज में हिस्सेदार हो जाएंगे। इसे गलत भी नहीं कहा जा सकता है। लेकिन हिंसक आंदोलन और आगजनी का समर्थन कैसे किया जा सकता है? पहले ही यह राज्य कई वर्षों से अशांति और हिंसा में झुलस रहा है। ‘अफस्पा’ कानून को लेकर भी वहां कुछ दशकों तक संघर्ष हुआ था। इस कानून को पिछले साल रद्द किया गया। कुछ और घटनाक्रम भी हुए। इससे ऐसा लग रहा था कि मणिपुर ‘शांत’ हो गया है। लेकिन दो दिन पहले हुई हिंसा और आगजनी से इस बात का भय लग रहा है कि क्या मणिपुर फिर ‘अशांत’ हो जाएगा। छह-सात साल पहले भी मैती समाज और नागा समुदाय के बीच हिंसक संघर्ष छिड़ गया था। ताजा संघर्ष मैती समुदाय और अन्य आदिवासियों के बीच छिड़ गया है। पहले ही मणिपुर में भाजपा सरकार द्वारा संरक्षित जंगलों और आर्द्रभूमि का सर्वेक्षण कराए जाने के आरोप को लेकर राज्य में असंतोष उबल रहा है। उसी में मैती समुदाय को आदिवासी वर्ग में शामिल करने की मांग और इस संबंध में मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को दिए गए निर्देश से मैती समुदाय और अन्य आदिवासियों के बीच संघर्ष की चिंगारी उठ गई है। इस चिंगारी का जंगल की आग बनना न मणिपुर के लिए अच्छा होगा, न ही पूर्वोत्तर हिंदुस्थान और न ही देश के लिए। मणिपुर और केंद्र में भाजपा की सरकार है। इसलिए यह सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी है कि अशांति और अस्थिरता का भूत मणिपुर और पूर्वोत्तर हिंदुस्थान के सिर पर फिर से न बैठे। हमारे शासन काल में मणिपुर सहित सभी उत्तर-पूर्वी राज्यों में शांति स्थापित हो गई। हिंसक घटनाएं, विद्रोही गतिविधियां, आतंकवादी हमले, जाति-जनजातियों के बीच आपसी संघर्ष कम हो गए, ऐसा दावा प्रधानमंत्री मोदी से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तक सभी करते रहते हैं। तो मणिपुर में फिर से हिंसक संघर्ष क्यों भड़क उठा है? ‘मेरा राज्य जल रहा है, कृपया मदद करें’ ऐसा ट्वीट ओलिंपिक पदक विजेता मुक्केबाज मैरी कॉम को आधी रात में करने की नौबत क्यों आई? अगर मणिपुर में भड़की आग पर समय रहते काबू नहीं पाया गया तो पूर्वोत्तर हिंदुस्थान एक बार फिर अस्थिरता, अशांति और विभाजन के मुहाने पर खड़ा हो जाएगा। लेकिन क्या सांप्रदायिक और धार्मिक संघर्ष के आधार पर शासन करनेवाले केंद्र और मणिपुर के सत्ताधारी इस बात से अवगत हैं? मणिपुर में भड़की हिंसा केंद्रीय गृह मंत्रालय की विफलता है। देश के गृहमंत्री हैं लेकिन वे हमेशा राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कार्रवाइयां कराने में उलझे हुए हैं। इससे आतंकवादी, समाज विरोधी और देश विरोधी ताकतों को खुला मैदान मिल गया है। इधर देश में राष्ट्रीय सुरक्षा के रामबाण उपाय के रूप में अब मोदी सरकार ने हनुमान चालीसा पठन, बजरंगबली की जय के मंत्रोच्चार पर जोर दिया है। इसलिए मणिपुर की हिंसा को शांत करने के लिए ‘राणा’ दंपति को इंफाल भेजकर वहां अखंड हनुमान चालीसा का पाठ कराना चाहिए और हिंसा करनेवालों के आगे बिना झुके ‘जय बजरंगबली, तोड़ दे दुश्मन की नली’ का गजर करना चाहिए। मोदी-शाह के हिंदुत्व में शांति स्थापित करने का यही रास्ता है।