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संपादकीय : कश्मीर से मणिपुर …‘दबाया हुआ’ सच

मणिपुर की खबरें बीच में कुछ वक्त से नहीं आ रही थीं, जिससे देश की जनता को लगने लगा था कि चार-पांच महीनों से हिंसाग्रस्त राज्य अब ‘शांत’ हो गया होगा। लेकिन मंगलवार को एक घटना से यह सोच गलत साबित हुई। जातीय मतभेद और हिंसा के चलते खून-खराबा, अपहरण और हत्याएं बिल्कुल नहीं थमी हैं। मंगलवार को ‘मैतेई’ समाज के कुछ लोगों ने पांच लोगों को अगवा कर लिया, उनमें एक वृद्ध, दो पुरुष और दो महिलाएं थीं। उनमें से वृद्ध को अपहरणकर्ताओं ने छोड़ दिया, लेकिन अन्य चारों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। कहा जा रहा है कि यह परिवार एक जवान (सैनिक) का है। हमेशा की तरह ‘अपहरणकर्ताओं’ और जिनका अपहरण किया गया है उनकी खोजबीन शुरू है। अपहृत चार लोगों की जिंदगी बचाने और उनको सुरक्षित रूप से लाने के प्रयत्न चल रहे हैं।’ इस तरह सरकारी ढिंढोरा पीटा जा रहा है, लेकिन इस घटना का हिंसक प्रतिसाद सामने आना तय था। कुकी समाज ने प्रतिक्रिया के रूप में उस क्षेत्र में प्रदर्शन किया। कई ठिकानों पर गोलीबारी की घटना भी घटी। इसलिए अब इस क्षेत्र में हिंसाचार शुरू हो गया है। मणिपुर सरकार और केंद्र की सत्ताधारी बेफिक्र होकर चुप्पी साधे हुए है। देश का एक संवेदनशील सीमावर्ती राज्य लगातार ६-७ महीने से जातीय और सांप्रदायिक हिंसा में जल रहा है। इस रक्तपात में सैकड़ों निर्दोष लोगों की जान जा रही है। देश की अखंडता की दृष्टि से यह कितना खतरनाक और घातक है, यह बताने की जरूरत नहीं। इसमें वर्तमान शासक खुद को राष्ट्रीय, हिंदुत्व और हिंदुस्थान के एकमात्र रक्षक आदि समझ रहे हैं। तब भी मणिपुर शांत और स्थिर होने के संकेत दिख रहे हैं। क्योंकि मणिपुर के प्रश्न के संदर्भ में मालूम होने के बावजूद ‘जानकारी नहीं’ ऐसी केंद्र सरकार की अवस्था है। इसलिए न तो मणिपुर में हिंसा की आग बुझी है और न ही उसकी आंच कम हुई है। मंगलवार की घटना और उसके चलते उठी तत्काल प्रतिक्रिया के रूप में जातीय ज्वालामुखी का विस्फोट शुरू होना उसका सबूत है। कुकी और मैतेई समाज के बीच वैमनस्य की दरार जरा भी कम नहीं हुई है। मंगलवार को अपहृत हुए चारों लोग कुकी समाज के हैं। वे कांगपोकपी की ओर जा रहे थे, उन पर पश्चिम इंफाल जिला में मैतेई समाज के कुछ लोगों की ओर से हमला किया और उसके बाद चारों का अपहरण किया गया। जिस पर कुकी समाज के लोगों कांगपोकपी और पश्चिम इंफाल दोनों क्षेत्र में गोलीबारी कर हिंसाचार किया। कांगपोकपी यह कुकी बहुल क्षेत्र है। तो इंफाल में मैतेई समाज की बहुलता है। इसलिए ७ नवंबर को उस क्षेत्र में हुई हिंसक क्रिया और प्रतिक्रिया उठी। तो वहां मन-मन में जाति, तनाव और हिंसक विद्वेष और असीमित रूप से व्याप्त है। इस धधके वास्तविकता की सूचना दी जा रही है। लेकिन पांच राज्यों के चुनाव प्रचार में मग्न प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री को इसकी जानकारी है क्या? पिछले कुछ दिनों से मणिपुर शांत हो गया है, ऐसा माना जा रहा था लेकिन मंगलवार के हिंसाचार ने स्पष्ट कर दिया कि वह राज्य ‘अशांत ही’ है। वहां हिंसक विद्वेष की आंच जरा भी कम नहीं हुई है। केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में शांति का राग अलाप रही है, लेकिन हाल ही में टार्गेट किलिंग के बढ़ते मामलों के चलते शांति का मुखौटा उतर गया है। अब मणिपुर में ‘दबाया हुआ’ सच भी उजागर हो गया है। देश की अखंडता खतरनाक मोड़ पर है और शासक पांच राज्यों के चुनावों में मग्न है।

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