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संपादकीय : ५४ करोड़ स्वास्थ्य कोष …कर्नाटक की मगरूरी!

महाराष्ट्र में मिंधियों की ढीली-ढाली सरकार के सत्ता में आने के बाद से कर्नाटक के सत्ताधारियों की मुंहजोरी बढ़ गई है। कानड़ी सरकार के बट्टे के नीचे दबे पड़े सीमाई क्षेत्र के मराठी भाषी बंधुओं के लिए महाराष्ट्र सरकार ने साधारण सहानुभूति दिखाई तो भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री के पेट में दर्द हुआ ही, ऐसा समझ लेना चाहिए। इस बार भी यही हुआ। कर्नाटक के कब्जेवाले सीमाई क्षेत्र के बंधुओं के स्वास्थ्य के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा घोषित की गई ५४ करोड़ रुपए की निधि को रोकने की घोषणा कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने की है। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा हाल ही में पेश किए गए बजट में सीमावर्ती बंधुओं के स्वास्थ्य से संबंधित चिकित्सा के लिए महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना से ५४ करोड़ रुपए खर्च करने की घोषणा की गई थी। महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमाई क्षेत्र के कुल ८६५ गांवों में उक्त योजना लागू की जाएगी, ऐसी घोषणा फडणवीस ने अपने बजट भाषण में की थी। इसमें कानड़ी मुख्यमंत्री और वहां विपक्ष के नेता के पेट में दर्द होने जैसा क्या है? लेकिन महाराष्ट्र की ही तरह कर्नाटक विधानसभा का भी बजट सत्र फिलहाल चल रहा है और महाराष्ट्र के बजट में एक छोटे से प्रावधान का अनावश्यक प्रभाव वहां के सत्र में देखने को मिला है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा सीमावर्ती गांवों के लिए घोषित किए गए स्वास्थ्य कोष पर पहले विपक्ष के नेताओं ने आपत्ति दर्ज कराई और मुख्यमंत्री बोम्मई के इस्तीफे की मांग की। इस पर विपक्ष से ज्यादा महाराष्ट्र विरोधी हम वैâसे हैं, ये साबित करने के लिए मुख्यमंत्री बोम्मई और दो कदम आगे बढ़ गए तथा महाराष्ट्र सरकार द्वारा घोषित किए गए जन स्वास्थ्य कोष को सीमावर्ती क्षेत्रों में पहुंचने से पहले ही रोक दिया जाएगा, ऐसी उन्होंने घोषणा की। कर्नाटक के मुख्यमंत्री का उक्त कृत्य अर्थात वैचारिक दिवालियापन और उनके मानसिक स्वास्थ्य के बिगड़ने के ही संकेत हैं। इसलिए महाराष्ट्र की मिंधे-फडणवीस सरकार द्वारा सीमावर्ती भाइयों के स्वास्थ्य कोष के साथ-साथ कानड़ी मुख्यमंत्री के मानसिक इलाज के लिए भी कुछ निधि की घोषणा की जा सकेगी क्या, इसकी जांच करने में कोई हर्ज नहीं है। कर्नाटक के सभी शासकों ने हमेशा सीमावर्ती मराठी भाषियों को प्रताड़ित करने के साथ-साथ मराठी व महाराष्ट्र के प्रति सदैव नफरत ही की। आज तक का एक भी कानड़ी मुख्यमंत्री इसका अपवाद नहीं है। कर्नाटक में आज भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और वहां के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने तो कर्नाटक का चुनाव जीतने के लिए महाराष्ट्र पर दुलत्ती चलाने का एक सूत्रीय कार्यक्रम हाथ में लिया है। महाराष्ट्र में कमजोर व असंवैधानिक ‘खोके’ सरकार के सत्ता में आने के बाद से कर्नाटक के मुख्यमंत्री की मुंहजोरी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। सोलापुर व सांगली जिले के अक्कलकोट, जत आदि गांवों को कर्नाटक में शामिल करने की बात उन्होंने कही। महाराष्ट्र के मिंधे शासक इस पर बिल्कुल भी आक्रोशित नहीं हुए। इससे बोम्मई महाशय बौखला गए हैं और महाराष्ट्र द्वारा सीमाई क्षेत्र के गांव के लिए घोषित किए गए ५४ करोड़ के चिकित्सा कोष को रोकने की घोषणा करके उन्होंने दूध में नमक डालने का काम किया है। मुख्यमंत्री बोम्मई की विनाशी मनोदशा पर महाराष्ट्र के भाजपाई नेता सवाल पूछेंगे, ऐसी अपेक्षा करना व्यर्थ है। मुख्यमंत्री बोम्मई ने कुछ महीने पहले महाराष्ट्र के गांवों पर दावा करके सीमाई विवाद को भड़काया था। उस समय भी महाराष्ट्र की ओर से कर्नाटक को तीखे उत्तर नहीं दिए गए। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा आंखें तरेरते ही मिंधे सरकार खामोश हो गई। महाराष्ट्र के भाजपाई उपमुख्यमंत्री ने सीमाई क्षेत्र की जनता के लिए ५४ करोड़ की निधि घोषित की और कर्नाटक के भाजपाई मुख्यमंत्री ने उक्त निधि को रोकने की अब घोषणा की है। इसे भाजपा के दो नेताओं के बीच के वर्चस्व की होड़ के रूप में नहीं देखा जा सकता है। जो संभव होगा, वो करके उक्त निधि सीमावर्ती बंधुओं तक पहुंचाने की चुनौती महाराष्ट्र सरकार को स्वीकार करनी होगी। दिल्ली की ‘जी हुजूरी’ में रमी मिंधे सरकार ये शौर्य दिखाएगी क्या? दिल्ली के चरणों में स्वाभिमान गिरवी रखकर सत्ता में आई मिंधे सरकार में इतनी धमक बची है क्या?

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