उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का संबंध आखिर कब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा? यह एक शोध का विषय है। धनखड़ का राजनीतिक सफर कल तक कांग्रेस, वी.पी. सिंह की जनता दल, बीच-बीच में अन्य समाजवादी विचारों की पार्टियों जैसा रहा था। कुछ समय के लिए उनके साथ का फायदा शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस को भी मिला। वे राष्ट्रवादी कांग्रेस के राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष थे और बाद में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। पहले पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और मौजूदा राज्यसभा के सभापति के पद पर विराजित हुए, लेकिन धनखड़ की जो पहचान है वह है एक जबरदस्त वकील के रूप में। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में कई अहम केस लड़े हैं। इतने लंबे सफर के दौरान ऐसा नहीं लगता कि वे कभी संघ के संपर्क में आए हों, लेकिन राज्यसभा में संघ की उनकी वकालत चौंकाने वाली है। धनखड़ ने कहा, ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश के उत्थान के लिए, संस्कृति के संरक्षण के लिए काम कर रहा है और देश में हर किसी को संघ के इस काम पर गर्व होना चाहिए।’ श्रीमान धनखड़ आगे कहते हैं, ‘संसद के सभागृह में संघ के कार्यों का विरोध करनेवाले मुद्दे को उठाना नियम के बाहर है। देश के कल्याण और देश की संस्कृति का जतन करने के लिए संघ योगदान कर रहा है और इस तरह का कार्य करनेवाले किसी भी संगठन के प्रति हर एक को भी गर्व होना चाहिए। संघ का विरोध करना यानी लोकतंत्र का विरोध है।’ श्री धनखड़ ने देश की संसद में इस तरह से दिव्य वकालत की। असल में, क्या धनखड़ को सचमुच संघ के बारे में इतना भव्य प्रवचन देने की जरूरत थी? वह भी संसद में। हमारे उपराष्ट्रपति ने तंज कसते हुए यह बात कही कि विपक्षी दल विरोधक और विभाजनकारी रुख अपनाकर देश और संविधान को नुकसान पहुंचा रहा है और कई लोगों ने इस पर आपत्ति जताई। दरअसल, यह पूरा विषय कहां से आया? सांसद रामजीलाल सुमन ने राज्यसभा में सरकार से सीधा सवाल पूछा। सुमन ने वर्तमान राष्ट्रीय परीक्षाओं की गड़बड़ी के बारे में पूछा, ‘राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) जैसे सरकार नियंत्रित संस्थानों में नियुक्ति का एकमात्र मानदंड यह होता है कि व्यक्ति का संघ से संबंध है या नहीं।’ इस पर धनखड़ ने सुनाया। मूलत: सुमन का प्रश्न सशक्त है और आज की परिस्थितियों के समानुरूप है। राष्ट्रीय परीक्षा संस्थान के प्रमुख प्रदीप जोशी का संबंध संघ से है और मध्य प्रदेश में बहुचर्चित ‘व्यापम’ भर्ती घोटाले में उनका नाम आया था। उन पर और भी गंभीर आरोप थे। ऐसे व्यक्ति को इतने महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर नियुक्त करना कितना उचित है? उनके कारण लाखों छात्रों का भविष्य बर्बाद हो गया। संबंधित व्यक्ति का संघ से संबंधित होना, सिर्फ यही गुणवत्ता इस पद के लिए वैâसे आधार हो सकती है? पुणे में रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान के निदेशक और वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रदीप कुरुलकर को पाकिस्तान के लिए जासूसी करने और गोपनीय दस्तावेज उपलब्ध कराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। ये कुरुलकर सीधे तौर पर संघ से भी जुड़े हुए हैं, ऐसे कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। केंद्र सरकार की ओर से अब सरकारी दफ्तरों के कर्मचारियों और अधिकारियों को ‘संघ कार्य’ की इजाजत दे दी गई है। क्या उनके कार्य इस तरह के ही हैं? न्यायालय, सरकारी संस्थान और राजभवन जैसी जगहों पर नियुक्तियां संघ विचारधारा वाले लोगों की ही की जा रही हैं, कारण उन्होंने देश के लिए बहुत योगदान दिया है, ऐसा कहा जा रहा है। संघ पर अब तक दो बार प्रतिबंध लग चुका है। संघ या प्रधानमंत्री मोदी के प्रिय सरदार पटेल ने गांधीजी की हत्या के बाद सबसे पहले संघ पर प्रतिबंध लगाया था। पटेल ने संघ पर देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में संघ के योगदान की एक बूंद भी नजर नहीं आती। इसके उलट, जब कांग्रेस और आम जनता अंग्रेजों को ‘चले जाओ’ कहने के लिए खून बहा रही थी, तो संघ विचारधारा के श्यामाप्रसाद मुखर्जी प. बंगाल में मुस्लिम लीग सरकार में शामिल थे और अंग्रेजों को पुलिस बल का उपयोग करके ‘चले जाओ’ राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने की सलाह दे रहे थे। यदि भारतीय लोकतंत्र और संस्कृति में संघ का यही योगदान है, तो हम संघ के इन ‘वकीलों’ को दंडवत प्रणाम ही करते हैं! उपराष्ट्रपति का कहना है कि राष्ट्रीय कार्य में संघ का योगदान है। तो क्या वे देश की आजादी की लड़ाई में शामिल कांग्रेस के योगदान को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं? वामपंथी विचारधारा के लोग भी स्वतंत्रता की लड़ाई में सहयोगी थे। संघ विचारधारा वाले लोग आज सत्ता में हैं और उन्होंने लोकतंत्र, संविधान, राष्ट्रीय एकता को लेकर दावा ठोका है। मोदी-शाह ने केंद्रीय जांच एजेंसियों का असंवैधानिक तरीके से इस्तेमाल कर लोकतंत्र पर ही हमला किया। विरोधियों को जेल में डाल दिया। चुनाव भ्रष्टाचार के पैसे से लड़े गए। हिंदू और मुसलमान में झगड़े लगाए। उन्होंने देश में आतंक का माहौल बनाया और चुनाव आयोग, अदालतों, जांच एजेंसियों और राष्ट्रीय परीक्षा संस्थाओं में अपने लोगों को बिठाकर स्वतंत्रता और निष्पक्षता को खत्म कर दिया। यदि यही संघ का राष्ट्रीय अभिमान है, तो श्रीमान धनखड़ की वकालत योग्य है। जब देश अराजकता और एकाधिकारशाही के गर्त में हो तो उपराष्ट्रपति पद पर बैठे व्यक्ति को ऐसा चश्मा पहनना चाहिए जो सत्य देख सके। संघ को ‘चार सौ पार’ करके संविधान बदलना ही था, लेकिन जनता के समझदार और निर्भय हो जाने से यह संकट टल गया। देश की संस्कृति की रक्षा करने के लिए जनता समर्थ है!