मुख्यपृष्ठनए समाचारसंपादकीय : दिवालिया सरकार!

संपादकीय : दिवालिया सरकार!

राज्य के मुख्यमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर शेखी बघारते हुए कहा कि वे महाराष्ट्र को प्रगति की राह पर ले गए हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि महाराष्ट्र ने पिछले दो वर्षों में अभूतपूर्व प्रदर्शन करके देश के मानचित्र पर अपना नाम अंकित किया है। वास्तविक स्थिति क्या है? दिल्ली के गुलाम मुख्यमंत्री ने कुछ ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की है कि बस महाराष्ट्र के लोगों के घरों पर सिर्फ सोने का छप्पर लगाना ही, बाकी रह गया है? जैसा कि मुख्यमंत्री ने कहा महाराष्ट्र प्रगति के पथ पर नहीं, बल्कि दिवालियापन के कगार पर है। प्रगतिशील होने का दिखावा करनेवाली शिंदे सरकार का खजाना ठन-ठन गोपाल हो गया है। किसानों समेत समाज के कई वर्ग वित्तीय सहायता और सब्सिडी से वंचित हैं। क्या इसे आपका अभूतपूर्व प्रदर्शन कहा जाए? क्या इसे ही आपका प्रगतिपथ कहा जाए? यूं ही जुमलेबाजी की क्या जरूरत है? विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह सरकार घोषणाओं की बारिश कर रही है। कई योजनाओं की घोषणा की जाती है और लाभार्थियों के बैंक खातों में सीधे पैसा जमा करने का दिखावा किया जाता है। लेकिन खजाना ठन-ठन गोपाल होने की वजह से, उन्हें एक को पैसा देने और दूसरे की अधिकारिक देनदारी को रोकने का जुगाड़ करना पड़ रहा है। ‘लाड़ली बहन’ योजना के तहत राज्य की कुछ बहनों के खाते में पैसा जमा करवाने वाली सरकार ने किसानों के हक के पैसों को रोक रखा है। वजह साफ है। सरकार की जेब में है ही नहीं तो देंगे कहां से? सरकार ने करीब दो लाख ३३ हजार किसानों की प्रोत्साहन सब्सिडी की ३४६ करोड़ रुपए की राशि रोक रखी है। महात्मा ज्योतिराव फुले किसान ऋणमुक्ति योजना के तहत लिए गए फसल ऋण का बकाया और न चुकाए गए दो लाख तक की रकम माफ करने का निर्णय लिया गया था, लेकिन सरकार ने इन ऋण खातों को इस छूट का लाभ ही नहीं दिया है, जिसके चलते दो लाख से ज्यादा किसान इस कर्जमाफी से वंचित रह गए हैं। इन शासकों पर ऐसा वक्त क्यों आया? क्योंकि लोकसभा चुनाव में लगे झटके के बाद मौजूदा सरकार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर तरह-तरह की योजनाओं, वित्तीय सहायता, अनुदान और मुफ्त वितरण से जनता को ललचाने की कोशिश कर रही है। इसके पीछे सिर्फ वोट की राजनीति है इसलिए न तो सरकार आय का विचार कर रही है और न ही सरकारी खजाने का। राज्य का राजकोषीय घाटा दो लाख करोड़ से ऊपर चला गया है का स्यापा करनेवाले मौजूदा शासक ही, हजारों करोड़ रुपए की योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं, उस राशि के आधार पर जो तिजोरी में है ही नहीं। वारी की दिडियों (पंढरपुर यात्रा के श्रद्धालुआओं के समूह) को प्रतिदिंडी २०,००० रुपए, ‘निर्मल वारी’ के लिए कुछ करोड़ रुपए, मुख्यमंत्री लाड़ली बहन योजना के लिए कुछ हजार करोड़ रुपए, राज्य के ५२ लाख परिवारों को मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना के तहत प्रति वर्ष तीन गैस सिलिंडर मुफ्त देने, बेरोजगार युवाओं को ‘लाड़ला भाई’ के ​तौर पर कुछ हजार रुपए प्रतिमाह आर्थिक सहायता जैसी कई घोषणाएं सत्ताधारियों ने की हैं, लेकिन उसके लिए पैसे कहां हैं? समाज में जरूरतमंदों को सरकारी सहायता पर आपत्ति करने का कोई कारण नहीं है, लेकिन शासक शुद्ध राजनीतिक लाभ के लिए सरकारी खजाने को बर्बाद करने का कार्य कर रहे हैं, जिसके चलते महाराष्ट्र तेजी से आर्थिक बर्बादी की ओर बढ़ रहा है। चुनाव के सिर पर आते ही शासक घोषणाओं की बरसात कर रहे हैं और उसके लिए आर्थिक नियोजनों को ताक पर रख रहे हैं। इसलिए सरकार पर एक की जेब से निकालकर दूसरे की जेब में डालने का शर्मनाक समय आ गया है। लाड़ली बहनों को १५०० रुपये का रक्षाबंधन उपहार देने का श्रेय लेनेवाले शासक, किसानों की थाली में बिना कुछ डाले ही उन्हें ‘पंचपकवान’ देने की शेखी बघार रहे हैं। यह सरकार सिर्फ लाड़ली बहन योजना के विज्ञापन पर १९९ करोड़ रुपए खर्च करती है, लेकिन दो लाख किसानों की कर्जमाफी के लिए उसका खजाना ठनठन गोपाल हो जाता है। जब ऐसी सरकार, जिसकी अक्ल का दिवाला पिट चुका हो, वह राज्य के गर्दन पर सवार हो जाए तो इससे अलग और क्या हो सकता है?

अन्य समाचार