राहुल गांधी बार-बार कह रहे हैं कि मैं नहीं डरता। मुझे जेल में डाल दिया जाए तब भी मैं सवाल पूछता रहूंगा। श्री राहुल गांधी नहीं डर रहे हैं और अडानी-मोदी के संबंधों पर लगातार सवाल पूछ रहे हैं। यह सही है लेकिन राहुल गांधी को खुद के साथ अपनी पूरी पार्टी और देश को भी निडर बनाने की जरूरत है। ‘मेरा सरनेम सावरकर नहीं’ ऐसा बयान बार-बार देने से निडरता पैदा नहीं होगी और वीर सावरकर के प्रति जनता का विश्वास नहीं टूटेगा। वीर सावरकर अपने स्थान पर महान हैं। सावरकर पर बेवजह ‘माफीवीर’ जैसे दोष मढ़कर लड़ने का बल किसी को नहीं मिलेगा। ‘वीर सावरकर’ के नाम में तेज है। अन्याय व गुलामी के विरुद्ध लड़ने की ताकत है। वीर सावरकर ने अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए इंग्लैंड और अपने देश में भी योद्धा तैयार किए, उन योद्धाओं ने जुल्मी शासकों पर ‘धाड़धाड़’ गोलियां चलार्इं व सावरकर को उस कृत्य पर कभी पछतावा नहीं हुआ। जिस तरह सावरकर ने अंग्रेजों के खिलाफ कई योद्धा खड़े किए, उसी तरह राहुल गांधी को पहले अपनी पार्टी में मजबूत योद्धा तैयार करने होंगे। मानहानि के मामले में राहुल गांधी को सजा देना अन्याय है, लेकिन वीर सावरकर की मानहानि करके वे जिस सच्चाई के लिए लड़ना चाह रहे हैं, उस सत्य की जीत नहीं होगी। राहुल गांधी का जन्म शहीदों के परिवार में हुआ है और यह सच है। स्वतंत्रता संग्राम में मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू ने अपने पूर्वजों से विरासत में मिली हर चीज को दांव पर लगा दिया। उन्होंने अपना काला धन किसी अडानी में निवेश करके उसका व्यापार नहीं किया। उनका जीवन देश के लिए था। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी ने भी देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया और उनके बलिदान को देश हमेशा याद रखेगा, लेकिन वीर सावरकर, उनके भाई बाबाराव सावरकर और उनके पूरे परिवार ने देश के लिए उतना ही महान बलिदान दिया है। उस महान त्याग की अवहेलना कोई नहीं कर सकता। नासिक के कलेक्टर जैक्सन के वध का मास्टरमाइंड मानते हुए वीर सावरकर को कालापानी की सजा सुनाई गई। राहुल गांधी का सांसद पद छीन लिया गया, लेकिन सावरकर के ‘बैरिस्टर’ की उपाधि अंग्रेजों ने छीन ली। उनका सभी साहित्य जब्त कर लिया गया। वीर सावरकर का जीवन प्रेरणादायी था और रहेगा। सावरकर अंग्रेजों से कभी नहीं डरे। पचास साल के काले पानी की सजा सुनाए जाने के बाद भी उन्होंने हंसते-हंसते हुए कहा, ‘लेकिन क्या मेरे देश पर पचास साल तक अंग्रेजों का राज रहेगा? इससे पहले, हम इसे उखाड़ फेंकेंगे।’ वीर सावरकर को समझने के लिए एक बड़े मन और बाघ का कलेजा चाहिए। सावरकर का अपमान करने या उन पर कीचड़ उछालने से पहले उनकी महानता को समझ लिया जाए, तो कोई भी स्वातंत्र्यवीर की बेअदबी या उपहास करने की हिम्मत नहीं करेगा। सावरकर कौन थे? सावरकर दुनिया के एकमात्र स्वतंत्रता सेनानी थे, उन्हें आजीवन कारावास की दो-दो बार सजा सुनाई गई। सावरकर दुनिया के पहले ऐसे लेखक थे, जिनकी पुस्तक ‘१८५७ का स्वतंत्रता संग्राम’ पर प्रकाशन से पहले ही दो देशों ने प्रतिबंध लगा दिया था। इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादार होने की शपथ लेने से इनकार करने वाले पहले हिंदुस्थानी विद्यार्थी वीर सावरकर थे। देश के सर्वांगीण विकास के लिए चिंतन करते हुए कारावास का जीवन समाप्त होने के बाद अस्पृश्यता और अन्य कुप्रथा के खिलाफ आंदोलन करने वाले समाज सुधारक के रूप में सावरकर का दिया गया योगदान भी उल्लेखनीय है। सावरकर दुनिया के एकमात्र कवि हैं जिन्होंने अंडमान जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखकर उसे कंठस्थ किया और जेल से छूटने के बाद कंठस्थ की हुई कविताओं की १० हजार पंक्तियां फिर से लिखीं। विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले हिंदुस्थान के किसी राजनेता के रूप में भी कोई नाम सामने आता है, तो वह सावरकर का। वीर सावरकर की गाथा कितनी सुनाई जाए? लेकिन मौजूदा राजनीति में सावरकर का नाम घसीटकर, उन्हें छोटा साबित करने की कोशिश दर्दनाक है। राहुल गांधी वीर सावरकर के बारे में जो अपमानजनक बयान दे रहे हैं, इससे उनके प्रति निर्माण हुई सहानुभूति कम हो जाएगी। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा दिक्कत कांग्रेसियों को होगी। महाराष्ट्र के गांव-गांव में सावरकर अनेक रूपों में खड़े हैं और वे सीना तानकर खड़े हैं। मोदी-अडानी की मिलीभगत से देश को लूटा जा रहा है। उस लूट पर सवाल पूछने वालों को अपराधी करार दिया गया। देश में दो भयानक कानून आज विपक्षियों को खत्म कर रहे हैं और ये दोनों भयानक कानून कांग्रेस के दौर में आए थे। ‘ईडी’ के लिए जो विशेष मनी लॉन्ड्रिंग कानून का ‘भस्मासुर’ तैयार किया गया, उस भस्मासुर के जन्मदाता तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम हैं। उसी ‘पीएमएलए’ कानून का बिंदास दुरुपयोग करके विपक्ष का बंदोबस्त किया जा रहा है। दूसरा कानून यानी जनप्रतिनिधियों को कोर्ट द्वारा दो साल से ज्यादा की सजा सुनाए जाने के बाद विधायक और सांसद पद को रद्द करने का कानून है। उन जनप्रतिनिधियों को अपील करने का मौका मिले, तब तक उनके विधायक-सांसद पद को संरक्षण मिले, ऐसा एक अध्यादेश पारित किया गया था और वह सही था। राहुल गांधी ने सरेआम उस अध्यादेश के टुकड़े-टुकड़े कर डाले थे और आज उसी के कारण राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता संकट में आई है। अब उस धारा को ही चुनौती देने की तैयारी राहुल गांधी कर रहे हैं। राहुल गांधी पर शत-प्रतिशत गलत कार्रवाई हुई है और इतना सब कुछ होने के बावजूद भी राहुल गांधी नहीं डगमगाए, लेकिन जब इंदिरा गांधी की लोकसभा की सदस्यता रद्द की गई थी तो देश में भारी आक्रोश पैदा हो गया था। तब आज की तरह न्यूज चैनल, सोशल मीडिया का उपयोग नहीं होता था। फिर भी इंदिरा गांधी के अन्याय के खिलाफ लोगों के दिल धड़क रहे थे और उसी माहौल का फायदा उठाते हुए इंदिरा गांधी फिर से धूमधड़ाके के साथ सत्ता पर विराजमान हो गर्इं। राहुल गांधी यह सब वैâसे कर पाएंगे? प्रधानमंत्री मोदी प्रेस कॉन्प्रâेंस नहीं करते हैं। वे सवाल-जवाब से डरते हैं। राहुल गांधी सार्वजनिक प्रेस कॉन्प्रâेंस करते हैं। राहुल गांधी कहते हैं कि मुझे मोदी की आंखों में डर दिखाई देता है इसलिए उन्होंने मुझे लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया। तानाशाह हमेशा डरपोक ही होता है। तानाशाह पहले न्यायपालिका पर कब्जा करता है, संसद को नियंत्रित करता है और विपक्ष को नष्ट कर देता है। इसे ही गुलामी कहते हैं। इस गुलामी के विरुद्ध लड़ने के लिए वीर सावरकर ने बारह वर्ष की आयु में घर की अष्टभुजा देवी के सामने मराठी में क्रांतिकारी शपथ ली, ‘देशाच्या स्वातंत्र्यासाठी सशस्त्र क्रांतीचा केतू उभारून मारिता मारिता मरेतो झुंजेन!’ राहुल गांधी को भी ऐसी ही शपथ लेकर मौजूदा गुलामी के खिलाफ लड़ाई लड़नी चाहिए।