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संपादकीय : ठेकेदारों के ठेकेदार!

दिल्ली से महाराष्ट्र तक ठेकेदारी पद्धति पर राजकाज संचालित हो रहा है। देश में व्यापारी प्रवृत्ति वाली सरकार आने के बाद से इस तरह की राजनीतिक ठेकेदारी का अनुभव देखने को मिल रहा है। इस ठेकेदारी में महाराष्ट्र ने भी पांव रख दिया है। मुंबई पुलिस दल में लगभग दस हजार रिक्त पदों को ठेका पद्धति पर बाहरी तंत्र द्वारा भरने की घोषणा गृहमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने की है। मुंबई पुलिस दल में दस हजार सिपाहियों के पद रिक्त हैं यह फडणवीस ने स्वीकार किया। इसका मतलब मुंबई पुलिस दल पर फिलहाल जबरदस्त तनाव है। लेकिन मुंबई जैसे शहर की सुरक्षा इस तरह से बाहरी एजेंसी पर सौंपना इसका उपाय नहीं है। यह मुंबई की सुरक्षा से खेलने का मामला है। लेकिन महाराष्ट्र के गृहमंत्री अपनी दिल्ली सरकार के नक्शेकदम पर ही चल रहे हैं। मोदी की सरकार ने सेना में ‘ठेकेदारी’ पद्धति पर भर्ती शुरू की है। वे सैन्य भर्ती में ठेकेदारी लाए इसलिए महाराष्ट्र में पुलिस भर्ती में ठेकेदारी लाई जाए, ये उचित नहीं है। ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ यह भाजपा की नीति है। उसी के अनुसार कामकाज चल रहा है। फिर मुंबई पुलिस दल में यह भर्ती राज्य सुरक्षा महामंडल के मार्फत की जाएगी, जो कि सिर्फ ११ महीनों के लिए होगी। मुंबई पुलिस दल में नियमित पुलिस भर्ती प्रक्रिया पूरी होने तक आपातकालीन व्यवस्था के रूप में ये पद भरे जाएंगे, ऐसा स्पष्टीकरण अब सरकार की ओर से दिया गया है। मतलब नियमित भर्ती होने पर इन सभी तीन हजार लोगों की सेवा खत्म कर दी जाएगी। ये लोग फिर से बेकार हो जाएंगे और इनका परिवार खुले में आ जाएगा। महाराष्ट्र सरकार की तिजोरी खाली होने के कारण राज्य सरकार को पुलिस दल में अनुबंध प्रणाली के आधार पर भर्ती करनी पड़ रही है क्या? पवार-शिंदे गुट के बागी विधायकों को सैकड़ों करोड़ रुपए विकास निधि के लिए दिए जाने पर पुलिस भर्ती व उनकी तनख्वाह के लिए पैसे कहां से लाए जाएं? मुंबई महाराष्ट्र पुलिस में मनुष्य बल की कमी है लेकिन जो बल उपलब्ध है उनमें बड़ा बल बागी विधायकों की सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। हमारा ऐसा सुझाव है कि नई संविदा पुलिस को बागी विधायकों की चाकरी में लगाओ और पुलिसकर्मियों को अपने मूल विभाग में वापस भेजो। महाराष्ट्र के मौजूदा कामकाज में ऐसी अफरा-तफरी मची है। सेना से लेकर पुलिस तक सभी तरफ ठेकेदारी प्रथा लागू कर दी गई है। श्री फडणवीस के आसपास उनके कई खास लोग ऐसे हैं कि जिनका खुद के ‘ठेका’ पद्धति पर मानवबल उपलब्ध कराने का व्यवसाय जोरों पर चल रहा है। मंत्रालय, महानगरपालिका, सरकारी प्रतिष्ठानों में ये अनुबंध के आधार पर सुरक्षा रक्षक उपलब्ध कराते हैं और खुद मालामाल होते हैं। अब ये दस हजार पुलिस भर्ती का ठेका भाजपा के ऐसे ही ठेकेदारों को मिलनेवाला है क्या? यह देखना होगा। मूलत: राज्य में आज शिक्षक से सरकार तक सब कुछ ठेका पद्धति पर चलाया जा रहा है। एकनाथ शिंदे और उनके चालीस लोगों के घाती गुट को तोड़कर उन्हें भी ठेका पद्धति पर राज्य चलाने को दिया गया है। शिंदे का ठेका खत्म होने के करीब है और अजीत पवार व उनके लोगों को राज्य चलाने का ठेका दिया जाएगा, ऐसा कहा जा रहा है। महाराष्ट्र के दृष्टिकोण से बेहद चिंतनीय है। राज्य ठेका पद्धति से चलाना व जिन्हें उसे चलाने के लिए देना है वे ‘लूटो और खाओ’ यह कमाई की पद्धति अमल में लाएंगे। यह नीति देश के लिए घातक है। ‘अग्निवीर’ से महाराष्ट्र की संविदा पुलिस भर्ती का समर्थन जो करते हैं वे समाजद्रोही हैं। सरकार के अनियोजित कामकाज की यह पराकाष्ठा है। श्री अजीत पवार के पास तिजोरी की चाबी है लेकिन पैसा जाता है बागी विधायकों का मन शांत करने के लिए। कई सरकारी संस्थान, महामंडल, संस्था परेशानी में हैं। वहां के कर्मचारियों को तनख्वाह नहीं मिल रही है। आंगनवाड़ी से लेकर शिक्षकों तक सभी परेशान हैं। फिर यह सरकार किसके लिए चल रही है? मुट्ठीभर राजनीतिक ठेकेदारों द्वारा अपने पसंदीदा ठेकेदारों के लिए चलाया जा रहा यह राज जनता के हित में नहीं है। मुंबई पुुलिस दल में ठेका पद्धति पर भर्ती का मामला मुंबई की सुरक्षा के साथ किया गया खिलवाड़ तो है ही। इसके साथ-साथ मुंबई पुलिस की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचानेवाला भी है। लेकिन इसकी परवाह किसे है? राज्य के मुख्यमंत्री और दो उपमुख्यमंत्री अपने गुट के लोगों को ही ठेकेदारी का मलीदा वैâसे मिलेगा? इस विचार से ठेकेदारों के ठेकेदार बनकर कामकाज कर रहे हैं।

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