भारतीय जनता पार्टी को ऐसा लगता है कि वही दुनिया में हिंदुत्व की एकमात्र ठेकेदार है। लेकिन स्वघोषित ठेकेदारों ने अपने अधीन उपठेकेदारों की नियुक्ति करके हिंदुत्व के नाम पर जो कर्कश हंगामा खड़ा किया है, उसे देखकर दो हिंदूहृदयसम्राट वीर तात्याराव सावरकर और शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे भाजपा को श्राप ही दे रहे होंगे। भाजपा का हिंदुत्व ‘गोमूत्रधारी’ ही है। उनके हिंदुत्व का न आगा है और न पीछा है। विचारों का आधार तो बिल्कुल नहीं है, यह त्र्यंबकेश्वर में घटी घटना से साबित हो गया है। त्र्यंबकेश्वर में हिंदुत्व के नाम पर दंगा भड़काकर उसका रिएक्शन महाराष्ट्र में पैâलाने की योजना हिंदुत्व के उपठेकेदारों ने बनाई, लेकिन नासिक-त्र्यंबक की संयमी और समझदार जनता के कारण यह साजिश सफल नहीं हुई। बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक त्र्यंबकेश्वर को संदल जुलूस के दौरान धूप दिखाए जाने के बहाने इन उपठेकेदारों ने हंगामा खड़ा कर दिया। मूलरूप से हमें यह समझना चाहिए कि ये सारे मामले क्या थे और वैâसे हिंदुत्व के उपठेकेदारों ने बात का बतंगड़ बनाकर माहौल बिगाड़ने की कोशिश की। शहर में परंपरा के अनुसार गुलाब शाह वली बाबा का जुलूस निकाला गया। यह जुलूस मंदिर मार्ग से होकर गुजरता है। उस समय शनिवार को जुलूस के दौरान मुस्लिम समुदाय के पांच-सात युवक त्र्यंबकेश्वर में धूप दिखाने के लिए उत्तरी प्रवेश द्वार के पास खड़े हो गए। वैसे इस तरह धूप दिखाने की प्रथा बहुत पुरानी है, लेकिन इस बार ‘उपठेकेदारों’ ने इस धूप की घटना को भुनाया और ‘मंदिर में मुस्लिमों ने घुसने की कोशिश की, हिंदू धर्म संकट में है’ का हो-हल्ला मचाया। इसमें राजनीतिक दबाव तकनीक का इस्तेमाल किया गया। इस मामले में त्र्यंबकेश्वर के ग्रामीणों से ज्यादा बाहर के लोग सामने आए और उन्होंने विवाद खड़ा कर दिया। भाजपा की आध्यात्मिक आघाड़ी साथ ही युवा मोर्चा, ब्राह्मण संघ के नेता पहुंचे और उन्होंने मंदिर की सीढ़ियों व परिसर का गोमूत्र से शुद्धीकरण किया। मंदिर और बाहर शुद्धीकरण का नाटक चल रहा था, वहीं गांव के सभी लोगों ने एक साथ आकर भाईचारे की मिसाल पेश की। इसलिए गोमूत्रधारी हिंदुत्व के उपठेकेदारों की साजिश बेनकाब हो गई और उन सभी का मंसूबा पूरा नहीं हुआ। खुद को हिंदुत्ववादी आदि कहनेवाले बचकाने संगठनों को मंदिर शुद्धीकरण का ठेका किसने दिया? जब तक हिंदुत्व के नाम पर ये कालाबाजारी की दुकानें बंद नहीं होंगी, तब तक हिंदुत्व का मजाक उड़ता रहेगा। भारतीय जनता पार्टी को वीर सावरकर और उनके हिंदुत्व पर इस समय कुछ ज्यादा ही दुलार उमड़ आया है। जब तब उठकर वे वीर सावरकर के हिंदुत्व का उदाहरण देते रहते हैं। कहते हैं, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कल मुंबई की अपनी यात्रा के दौरान सावरकर स्मारक का दौरा किया। सावरकर के वर्तमान परिवार के सदस्यों से मुलाकात की। यह सब तो ठीक है, लेकिन सावरकर को भी इस तरह का गोमूत्रधारी हिंदुत्व स्वीकार नहीं था। भगवान को मुसलमानों ने धूप दिखाई इसलिए संकट में आया डगमगाता हिंदुत्व सावरकर को स्वीकार ही नहीं था। सिंधु नदी से लेकर समुद्र तक पैâली इस भूमि को हिंदू अपनी पितृभूमि और पवित्र भूमि मानते हैं। चाहे वह किसी भी जाति-धर्म का क्यों न हो? मूलरूप से हिंदू धर्म सिर्फ एक धर्म नहीं है, बल्कि एक महान जीवन प्रणाली है। हिंदू धर्म नाम एक विशेष धर्म व पंथ का विशेष और अनन्य नाम नहीं, बल्कि कई धर्मों व पंथों की यह भारत भूमि ही पितृभूमि और पवित्र भूमि है। उन सभी को सम्मिलित करनेवाले धर्मसंघों का हिंदू धर्म सामुदायिक मंच है। सावरकर ने हिंदुत्व की इतनी सरल व्याख्या की है। उनके विचार हिंदुत्व के मामले में स्पष्ट हैं। हिंदू धर्म किसी रीति-रिवाज, परंपरा, तथाकथित ढांचे में फंसकर नहीं रहेगा। बदलते समाज के लिए पोषक होगा, इस तरीके से अपना स्वरूप बदलते रहना हिंदू धर्म का स्वभाव ही है। ऐसे कई दिव्य विचार वीर सावरकर ने हिंदुत्व के बारे में रखे, लेकिन हिंदुत्व के वर्तमान स्वघोषित ठेकेदारों के दिमाग में वे वैâसे घुसेंगे? इन्हीं ठेकेदारों ने हिंदुओं के एक वर्ग को अछूत बताकर मंदिर में प्रवेश से रोक दिया था। जो अपने ही धर्म के बंधुओं को अछूत मानकर मंदिर में प्रवेश से मना कर रहे थे, उनसे क्या उम्मीद कर सकते हैं? उन्हीं ठेकेदारों के वंशज आज गोमूत्र शुद्धीकरण आदि कार्यों में उलझे पड़े हैं। हिंदू धर्म ‘रसोई घर’ बन गया है, ऐसी चिंता स्वामी विवेकानंद ने व्यक्त की थी। उसी रसोई घर की प्रवृत्ति वाले लोगों के हाथ हिंदुत्व के नाम पर गोमूत्र का बैरल आ गया है। वास्तव में, हिंदू धर्म को असली खतरा त्र्यंबकेश्वर में धूप दिखाने वालों से नहीं, बल्कि गोमूत्र से शुद्धीकरण करनेवालों से है। इन्हीं विचारधारा वाले लोगों के कारण देश गुलाम हुआ था। विदेशियों की बेड़ियों में जकड़ गया। हिंदुस्थान ने समाज सुधार, विज्ञानवाद को त्याग दिया और डेढ़ सौ वर्षों के लिए गुलाम बन गया। अब कहा जा रहा है कि गृहमंत्री फडणवीस ने त्र्यंबकेश्वर में धूप-महाआरती मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल की घोषणा की है। इस जांच की कोई जरूरत नहीं थी। यह ग्रामीणों की मांग नहीं थी। फिर भी यह निर्णय जल्दबाजी में घोषित किया गया। इस जल्दबाजी, इस उतावलेपन की वजह क्या है? क्या स्वघोषित उपठेकेदार बताएंगे क्यों? जो त्र्यंबकेश्वर में हुआ ही नहीं, उसकी जांच? यह सब उल्टा तरीका है और इससे भी गंभीर बात यह है कि राज्य के गृहमंत्री उतावलेपन में ऐसा करें। मूलरूप से जांच करनी है तो गोमूत्र का बैरल लेकर त्र्यंबकेश्वर में हंगामा मचानेवाले हिंदुत्व के उपठेकेदारों की करें। महाराष्ट्र के सामाजिक सद्भाव को नष्ट करने का उपठेका उन्हें वास्तव में किसने दिया?