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संपादकीय : मंच पर गायें; सरकार गौशाला में!

लाडली बहनों के बाद शिंदे सरकार ने गायों को राज्य माता का दर्जा देने का पैâसला किया है। सरकार ने घोषणा की कि अब से गौमाता, राज्यमाता होगी। शिंदे सरकार चुनाव जीतने के लिए क्या परपंच रचेगी, इसकी कोई थाह नहीं है। भगवान और गाय को राजनीति में लाकर इस तरह का चुनावों का सामना करना हास्यास्पद है। सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार को चेताया है कि कम से कम भगवान को राजनीति से दूर रखा जाए। मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने तिरुपति मंदिर के लड्डुओं में चर्बीयुक्त घी मिलाए जाने का आरोप लगाया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है, ‘कम से कम संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को भगवान को राजनीति से दूर रखना चाहिए। जब आप संवैधानिक पद पर होते हैं तो आपसे उम्मीद की जाती है कि आप भगवान को राजनीति से दूर रखेंगे।’ जो तिरुपति के लड्डुओं के साथ हुआ वही महाराष्ट्र में लाडली बहनों और गोमाता के साथ हो रहा है। भाजपा और उसके लोग हर दिन यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वे ‘हिंदुत्ववादी’ हैं। गाय को राज्यमाता कहने से पहले भाजपा और उसके साथियों को गाय के बारे में हिंदूहृदयसम्राट, वीर सावरकर के विचारों को समझना चाहिए था। वीर सावरकर कहते थे कि यदि गाय ‘माता’ है तो बैल की। गाय एक उपयोगी पशु है और गाय को एक उपयोगी पशु के रूप में ही देखा जाना चाहिए। गोमाता आदि तो ढकोसला हैं। गाय खेती के काम आती है, गाय दूध देती है और अर्थव्यवस्था उसी से चलती है, ऐसा वीर सावरकर कहते थे और हिंदुत्व की दृष्टि से उनके ये विचार विज्ञानवादी थे। भाजपा और शिंदे चोटी-जनेऊ के हिंदुत्व को वापस लाना चाहते हैं और युवाओं को नौकरी, शिक्षा और आधुनिक विचार देने की बजाय इसका इस्तेमाल गोबर इकट्ठा करने के लिए करना चाहते हैं। और गोमाता के मामले में मोदी सरकार का मुखौटा पहले ही गिर चुका है। क्योंकि मोदी काल में ही गोमांस का निर्यात बढ़ा है। भारत का गोमांस यानी बीफ निर्यात २१६ मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है। इसका मतलब है कि मोदी युग में गोमाता या राज्यमाता का कत्ल जोरों पर चल रहा है और मोदी सरकार की अर्थव्यवस्था उन कत्लों पर टिकी है। अमेरिका की तुलना में भारत का गोमांस निर्यात अधिक है। ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, भारत, न्यूजीलैंड गोमांस निर्यात क्षेत्र में अग्रणी देश हैं। इसलिए भाजपा का ‘राज्यमाता’ मामला चुनावी जुमला है। ज्यादातर भाजपा शासित राज्यों में बीफ बेचा और खाया जाता है। गोवा, उत्तर पूर्वी राज्यों में बीफ मुख्य भोजन है और वहां भाजपा की सरकारें हैं। विश्व के गोमांस निर्यात व्यापार में भारत की हिस्सेदारी २३ फीसदी है। हर साल २४ लाख टन गोमांस का निर्यात होता है। मोदी के सत्ता में आने के बाद २०१४-२०१५ में भारत दुनिया का नंबर एक गोमांस निर्यातक बन गया। मुख्य रूप से बीफ निर्यातकों में कई प्रतिष्ठित कॉरपोरेट कंपनियां हैं और इन गोमांस निर्यातक कंपनियों ने चुनावी बांड के जरिए भाजपा को करोड़ों रुपए दिए हैं। मोदी राज में हमेशा यही होता आया है कि एक तरफ सिरफिरे गिरोह गोमांस रखने के आरोप में मुसलमानों पर हमला करते हैं, उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित करते हैं और साथ ही उनकी ही सरकार और पार्टी गोमांस निर्यात करने वाली कंपनियों से चुनाव के लिए फंड लेती है। मूलत: गौ संरक्षण कृषि एवं मनुष्य के दैनिक जीवन से संबंधित है। वैदिक काल से ही गाय की मानव जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आयुर्वेद में भी गाय का महत्व अद्वितीय है, लेकिन महाराष्ट्र सहित पूरे देश में गौशालाओं की स्थित वास्तव में क्या है? क्या इनका संरक्षण, चारा-पानी उचित तौर पर होता है? एक ओर गोमाता कहना और गायों का चारे-पानी के बिना तड़पना ये मौजूदा तस्वीर है। मूलत: देशी गायें कम दूध देती हैं और इन गायों के दूध का मूल्य नहीं है। इसलिए किसान परिवार देशी गाय को पाल-पोस नहीं सकता। भैंस भी गाय जितनी ही उपयोगी है। गाय, भैंस, बकरी, भेड़ जैसे जानवर इंसानों के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत के दुग्ध विकास और संबंधित अर्थव्यवस्था में ये जानवर महत्वपूर्ण हैं। अब गायें बूढ़ी हो जाती हैं, दूध नहीं देतीं, किसान उनकी देखभाल नहीं कर पाते, ऐसी गायों का क्या करें? इस सवाल का जवाब सरकार के पास नहीं है। गोवंशहत्या न करने की नीति ठीक है, लेकिन यह पूरे देश में लागू नहीं है। गायों को केवल ‘राज्य माता’ आदि कहने के बजाय, सरकार को किसानों से बूढ़ी और सूखी (दूध न देने वाली) गायों को खरीदना चाहिए और राज्य के पशुपालन विभाग को इन सूखी गायों की मरने तक विशेष व्यवस्था करनी चाहिए। किसानों पर ‘राज्य माता’ का बोझ मत डालिए। किसानों की हालत तो पहले से ही सूखे गाय-बैलों की तरह हो गई है। ऐसे समय में किसान सूखी गायों की देखभाल वैâसे करेंगे? इस संबंध में कुछ उपाय करने की बजाय शासक गायों को ‘राज्यमाता’ आदि का दर्जा देकर जुमलेबाजी में मगन है। गाय, बैलों की माता है, लेकिन सरकार के बापजादे बैल हैं इसीलिए चुनाव के लिए अब गाय को लाया गया है। लोकसभा चुनाव में ‘बैल’ नहीं चले। इसलिए, राज्य के शासक अब विधानसभा चुनाव को देखते हुए गायों को मंच पर ले आए हैं। बेशक, वे कुछ भी करें, यह तय है कि राज्य की जनता इस सरकार को लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी गौशाला में धकेल देगी। लेकिन सावधान रहें, गायों को ‘राज्यमाता’ बनाने का पैâसला गाय के नाम पर दंगे कराने की एक साजिश हो सकती है।

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