भारतीय क्रिकेट असोसिएशन ‘वल्र्ड कप’ जीतेगा, ऐसी हवा थी, लेकिन लगातार दस मैच जीत चुकी भारतीय टीम अंतिम मैच में पराजित हो गई और क्रिकेट का विश्व कप ऑस्ट्रेलिया के पास चला गया। इसे क्रिकेट प्रेमियों को खेल की तरह देखना चाहिए। खेल में हार-जीत होती है। क्रिकेट विश्व कप प्रतियोगिता जीतने के उद्देश्य से भारतीय टीम मैदान में उतरी थी। अमदाबाद का नरेंद्र मोदी स्टेडियम ही खचाखच भर गया, भीड़ बाहर तक पहुंच गई थी। देशभर में विजय की दिवाली मनाने की जोरदार तैयारी हो गई थी। जीत की ट्रॉफी उठाकर अभिवादन करने के लिए ‘मोदी’ स्टेडियम में स्वयं प्रधानमंत्री मोदी हाजिर थे, लेकिन विश्व कप की लड़ाई में हम पराजित हो गए। मोदी को यह विश्व कप ऑस्ट्रेलिया के हाथ में सुपुर्द करना पड़ा। इस प्रतियोगिता के सभी मैचों को भारत ने जीता था और ऑस्ट्रेलिया पांच मैच हारी भी, लेकिन अंतिम मैच में भारत नहीं जीत सका। खुद को अजेय, अपराजेय, महाशक्ति बतानेवाले नरेंद्र मोदी की खास उपस्थिति में भी भारत की पराजय हुई, इसका दुख भारतीय जनता पार्टी के भक्तों को हुआ होगा। क्योंकि भारत विश्व कप जीतनेवाला है तो सिर्पâ नरेंद्र मोदी के चलते, ऐसी डींग लोग मार रहे थे। ‘मोदी है तो मुमकिन है’ यह खेल उन्हें मोदी स्टेडियम में विश्व कप मैच के दौरान करना था लेकिन वैसा हुआ नहीं। पूरी प्रतियोगिता में उत्तम काम करनेवाली टीम का दांव अंतिम मैच में २४० रनों पर सिमट गया और तुलना में ऑस्ट्रेलिया का प्रदर्शन अच्छा रहा। ऑस्ट्रेलियन टीम की फील्डिंग जबरदस्त थी और भारतीय टीम के रनों को रोकने में वे सफल रहे। ट्रेविस हेड ने फील्ड कवर पर पीछे की तरफ दौड़ते हुए रोहित शर्मा का अप्रत्याशित वैâच लिया। इस वैâच की तुलना कपिल देव के १९८३ के फाइनल मैच में विवयन रिचड्र्स द्वारा लिए गए वैâच से की जा रही है। ऑस्ट्रेलिया ने विश्व कप के अंतिम मैच में खुद को झोंक दिया और हमने नौ-दस मैच जीते और सब फॉर्म में है, इसलिए हम अंतिम मैच भी जीतेंगे, ऐसे आत्मविश्वास में रहे। अमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में वातावरण क्रिकेटमय कम और राजनीतिमय ज्यादा प्रतीत हो रहा था। मानो भाजपा की जीत का समारोह है, इस प्रकार का लगभग माहौल था। क्रिकेट खिलाड़ियों का यदि वहां महत्व होता तो विश्व कप के अंतिम मैच में कपिल देव, धोनी या विश्व कप जीतनेवाले क्रिकेट योद्धाओं को भारतीय क्रिकेट बोर्ड अंतिम मैच के लिए सम्मान के साथ बुलाया होता, लेकिन वल्र्ड कप प्रतियोगिता के अंतिम मैच के लिए मुझे निमंत्रण नहीं, ऐसा दुख कपिल देव ने व्यक्त किया है। १९८३ के क्रिकेट वल्र्ड कप जीतनेवाली भारतीय टीम के कप्तान कपिल देव थे। २०११ का वल्र्ड कप एमएस धोनी के नेतृत्व में जीता गया, लेकिन मोदी स्टेडियम में इन दो महान खिलाड़ियों को निमंत्रण नहीं था। कई भाजपा नेता, फिल्म कलाकार उपस्थित थे लेकिन कपिल देव और धोनी नहीं थे। ऐसा होता है क्या? इसका खुलासा भारतीय क्रिकेट बोर्ड को करना चाहिए और कपिल, धोनी को निमंत्रण क्यों नहीं, यह बताना चाहिए, ऐसा मौजूदा दिग्गज क्रिकेटरों को क्रिकेट वंâट्रोल बोर्ड से पूछना चाहिए। क्रिकेट पर राजनीतिज्ञों के कब्जे से लेकर सट्टेबाजी बढ़ी है, न्या. लोढ़ा कमीशन ने यह मुद्दा उठाया था। क्रिकेट को राजनीतिक नेताओं से मुक्त किए बिना खेल से सट्टेबाजी खत्म नहीं होगी, ऐसा न्यायाधीश लोढ़ा समिति की रिपोर्ट कहती है। लेकिन आज भारतीय क्रिकेट के सभी लगाम भाजपा के पास हैं। भारतीय क्रिकेट बोर्ड के खजाने में लगभग साढ़े छह हजार करोड़ रुपए जमा हैं। भाजपा का ‘वंशवाद’ भारतीय क्रिकेट का नेतृत्व कर रहा है। आईपीएल का कमिश्नर कौन? तो वह है भाजपा के वेंâद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के बंधु। इसलिए क्रिकेट में घुसी हुई राजनीति और प्रचार की ठाट-बाट कम होना मुश्किल है। जंतर-मंतर में न्याय के लिए आंदोलन करनेवाली महिला पहलवानों की खबर लेने के लिए भाजपा का नेता, मंत्री नहीं गया। लेकिन अमदाबाद के मोदी स्टेडियम में क्रिकेट वल्र्ड कप के फाइनल में प्रधानमंत्री, गृहमंत्री सहित सभी उपस्थित थे। भारत विश्व कप जीत नहीं सका इसका दुख है, लेकिन जीतने के बाद भाजपा ने विश्व कप को अपने कब्जे में लेने के लिए जो तैयारी की थी, उस पर पानी फिर गया है। २०२४ में हम ही जीतेंगे, ऐसा बोलनेवालों को मोदी स्टेडियम में ही झटका लगा है। भारतीय टीम का परफॉर्मेंस बेहतर था। विश्व को सर्वोत्तम टीम के तौर पर भारतीय टीम को माना जाता है। लेकिन ‘मोदी’ स्टेडियम में पराजय मिली इसलिए किसी को निराश नहीं होना चाहिए। असली खेल में यही होना ही चाहिए! मोदी स्टेडियम में राजनीति हार गई; लेकिन क्रिकेट जीत गया!