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संपादकीय : दे. भ. डॉ. कुरुलकर

जब से मोदी की सरकार आई है, संघ परिवार ने देश के सबसे संवेदनशील स्थानों पर अपने लोगों को जिद से बिठा दिया है। वे देश का नक्शा नहीं बदल सके। इसलिए वे संस्कृति को बदलने की कोशिश कर रहे हैं और इसके लिए मौके के स्थान पर लोगों को चिपकाया जा रहा है। उनमें से एक डॉ. प्रदीप कुरुलकर। इन महाशय को अब ‘एटीएस’ यानी आतंक विरोधी दस्ते ने गिरफ्तार किया है। डॉ. कुरुलकर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। उनकी गिरफ्तारी से उतनी सनसनी नहीं मची, जितनी मचनी चाहिए थी। कर्नाटक चुनाव में संघ परिवार ने बजरंगबली आदि को उतार दिया लेकिन देश के रक्षा विज्ञान विभाग की ‘गोपनीयता’ को पाकिस्तान जैसे दुश्मनों को बेचनेवाले कुरुलकर के बारे में एक भी भाजपा या संघ वाला मुंह खोलने को तैयार नहीं है। वैज्ञानिक डॉ. कुरुलकर ‘हनी ट्रैप’ में फंस गए और गोपनीयता बाहर देने लगे। कई गोपनीय जानकारियां उसने दुश्मन देशों को मुहैया करार्इं। इसमें पाकिस्तान भी शामिल है। यह गंभीर मामला है कि एक पाकिस्तानी महिला के मोह में वे आ गए और उन्होंने ये कारनामे किए। लेकिन ‘डीआरडीओ’ जैसे संवेदनशील संस्था में इस देशद्रोह को भाजपा पचाने की कोशिश कर रही है। क्योंकि गिरफ्तार वैज्ञानिक का नाम अब्दुल, हुसैन, सरफराज, शेख नहीं है। अगर ऐसा होता तो इस बात पर चर्चा होती कि डीआरडीओ में पाकड़ों को घुसाकर देश के लिए खतरा पैदा करने का काम विपक्षी दल कैसे कर रहा है। भाजपा के नेता सड़कों पर उतर गए होते। वे एलान कर देते कि देश पाकड़ों के हाथ बिक गया है, लेकिन कुरुलकर के मामले में मामला ‘ठंडा’ पड़ गया है। एकदम ठंडा कोकाकोला! ‘डीआरडीओ’ में डॉ. कुरुलकर एक वरिष्ठ वैज्ञानिक थे। उनका संघ परिवार से संबंध पुराना है। संघ के कई कार्यक्रमों में वे संघ के गणवेश में उपस्थित रहे हैं। संघ के मंचों पर वे सक्रिय रहे हैं। वे गर्व से कहते हैं कि वे ‘संघी’ हैं। राष्ट्रीय निष्ठा, देशभक्ति आदि का उपदेश देते थे, लेकिन उसी समय वे विदेशी शक्तियों को ‘लेदर करेंसी’ के बदले में देश की गोपनीयता बेच रहे थे। डॉ. कुरुलकर के पास डिप्लोमैटिक पासपोर्ट था और इसी पासपोर्ट पर वह कई देशों की यात्राएं करता था। आज जांच चल रही है कि उन देशों में जाकर उन्होंने कौन-से दीप जलाए। कुरुलकर के ‘डीआरडीओ’ गेस्ट हाउस में कई महिलाओं का आना-जाना लगा रहता था। कुरुलकर ने विदेशियों को देश की सुरक्षा से जुड़ी कुछ तस्वीरें और जानकारी दी। कुरुलकर के ‘मेल आईडी’ के जरिए पाकिस्तान से बार-बार संपर्क किया गया, ऐसी जानकारी सामने आई। इससे पहले भारतीय विदेश सेवा की माधुरी गुप्ता को भी इसी तरह के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था। जासूसी के ऐसे मामले नए नहीं हैं, लेकिन जब रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ लोग ही इस तरह की कबूतरबाजी में शामिल होते हैं, तो धक्का लगता है। डॉ. कुरुलकर का मामला गंभीर है, क्योंकि इस व्यक्ति पर संघ विचारधारा (यानी देशभक्ति) का पूरी तरह से संस्कार है। कुरुलकर ने एक वैज्ञानिक के रूप में अपना काम बखूबी किया। यह सच है कि नए शोध किए। रक्षा संबंधी नीतियां तय करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नियुक्त १० वैज्ञानिकों की जो समिति है, उसमें डॉ. कुरुलकर भी शामिल हैं। दुनिया के किस देश के साथ हमारे रक्षा संबंध क्या हों, उस देश के साथ हिंदुस्थान का व्यवहार कैसा हो, उन देशों के साथ रक्षा संबंधी जानकारियां और अनुसंधान का आदान-प्रदान करें या नहीं यह सुनिश्चित करने का अधिकार इस उच्चस्तरीय समिति के पास था और इस समिति में डॉ. कुरुलकर शामिल थे। डॉ. कुरुलकर पर संघ, वैकल्पिक रूप से भाजपा का कवच-कुंडल था, जो स्पष्ट हो गया। संघ विचारधारा का इतना बड़ा वैज्ञानिक दगाबाज हो गया फिर भी न तो प्रधानमंत्री बोल रहे हैं और न ही रक्षा मंत्री बोलने को तैयार हैं। कम-से-कम नवाब मलिक के दाऊद से संबंध के आरोप लगाने वालों को क्या कुरुलकर के कारनामों पर बात नहीं करनी चाहिए? संघ परिवार ने पिछले सात-आठ वर्षों में रक्षा, विज्ञान, कला, संस्कृति, कानून, न्याय और प्रशासन में अपने लोगों को बिठाया है। केंद्रीय जांच एजेंसियों का भी यही हाल है। इसलिए ऐसे प्रखर राष्ट्रवादी, देशभक्त डॉ. कुरुलकर कौन से मुखौटे पहनकर, कहां घूम रहे हैं, यह बताना संभव नहीं है। देश की न्याय व्यवस्था के साथ खिलवाड़ इसी के कारण हुआ है। देश की नीतियों का निर्धारण अब रा. स्व. संघ के हाथ में है। राजनीतिक विरोधियों की बदनामी, उनकी बदले की भावना से गिरफ्तारियां, चिंता का विषय है। ऐसा कराने के लिए मौके की जगह पर अपने लोगों को चिपकाने की यह समग्र नीति है। डॉ. कुरुलकर यदि शेख, हुसैन, इब्राहिम होते तो सीधे दाऊद से संबंध जोड़कर विपक्षी दल से ही जवाब मांगने का आंदोलन शुरू हो गया होता, लेकिन ‘दे.भ.’ डॉ. कुरुलकर के मामले में भाजपा और संघ ने चुप्पी साध ली। इसे ही ढोंग कहते हैं! नवाब मलिक ने जमीन का एक टुकड़ा खरीदा। यहां भाजपा के देशभक्तों ने देश बेच दिया! क्या अंतर पता चलता है? कम-से-कम महाराष्ट्र के विपक्षी दलों के नेताओं को तो इस पर सवाल पूछना चाहिए!

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