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संपादकीय: कलवा में मृत्यु कांड, पहले प्रायश्चित करें

ठाणे महापालिका के कलवा स्थित छत्रपति शिवाजी महाराज अस्पताल का मृत्युकांड सुन्न करनेवाला तो है ही, साथ ही मिंधे सरकार के कार्यकाल में राज्य की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के ‘वेंटिलेटर’ पर जाने का यह बहुत बड़ा प्रमाण भी है। १३ अगस्त रविवार की रात इस अस्पताल में १८ मरीजों की मौत हो गई। इस मृत्युकांड से संपूर्ण महाराष्ट्र को आघात पहुंचा, लेकिन ठाणे-कलवा जिनका ‘होम ग्राउंड’ है उन मुख्यमंत्री को शायद यह समझने में दो दिन लग गए। सोमवार की रात उनके चरण कलवा अस्पताल में पड़े। मुख्यमंत्री की तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए वह महाबलेश्वर में आराम कर रहे थे, ऐसा सुना गया। आप अपना स्वास्थ्य संभालें, जहां चाहें, जितना चाहिए उतना आराम कीजिए, लेकिन आप जनता की मदद के लिए वैâसे तुरंत दौड़कर पहुंचते हैं यह नाटक तो कम-से-कम इसके बाद नहीं करना। जिस हेलीकॉप्टर से आप मदद की जगह तुरंत पहुंचने का दावा करते हैं, उसी हेलीकॉप्टर से महाबलेश्वर से कलवा आने में आपको कितना समय लगा होता? मृत मरीजों के रिश्तेदारों के आंसू भी पोंछ सकते थे। लेकिन उन आंसुओं के सूखने के बाद मुख्यमंत्री वहां पहुंचे। हमेशा की तरह उच्चस्तरीय जांच आदि का आदेश जारी किया। स्वास्थ्य निदेशक की अध्यक्षता में जांच कमिटी १० दिनों के भीतर इसकी रिपोर्ट पेश करे, यह आदेश भी दिया। वर्तमान शासकों का यह एक ‘रूटीन’ कर्तव्य बन गया है, इन्होंने भी वही किया है। स्वास्थ्य व्यवस्था से संबंधित ऐसी कई जांच समितियां आईं और चली गईं। इनमें से कई की रिपोर्टें धूल फांक रही हैं। अक्सर ऐसी समितियां धूल झोंकनेवाली ही होती हैं। कलवा अस्पताल के मृत्युकांड के मामले में भी मुख्यमंत्री ने इससे कुछ अलग नहीं किया है। मान लेते हैं कि १० दिन में जांच रिपोर्ट वास्तव में आ ही जाती है और उसके अनुसार एक-दो लोगों का तबादला, निलंबन जैसी कार्रवाई करके तुरत-फुरत में मरहम लगाने का काम हो ही जाता है, तो इससे कलवा अस्पताल हो या राज्य के अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र हों वहां की दुर्व्यवस्था में कोई बड़ा परिवर्तन होगा क्या? मुख्यमंत्री से पहले स्वास्थ्य मंत्री ने भी कलवा अस्पताल के मृत्यु कांड के दो दिन के भीतर रिपोर्ट देखकर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करने का गुब्बारा हवा में छोड़ा ही था। लेकिन वह हवा में ही खो गया। अब मुख्यमंत्री ने नई जांच समिति गठित की है और कार्रवाई की गेंद और १० दिन आगे बढ़ गई। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि विरोधी इस घटना पर राजनीति तथा डॉक्टर और कर्मचारियों को मानसिक रूप से हतोत्साहित न करें। असल में तो यह कहते समय उन्हें खुद भी आईने में देखना चाहिए। मुंबई महानगरपालिका के कथित कोविड घोटाले के नाम पर आपकी सरकार गंदी राजनीति कर रही है, झूठे आपराधिक मामले दर्ज कर रही है। कलवा अस्पताल में एक रात में हुई १८ मौतों पर यदि विरोधियों ने आवाज उठाई, यदि इस मामले पर सरकार को घेरा तो इसे राजनीति वैâसे कहा जा सकता है? आप मुंबई महानगरपालिका में कथित भ्रष्टाचार का झूठा आरोप लगाकर हंगामा करो और विपक्ष कलवा अस्पताल की जानलेवा ‘सच्चाई’ के बारे में अपना कर्तव्य भी नहीं निभा सकता। लापरवाही की वजह से जिनकी जान चली गई, उन मरीजों के परिवारवालों की ‘आवाज’ भी नहीं बनें? मुख्यमंत्री सरकार के मुखिया हैं और स्वास्थ्य मंत्री उन्हीं के गुट के हैं। कलवा अस्पताल के मृत्युकांड का उत्तरदायित्व उन्हीं का है। तो फिर विपक्ष पर निशाना साधने की बजाय स्वास्थ्य मंत्री के ही कान खींचने चाहिए। १९८६ में जेजे अस्पताल में १४ लोगों की मौत की जिम्मेदारी लेते हुए तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री भाई सावंत ने इस्तीफा दे दिया था। यह मौतें दो महीनों में हुई थीं। कलवा अस्पताल की १८ मौतें २४ घंटे के भीतर की हैं। इसलिए अब के ‘सावंत’ को भी इस्तीफा देना चाहिए। यदि वह खुद नहीं देते हैं तो मुख्यमंत्री को उन्हें बर्खास्त करना चाहिए। क्योंकि सवाल कलवा के मृत्युकांड का और राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को कोमा में धकेलने पर प्रायश्चित करने का है। पहले प्रायश्चित करें फिर जो कहना है वह कहें! वैसे तो मिंधे सरकार के सत्ता में आने के बाद से महाराष्ट्र का राजनैतिक स्वास्थ्य भी बिगड़ा हुआ ही है। वह और बिगड़े इसके लिए दिल्ली से लेकर गल्ली तक प्रयास चल रहे हैं। इसे सुधारने के लिए जनता को ही २०२४ में बड़ा ‘ऑपरेशन’ करना पड़ेगा। तब तक आप जांच कमेटी, उसकी रिपोर्ट और कार्रवाई इत्यादि की हवा छोड़ते रहें।

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