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संपादकीय : सत्य की गुढी सजाएं!

आज चैत्र शुद्ध प्रतिपदा यानी गुढीपाडवा है। हिंदू नव वर्ष के पहले दिन के रूप में, अन्य तमाम त्योहारों में गुढीपाडवा का एक अलग ही स्थान है। पाश्चात्य संस्कृति के अनावश्यक प्रभाव के कारण १ जनवरी से शुरू होनेवाला नव वर्ष ही वास्तविक नया साल होता है, ऐसा भ्रम नई पीढ़ी को हो सकता है। लेकिन मराठी पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के आरंभ अर्थात गुढीपाडवा को नए साल की शुरुआत माना जाता है। सालों-साल से चली आ रही परंपरा के अनुसार, आज घरों में गुढी सजाई जाती हैं। बांस की छड़ी को रंग-बिरंगे समृद्ध वस्त्रों से सजाकर उस पर मंगल कलश स्थापित करके भोर में ही गुढी सजाई जाती है। शक्कर से बनी मिठाइयों की माला, पुष्पों की माला, नीम की टहनी से सजी घरों पर लहराती गुढी अर्थात विजय पताका ही होती है। इसके अलावा हर मराठी व्यक्ति दरवाजे पर सुंदर रंगोली, मिठाइयों और शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करके गुढीपाडवा का भारी हर्षोल्लास के साथ स्वागत करता है। गुढीपाडवा का महत्व सिर्फ हिंदू धर्म तक ही सीमित नहीं है। गुढीपाडवा को समूची सृष्टि के जन्मदिन के रूप में देखा जाता है। भगवान ब्रह्मा ने जिस दिन पूरी सृष्टि का निर्माण किया, सप्त लोकों को अस्तित्व में लाया और ब्रह्मांड का निर्माण किया, यह वही दिन है। संसार की रचना होने के बाद जिस दिन सूर्य पहली बार उदित हुआ वह मंगल तिथि अर्थात चैत्र शुद्ध प्रतिपदा है। इसीलिए किसी भी मांगलिक कार्य अथवा नए प्रकल्प के लिए गुढीपाडवा के मुहूर्त को आंख बंद करके चुना जाता है। हिंदू धर्म में जो प्रमुख साढ़े तीन मुहूर्त कहे गए हैं, उसमें से पहला मुहूर्त मतलब गुढीपाडवा है। चौदह वर्षों का वनवास पूरा करके और रावण का विनाश करके प्रभु रामचंद्र अयोध्या नगरी में जिस दिन लौटे यह वही दिन है। अयोध्या में प्रजा ने घर-घर गुढी सजाकर अपने प्रिय राजा का स्वागत किया और तब से राम के विजय के प्रतीक के रूप में गुढी सजाने की परंपरा शुरू हुई, ऐसा भी कहा जाता है। शिशिर ऋतु का पतझड़ खत्म होने गुढीपाडवा पर वसंतु ऋतु का आगमन होता है। वृक्ष संपदा पर से पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और उनमें नई कोंपलें फूटने लगती हैं। पलाश, गुलमोहर इत्यादि वृक्षों पर रंग-बिरंगे फूल खिलने लगते हैं। आम के बौर से आम भी निकलने लगते हैं और पक्षियों का चहचहाना शुरू हो जाता है। इस तरह से जीव सृष्टि में स्थिरता लानेवाला और प्रकृति की मायूसी को दूर करके नई चेतना बहाल करनेवाले त्योहार के रूप में गुढीपाडवा का असामान्य महत्व है, परंतु इस बार प्रकृति का ऐसा प्रकोप हुआ है कि गुढीपाडवा के मौके पर किसानों का तैयार निवाला बेमौसम की बारिश और ओलावृष्टि ने छीन लिया। किसान साल भर अथक परिश्रम करता है। आधुनिक तकनीकी ज्ञान का इस्तेमाल करके किसानों ने अपना उत्पादन भी भारी मात्रा में बढ़ा लिया है, परंतु इस बढ़े हुए उत्पादन पर होनेवाले खर्च की तुलना में बेहद मामूली भाव मिलने से यश और संपन्नता की गुढी सजाना किसानों के लिए कठिन हो गया है। पेंशन की मांग के लिए बीते कई दिनों से चल रहा आंदोलन अब सौभाग्य से खत्म हो गया है। इसलिए ओलावृष्टि और बेमौसम की बारिश के प्रहार से किसानों का जो भारी नुकसान हुआ उसका पंचनामा जल्द-से-जल्द करना सहज संभव है। यह काम जल्द हुआ तो गुढीपाडवा के बाद ही क्यों न हो नुकसान-भरपाई की रकम किसानों के हाथ में आ सकेगी। मांगल्य, चैतन्य, उत्साह और संकटों को परास्त करके बुरी शक्तियों के खिलाफ हासिल की गई जीत के प्रतीक के रूप में गुढीपाडवा को देखा जाता है। आज देश के लोग भी संकट में हैं। देश का संविधान खतरे में है। संवैधानिक संस्थाओं का मनमाने ढंग से दुरुपयोग चल रहा है। ‘खोके’शाही के माध्यम से असंवैधानिक सरकारें स्थापित की जा रही हैं। असत्य की छड़ी पर सजाई गई सत्ता की इस अवैध गुढी को खत्म करके सत्य व वास्तविक लोकतंत्र की गुढी सजाने का संकल्प आज जनता को करना होगा!

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