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संपादकीय : दिल्ली का गांव भोज

‘जी-२०’ सम्मेलन के सफलतापूर्वक समापन की घोषणा सरकार द्वारा की गई। भारत के पास नवंबर २०२३ तक ‘जी-२०’ की अध्यक्षता रहेगी। उसके बाद ‘जी-२०’ का मेजबान पद ब्राजील के पास होगा। भारत में सम्मेलन होने से पहले यह सम्मान इंडोनेशिया के पास था। अर्थात ‘जी-२०’ की घूमती ट्रॉफी एक देश से दूसरे देश तक घूमती रहती है। प्रधानमंत्री ने सभी विदेशी मेहमानों के लिए रात्रि भोज का आयोजन किया। इस ‘डिनर’ के लिए कांग्रेस अध्यक्ष और विरोधी दल नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को छोड़कर सभी को निमंत्रण दिया। यह एक प्रकार से भव्य गांव भोज रूपी निमंत्रण ही था। प्रत्येक राज्यों के मुख्यमंत्री इसमें सहभागी हुए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी वैश्विक भोजन में निमंत्रित थे। भोज के बाद शिंदे ने डकार मारा कि ‘प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया जीत ली।’ शिंदे के कहे अनुसार, यदि ‘जी-२०’ के माध्यम से मोदी ने जंग जीत ली होगी तो यह खुशी की बात है। भारत के लिए यह गौरव की बात है, लेकिन मोदी के इस विश्व विजय के दौरान मणिपुर आज भी जल रहा है और मणिपुर की जनता का मन जीतने में मोदी असफल साबित हुए हैं। मोदी ने दुनिया जीती, लेकिन चीन ने लद्दाख की जो जमीन हड़पी है, उस जमीन से चीनियों को पीछे धकेलने में मोदी नाकामयाब हुए हैं। इसलिए विश्व फतह करते समय अपने देश में किस बात की आग भड़की हुई है, पहले यह देखना जरूरी है। वहीं दूसरी ओर जीते हुए विश्व में भारत है कि नहीं? यह सवाल उठता ही है। आज भारत ने विश्व जीत लिया है। अगले ‘जी-२०’ के समय मेजबान रहनेवाला ब्राजील विश्व विजेता होगा। जग जीतने की यह ट्रॉफी इसी तरह घूमती रहेगी और यह जग जीतने का मौका नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार, सिंगापुर को भी मिलेगा। इसका मतलब यह है कि ‘जी-२०’ का आयोजन दर्शनीय और सुंदर तरीके से संपन्न हुआ। रूस के अध्यक्ष पुतिन और चीन के राष्ट्राध्यक्ष दिल्ली नहीं आए, लेकिन उनके प्रतिनिधि इस सम्मेलन में शामिल हुए। मोदी के नेतृत्व में ‘दिल्ली घोषणापत्र’ जारी हुआ और उस घोषणापत्र पर सभी की सहमति हुई। यूक्रेन में युद्ध शुरू होने के बाद रूस के सहभागी हुए लगभग सभी विश्व सम्मेलनों में संयुक्त घोषणापत्र पर मतैक्य नहीं हुआ। था, लेकिन भारत के सम्मेलन में रूस के शामिल होने के बावजूद घोषणापत्र एकमत से मंजूर हो गया। दिल्ली के घोषणापत्र में यूक्रेन युद्ध में हुई मानव क्षति के बारे में और युद्ध की वजह से विश्व पर होनेवाले दुष्पप्रभाव पर चिंता व्यक्त की गई, लेकिन इसी प्रकार की मानव क्षति स्वदेश के मणिपुर में शुरू है। हजारों लोग बेघर हो गए हैं, लगभग पांच सौ लोगों की मौत हो गई। यूक्रेन के मानव क्षति जितनी ही महत्वपूर्ण मणिपुर की मानव क्षति है। लोकतंत्र ‘जी-२०’ की आत्मा है। महात्मा गांधी लोकतंत्र के जनक हैं। ‘जी-२०’ सम्मेलन के लिए भारत पहुंचे राष्ट्रप्रमुखों ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ राजघाट पर जाकर महात्मा गांधी की समाधि पर दर्शन लिया। यह भाजपा और उसकी सरकार से समय ने बदला ले लिया है। पिछले दस वर्षों में गांधी और गांधी के विचारों की हत्या करने का प्रयास किया गया, लेकिन विश्व के सामने दिखावा करने के लिए ही सही, प्रधानमंत्री मोदी को गांधी के सामने झुकना पड़ा। क्योंकि संपूर्ण विश्व ने गांधी विचार को स्वीकारा है। ‘जी-२०’ की सफलता यह है कि कई चुनौतियों का सामना करने की राह इस सम्मेलन ने सभी को दिखाई है। अमीर देश, पाश्चात्य को रोकने के लिए ‘जी-२०’ का योगदान महत्वपूर्ण रहा और वह घोषणापत्र में दिखाई दिया। ‘जी-२०’ के ढोल ठंडे पड़ जाएंगे। इसमें राजनैतिक प्रचार का समावेश ज्यादा रहा। इसी दौरान ‘इंडिया’ को भारत बनाने का प्रयास हुआ। यह लोकतंत्र को मान्य होने का लक्षण नहीं है। ‘भारत: लोकतंत्र की जननी’ पुस्तक वितरण इस समारोह में किया गया। इस पुस्तक में बताया गया है कि ‘सरकार के कामकाज में जनता का मत जानने की प्रक्रिया भारत में अनंत काल से चल रही है। भारतीय परंपरा के अनुसार, लोकतंत्र अर्थात मत की स्वतंत्रता, तरह-तरह के विचार समक्ष रखने की स्वतंत्रता। जनकल्याण के लिए सरकार व विस्तृत समाज यह लोकतंत्र का अर्थ है। इसी तरह भारतीय लोकतंत्र में सद्भाव मूल्यों पर बल दिया जाता है।’ लेकिन प्रत्यक्ष रूप से भारत में इन सभी बातों का मूल्य आज शून्य रह गया है क्या? जनता के मत की कोई पुछवाई नहीं है। जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में पांच वर्षों से चुनाव नहीं हो रहे हैं। मुंबई सहित १४ महानगरपालिकाओं के चुनाव टाले जा रहे हैं। इसलिए लोकतंत्र का मतलब चुनने की आजादी इस कथन का अब कोई महत्व रह ही नहीं गया है। चुनाव आयोग से लेकर न्याय प्रणाली तक में पसंदीदा लोगों की नियुक्ति करना और उनके माध्यम से राज करना यह लोकतंत्र के किसी सिद्धांत का लक्षण नहीं है। यूक्रेन पर हमला यह ‘जी-२०’ के लिए चिंता का विषय हो सकता है, तो वहीं भारतीय लोकतंत्र और स्वतंत्रता का गला दबाना भी चिंता का विषय होना चाहिए। नहीं तो दिल्ली में दुनिया पहुंची, मोदी जी ने पंगत सजाई, लेकिन इस पंगत में भारतीय लोकतंत्र की थाली खाली रह गई, शायद यही कहना पड़ेगा। ‘जी-२०’ का दिल्ली में सफल होना सचमुच गर्व की बात है। अंगत-पंगत सचमुच अच्छी जमी। मेजबान मोदी ने मेहमानों की आवभगत अच्छे से की। भारत मंडपम भी चमकदार था। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शिंदे भी पंगत में शामिल हुए। पंगत समाप्त होने पर मुख्यमंत्री बोले, ‘वाह! वाह! मोदी ने दुनिया जीत ली!’ लेकिन जालना में मराठा समाज के लिए जान की बाजी लगानेवाले मनोज जरांगे-पाटील के पेट में पंद्रह दिनों से अनाज का एक दाना भी नहीं गया है। मोदी का दुनिया जीतकर क्या फायदा?

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