हर भूमिपुत्र के घर में आज पारंपरिक उत्साह और जोश के बीच श्री गणराया की प्राण-प्रतिष्ठा होगी। घरेलू गणपति हो या सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल, सभी जगह एक जैसा उत्साह नजर आएगा। उसमें भी महाराष्ट्र और भूमिपुत्रों के लिए गणेशोत्सव श्रद्धा, भावना, आस्था और अपार चैतन्य का उत्सव होता है। इसलिए आज से चांदा से लेकर बांदा तक अनंत चतुर्दशी तक श्रद्धा और चैतन्य की लहर ही उठती हुई दिखाई देगी। कितना भी संकट क्यों न हो, प्रतिकूल परिस्थिति ही क्यों न हो, फिर भी गणपति बाप्पा का आगमन उनको दी जानेवाली विदाई धूम-धड़ाके के बीच ही पूरी होती है। इस बार कोरोना का साया दूर हुआ है। हालांकि, उसकी जगह अन्य कई संकटों ने ले लिया है। देश के समक्ष चुनौतियां बढ़ती ही जा रही हैं और आम जनता के संकटों में भी प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। इस साल बारिश ने भी बहुत अच्छे से मुंह मोड़ लिया है। इसलिए राज्य पर भीषण सूखे का साया मंडरा रहा है। जिस मराठवाड़ा पर यह संकट का साया मंडरा रहा है वहां दो दिन पहले ही वैâबिनेट की बैठक हुई। उसमें करीब ५० हजार करोड़ के ‘पैकेज’ की घोषणा मुख्यमंत्री ने की। एक तरफ सूखा, फसल का न होना, उससे पैदा हुआ कर्ज का बोझ, इस वजह से किसानों की बढ़ती आत्महत्या और दूसरी तरफ घाती शासकों की ओर से धोखाधड़ी वाली घोषणाएं यह राज्य पर एक गंभीर संकट ही है। दिल्लीश्वरों द्वारा अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए महाराष्ट्र पर मढ़े गए ये संकट हमेशा के लिए दूर कीजिए, ऐसी प्रार्थना राज्य की जनता आज श्री चरणों में कर रही होगी। केंद्र के ‘स्वघोषित’ शासकों के बारे में भी इससे अलग स्थिति नहीं है। महंगाई से बेरोजगारी तक, किसानों की आय दोगुना करने से लेकर रोजगार का अवसर पैदा करने तक, धर्म से लेकर विकास तक, देश की सुरक्षा से लेकर तथाकथित आत्मनिर्भरता तक केवल डंका और कुप्रचार के गुब्बारे हवा में छोड़े जा रहे हैं। विभिन्न राज्यों में जातीय, धार्मिक ध्रुवीकरण के धंधे शुरू हैं। उससे दंगे भड़काकर उस पर राजनैतिक स्वार्थ की रोटियां सेंकने का इरादा सत्तापक्ष का है। महंगाई, बेरोजगारी और अन्य संकटों से जकड़े हुए देशवासियों को धर्म और श्रद्धा के झांसे में फंसाने का षड्यंत्र शुरू है। उसके लिए अयोध्या में श्रीराम मंदिर से लेकर समान नागरिक कानून, ‘एक देश-एक कानून’ जैसे कई मुद्दों की ‘धमकी’ दी जा रही है। चार महीनों से जल रहे मणिपुर को लेकर मनमुताबिक मौन रखना और दूसरी तरफ संसद के सुरक्षा रक्षकों की आंखों पर ‘मणिपुरी’ टोपी रखकर मणिपुरी अस्मिता की कुंजी दिखाना। विरोधी दलों के ‘इंडिया’ गठबंधन का वङ्कामूठ वर्ष २०२४ में अपना सफाया कर देगी, इसका एहसास होने पर शासक और उनके भक्तों को ‘इंडिया नहीं भारत’ की हिचकी आ रही है। ‘चंद्रयान-३’ अभियान से लेकर ‘जी-२०’ सम्मेलन तक तथाकथित वैश्विक सफलता का ‘क्लोरोफार्म’ जनता को देने का धंधा चल रहा है। ‘हूल’ और ‘भूल’ यह मौजूदा शासकों के प्रमुख हथियार हैं। उसका इस्तेमाल कर जनता को एक अलग ही भूलभुलैया में रखने का धंधा नौ वर्षों से शुरू है। साल २०२४ के लिए भी उनका वही प्रयास है। हालांकि, इन नौ सालों की सत्ता ने हमें केवल ‘प्रसव पीड़ा’ ही दी है, यह अब जनता समझ चुकी है। इसलिए वर्ष २०२४ में देश में परिवर्तन लेकर आना ही है, ऐसा निश्चय जनता ने किया ही है। ‘गणराया, देश में बढ़े दंभ और सुंभ, जनता के दुख-दर्द नष्ट करिए और लोकतंत्र का विघ्न दूर कीजिए!’ यही प्रार्थना तमाम गणेश भक्त भी आज घर-घर में विराजमान हुए बाप्पा के चरणों में कर रहे होंगे।