एक ब्रह्मचारी गाढवाशी झोंबता, हाणुनिया लाथा पळाले ते।
गाढवही गेले, ब्रह्मचर्य गेले, झाले तोंड काळे, जगामाजी।।
जगद््गुरु संत तुकाराम महाराज ने एक ब्रह्मचारी के कारनामे की कहानी बड़े ही व्यंग्यात्मक ढंग से कही है। इस अभंग की रचना करते समय तुकाराम महाराज को मोदी, फडणवीस, शिंदे, केसरकर, शेलार, अजीतदादा जैसे भाजपा की टोली नजर आ रही थी या नहीं यह कहा नहीं जा सकता, लेकिन यही वर्णन इस मंडली पर भी लागू होता है। महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी की मूर्ति के ढहकर गिरते ही जनमत गरमा गया है और लोगों ने सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। भ्रष्ट और शिवद्रोही सरकार को जूते मारने का कार्यक्रम मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया के सामने हुआ। लोकतंत्र में ऐसे आंदोलन तो होते ही रहेंगे। भारतीय जनता पार्टी ने भी ऐसा किया है, लेकिन आज जब उनकी सरकार राज्य में है तो वे नहीं चाहते थे कि ये आंदोलन लोकतांत्रिक तरीकों से हों। ‘जूते मारो’ आंदोलन को पुलिस ने बाधित किया था और मूर्खों का कार्यकलाप ऐसा था कि भाजपा ने छत्रपति शिवाजी के सम्मान में विपक्ष के आंदोलन के विरोध में या उसके जवाब में एक छुटभैया आंदोलन किया। अर्थात उनका आंदोलन शिवराय के सम्मान के विरोध में हुआ। विरोध के लिए विरोध करते हुए उन्होंने यह दिखा ही दिया कि वे शिवराय के सम्मान के खिलाफ हैं। तुकाराम के अभंग में एक ब्रह्मचारी ने भी अपना गधा खो दिया था। भाजपा ने खुद का गधापन साबित करके अपना बचा-खुचा ब्रह्मचर्य भी खो दिया है। फडणवीस और अन्य लोगों का कहना है कि ‘सिंधुदुर्ग किले की शिवराय की मूर्ति गिरकर छिन्न-भिन्न हो गई, जिसके लिए प्रधानमंत्री मोदी ने माफी मांगी है। तो विपक्ष आंदोलन क्यों कर रहा है? विपक्ष राजनीति कर रहा है।’ चूंकि फडणवीस ने राज्य की संस्कृति को बीमार कर दिया है, अगर कोई शिवराय के सम्मान के लिए स्वच्छ राजनीति कर रहा है तो भाजपा के सर्वांग में खुजली क्यों होनी चाहिए? आप वहां अपना सिर खुजलाते रहो। महाराष्ट्र को ज्ञान देने की जरूरत नहीं है। आपका शिवप्रेम कितना पाखंडभरा है, यह बार-बार उजागर होता रहा है। शिवराय ने स्वराज्य यानी महाराष्ट्र का निर्माण किया और शिवराय की प्रेरणा से ही आज का महाराष्ट्र अखंड है। भाजपा की राष्ट्रीय नीति महाराष्ट्र को विभाजित करना और विदर्भ को उससे अलग करना है। स्वतंत्र विदर्भ होने तक दूल्हा न बनने की प्रतिज्ञा जिस फडणवीस ने की थी, उनको शिवराय का भक्त वैâसे माना जा सकता है? जब महाराष्ट्र के पूर्व भाजपाई राज्यपाल कोश्यारी ने सार्वजनिक कार्यक्रम में छत्रपति का अपमान किया तो उस वक्त उनके पक्ष में खड़े हुए शिंदे-फडणवीस को शिवभक्त मानना औरंगजेब को महाराष्ट्र प्रेमी मानने जैसा है। अब शिवराय की भव्य प्रतिमा ढहकर गिर गई और इसके खिलाफ गुस्सा जाहिर करने वाले शिवप्रेमियों को रोका जा रहा है। मालवण में भाजपा के गुंडों ने शिवप्रेमियों पर हमला किया। इन गुंडों ने पुलिस को गालियां दीं। फडणवीस अरब सागर में शिवराय के भव्य स्मारक की घोषणा कर चुके हैं। कुछ साल पहले प्रधानमंत्री मोदी ने समुद्र में इस स्मारक का जल पूजन भी किया था, लेकिन इस स्मारक का काम अभी तक एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा है। जो मूर्त रूप न ले सका, उस शिवराय के स्मारक की राजनीति इसी मंडली ने की। ये क्या शिवभक्ति हुई! यदि समुद्र में स्मारक बनाना संभव न हो तो राजभवन के पीछे खुले स्थान में शिवराय का भव्य स्मारक अवश्य बनाया जा सकता है। महाराष्ट्र विद्वेषी राजभवन और उनका पोषण करने वाले सफेद हाथियों की जरूरत ही क्या है? आज की तारीख में वह स्थान शिव स्मारक के लिए उपयुक्त है। यदि मालवण के कुछ पाप धोने हैं तो राजभवन के पीछे समुद्र पर तुरंत शिव स्मारक की नींव रखनी चाहिए। बेशक यह मंडली राजभवन का भूखंड एक बार अडानी या लोढ़ा को दे देगी, लेकिन शिव स्मारक के लिए इंंचभर जमीन नहीं देगी और ऐसा शिवराय के भक्तों का कहना है! फडणवीस और उनकी बेबस सरकार ने शिवराय का सम्मान नहीं किया, इसके उलट, जब शिवराय का अपमान किया गया तो उन्होंने अपना मुंह सिल दिया। कुल मिलाकर छत्रपति शिवराय अपमान मामले में भाजपा और उसके चमचों का दिखावा उजागर हो गया। उनके लिए खुद ही गदहा बनने का वक्त आ गया और उनका ब्रह्मचर्य भी चला गया। शिवप्रेमियों पर कानूनी हंटर चलाने वाली शिंदे सरकार राज्य में है। इसे शिवराय का राज्य नहीं कहा जा सकता। शिवराय ने महाराष्ट्र को वीर और मर्द बनाया। फडणवीस-शिंदे और अन्य लोगों ने महाराष्ट्र को लाचार, बेईमान और नामर्द बनाना ठान लिया है। शिवराय का महाराष्ट्र ऐसा नहीं है। गदहों द्वारा ब्रह्मचर्य खोने पर और क्या होगा!