हिंदू धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म है। पांच हजार वर्ष पूर्व इस धर्म की स्थापना हुई थी। अनेक संकटों, झंझावातों और घावों को झेलकर इस धर्म की पताका फहरा रही है। इसके लिए महाभारत काल से अनगिनत लोगों ने बलिदान दिए हैं। तलवार और तराजू के जोर पर इस सनातन धर्म को विकलांग करने के प्रयत्न हुए, फिर भी धर्म की पताका फहरा रही है। इसलिए तमिलनाडु के एक मंत्री उदयनिधि स्टालिन द्वारा सनातन धर्म को लेकर तोड़े गए तारे अज्ञान के अंधकार में लुप्त हो गए हैं। उदयनिधि ने क्या कहा? ‘सनातन धर्म सामाजिक न्याय और समानता के विरोध में है। कुछ बातों का विरोध नहीं किया जा सकता। उन्हें खत्म ही करना पड़ता है। हम डेंगू, मच्छर, मलेरिया या कोरोना का विरोध नहीं कर सकते। उन्हें खत्म ही करना पड़ता है। इसी तरह हमें सनातन धर्म भी खत्म करना है। उदयनिधि का यह बयान उनकी ‘द्रविड़ी’ भूमिका से तर्कसंगत होगा तब भी देश के ८०-९० करोड़ हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचानेवाला है। भारतीय जनता पार्टी व उसके बजरंगी बगलबच्चों की तो उदयनिधि के बयान से बांछें ही खिल गर्इं। उदयनिधि को उसी भाषा में उत्तर देना चाहिए। वो करना छोड़कर ‘इंडिया’ आघाड़ी अब उदयनिधि पर क्या भूमिका लेगी? शिवसेना की इसे लेकर क्या नीति होगी? इत्यादि प्रश्न पूछे गए। शिवसेना की भूमिका यह पुरानी वाली ही, यानी ‘गर्व से कहो हम हिंदू हैं’ ही है व रहेगी। ममता बनर्जी से लेकर केजरीवाल, कांग्रेस इत्यादि लोगों ने भी उदयनिधि के बयान पर नाराजगी व्यक्त की है। दोष तो सभी धर्मों में है, पर हिंदू धर्म ने ये दोष दूर करने के सतत प्रयत्न किए हैं। सती प्रथा, अस्पृश्यता, विषमता, स्त्री शिक्षा जैसे अनेक विषयों पर हिंदू धर्म ने प्रगतिशील भूमिका अपनाई। डॉ. आंबेडकर ने अपने लाखों बंधुओं समेत हिंदू धर्म का त्याग किया। धर्म के स्पृश्य-अस्पृश्यता और रूढ़ि-परंपरा के विरोध में उन्होंने बगावत की। इस बगावत से सनातन धर्म ने सबक लिया व सामाजिक न्याय के तत्व को स्वीकारा। धर्म जस का तस है, पर अस्पृश्यता, रूढ़ि-परंपरा को मलेरिया, डेंगू की तरह हमने खत्म किया। उदयनिधि स्टालिन को सनातन धर्म का यह इतिहास समझना चाहिए। दूसरा यह कि द्रविड़ बनाम सनातन संघर्ष का यह इतिहास भी पुराना ही है। उसी संघर्ष से दक्षिणी लोगों में हिंदी विरोध बढ़ा। वे हिंदू धर्म, उनके देवता, परंपरा मानने को तैयार नहीं। ‘द्रविड़ी’ दलों की नींव ही ब्राह्मणवाद के विरोध के प्रतीक के रूप में डाली गई। द्रविड़ी लोगों का अंतिम संस्कार यह दहन से नहीं, तो दफन पद्धति से होता है। जयललिता, उदयनिधि स्टालिन के दादा करुणानिधि को भी दफन किया गया था। तमिलनाडु में सनातन विरोध इतना अधिक है कि वहां ‘पूर्णिमा’ की जगह अमावस्या को मंगलकार्य, उद्घाटन, शुभारंभ किए जाते हैं। ऐसे द्रविड़ी स्थान से सनातन धर्म का विरोध होना, यह बात आश्चर्यजनक नहीं है। जातीयता, आर्थिक भेदभाव व अस्पृश्यता की चिढ़ से दक्षिण में सनातन विरोध की चिंगारी भड़की। उसी तरह वह बारंबार महाराष्ट्र में भी भड़की। भिक्षुकशाही, राजकीय-सामाजिक पेशवाई, जाति-प्रथा के विरोध में महाराष्ट्र ने निरंतर बगावत की। मंदिर में अस्पृश्यों का प्रवेश नकारा तब ब्राह्मण होते हुए भी साने गुरुजी ने अनशन शुरू किया। जातिवाद के चटके सहन करनेवाले महाराष्ट्र से ही डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, शाहू महाराज निर्मित हुए। छत्रपति शिवाजी महाराज जात-पांत नहीं मानते थे। उनके सैनिक, अष्टप्रधान मंडल की रचना यही दर्शाती है। इसलिए द्रविड़ी नेताओं का सनातन विरोध यह अज्ञान पर आधारित है और वह उनकी प्रांतीय राजनीति है। १९२४ में केरल के त्रावणकोर के राजा को मंदिर में आने-जाने के लिए रास्तों पर दलितों की प्रवेशबंदी की गई। उससे दलितों में बगावत भड़की। राजा ने वह आंदोलन दबा दिया। तब ई.वी. रामास्वामी यानी पेरियार उस आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने दीर्घ काल तक दलितों के हक की लड़ाई लड़ी। कारावास भोगा। पेरियार की तरह अनिष्ट प्रथाओं के विरोध में लड़नेवाले अनेक कर्ता पुरुष हिंदू धर्म में भी निर्मित हुए। महाराष्ट्र में डॉ. आंबेडकर के आंदोलन को उच्चवर्णियों का सक्रिय समर्थन था ही। महाड के चवदार तालाब सत्याग्रह के पीछे सुरबा नाना टिपणीस थे। आगरकर, फुले, महर्षि कर्वे, कर्मवीर भाऊराव पाटील, महर्षि विट्ठल रामजी शिंदे, ज्योतिबा फुले, गाडगे महाराज, प्रबोधनकार ठाकरे इत्यादि के चरित्रों का पारायण उदयनिधि को करना चाहिए। बाबा आमटे ने जाति-पांति न देखते हुए कुष्ठरोगियों को नया जीवन दिया। दुनिया में ऐसा उदाहरण नहीं होगा। महाराष्ट्र की संत परंपरा भले ही सनातनी हो तब भी सामाजिक सुधार स्वीकारने वाली रही। विश्व का कोई भी धर्म निर्दोष नहीं है। प्रत्येक धर्म में पाखंड का अंश है। भाजपा का हिंदुत्व जैसा ढोंगी है, वैसा ढोंग सभी धर्मों में है। वीर सावरकर प्रखर हिंदुत्ववादी थे। परंतु उनका दृष्टिकोण विज्ञानवादी था। सनातन धर्म गाय को देवता-माता मानता है। वीर सावरकर को गौमाता का ढकोसला मान्य नहीं था। बालासाहेब हिंदूहृदयसम्राट, ने भी स्पष्ट कहा, शिखा-जनेऊ वाला, घंटा बजानेवाला हिंदुत्व हमें मान्य नहीं। इससे विपरीत भाजपा का है। वे चुनाव में राम-बजरंगबली ले आते हैं व लोकसभा में राजशाही के प्रतीक के तौर पर ‘सेंगोल’ लाते हैं। यह विज्ञान न होकर रूढ़िवाद और तानाशाही है। समाज को पुरानी परंपराओं व जुआठ में फंसाने वाले ‘सनातनी’ विचार नई पीढ़ी को मान्य नहीं। धर्म उसी तरह रहेगा। प्राचीन परंपरा, रूढ़ि, विषमता के जाल हट जाएंगे। उदयनिधि स्टालिन, रशिया के लेनिन और स्टैलिन के विचार भी टिके नहीं। उनकी प्रतिमाएं लोगों ने तोड़ी। हालांकि, हिंदुस्थान में सनातन धर्म है। रहेगा!