हिंदुस्थान के चुनाव आयोग का इस बात के लिए जितना भी अभिनंदन किया जाए वह कम ही है कि उसने माटी खाने का एक भी मौका नहीं छोड़ा। पहले दौर के चुनाव के ११ दिन बाद और दूसरे दौर के ३ दिन बाद चुनाव आयोग ने घोषणा की कि मतदान प्रतिशत में छह प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह कृत्य संदिग्ध है। इस पर किसी ने कमेंट किया कि चुनाव आयोग ने जो ‘ईवीएम’ वोटिंग के लिए भेजी हैं, क्या वे ‘ईवीएम’ मुर्गियों की तरह अंडे वगैरह देती हैं? या मतदान खत्म होने के बाद ‘ईवीएम’ गर्भवती हो जाती हैं और फिर छह प्रतिशत अतिरिक्त वोटों को जन्म देती हैं? यह एक तरह से हिंदुस्थान के चुनाव को हाईजैक करने की योजना है और इस घिनौने खेल में चुनाव आयोग भी शामिल हो गया है। जब द्रौपदी का वस्त्रहरण हो रहा था तो उस अपमान में दोनों तरफ के योद्धा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मदद कर रहे थे। चुनाव आयोग आज उसी भूमिका में है। मतदान के आंकड़ों की घोषणा करने में इतनी देर कभी नहीं हुई। इसका उदाहरण महाराष्ट्र के नांदेड़ से दिया जा सकता है। चुनाव के बाद ५२ प्रतिशत मतदान की घोषणा की गई। फिर यह ५४ फीसदी तक पहुंच गया और अब ६५ फीसदी मतदान की घोषणा चुनाव आयोग ने की है। चंद्रपुर में मतदान सात फीसदी बढ़ा। पहले दो चरणों के पूर्व घोषित आंकड़ों और अब घोषित आंकड़ों में छह से सात फीसदी का अंतर है। पिछले ११ दिनों में वैâसे हुई इतनी बढ़ोतरी? निर्वाचन आयोग क्या जादू किया यह जानने का कोई उपाय भी नहीं है। सात प्रतिशत का मतलब है सीधे डेढ़ लाख वोटिंग बढ़ जाना। हर जगह मतदान प्रतिशत बढ़ाने वाले चुनाव आयोग का कहना है कि नागपुर में मतदान प्रतिशत ०.१४ फीसदी कम हुआ है। गौरतलब है कि नागपुर में मोदी के धुर विरोधी नितिन गडकरी खड़े हैं। यहां तक कि जब वोटिंग बैलेट पेपर पर होती थी तो वोट के अंतिम आंकड़े अगली सुबह सामने आते थे। लेकिन मोदी के ‘डिजिटल इंडिया’ में आंकड़े ग्यारह-बारह दिन बाद आते हैं और वह भी रहस्यमय तरीके से। इस प्रकार मोदी का डिजिटल इंडिया एक ‘प्रâॉड’ है और लोगों को बेवकूफ बनाने का एक धंधा है। सुप्रीम कोर्ट ने ‘ईवीएम’ मामले में चुनाव आयोग को खुली छूट दे दी है। चुनाव आयोग के पास संवैधानिक शक्तियां हैं। आयोग निष्पक्ष तरीके से चुनाव कराने के लिए बाध्य है, लेकिन अगर चुनाव आयोग में मोदी-शाह के बैलों को बांधा जा रहा है तो और क्या होगा? पहले दो दौर की वोटिंग के आंकड़ों में सात फीसदी का अंतर वैâसे हो सकता है? यह अंतर हर उस राज्य और निर्वाचन क्षेत्र में मौजूद है जहां चुनाव होते हैं। यह वैâसे संभव है? यह गणना किस सयाने ने की? चुनाव आयोग ने बढ़े मतदान का ‘प्रतिशत’ किसके पलड़े में डाला? गर्भवती होकर ‘ईवीएम’ ने जिन ‘वोट वृद्धि’ को जन्म दिया वह उसने किस तरह वैâसे संभव बनाया? इन सवालों का जवाब मिलना चाहिए। पाकिस्तान जैसे देश में निर्वाचन प्रणाली सेना के हाथ में है। सेना द्वारा तय किए गए अनुसार किसी एक पार्टी और उम्मीदवार को वोट मिलते हैं। वहां का चुनाव आयोग सेना प्रशासन के इशारे पर काम करता है। क्या हमारा चुनाव आयोग भी इसी तरह तानाशाही का गुलाम बन गया है? चुनाव आयोग के काम पर भरोसा नहीं किया जा सकता। अगर चुनाव आयोग लोगों को ‘टेकन फॉर ग्रांटेड’ मानकर आंकड़ों में हेरा-फेरी कर रहा है तो वह आग से खेल रहा है। यदि जनता के सब्र का बांध टूट गया और लोकतंत्र की रक्षा के लिए जनता ने उग्र रूप धारण कर लिया तो उस दावानल में सबसे पहला शिकार चुनाव आयोग होगा। लोगों द्वारा मतदान किए बिना मत वृद्धि एक चुनावी धोखाधड़ी है। ईवीएम कृत्रिम गर्भाधान में छह-सात प्रतिशत मतों की वृद्धि अप्राकृतिक कृत्य है। चुनाव आयोग की हरकतें देशद्रोह के समान हैं और अगर भविष्य में चुनाव आयोग पर मुकदमा चलाया जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। भारत का लोकतंत्र संकट में है। भारतीय लोकतंत्र में हर रोज एक नया काला दिन आ रहा है। यह वैश्विक लोकतंत्र पर आया संकट है। विश्व में आदर्श एवं मार्गदर्शक बन चुके भारतीय लोकतंत्र के अधोपतन को रोका जाना चाहिए या तो वे चुनाव कराना नहीं चाहते और यदि हों तो वे उन चुनावों में लोकतंत्र की हत्या कर मनमाफिक उपद्रव करना चाहते हैं। मोदी के इसी लोकतांत्रिक पैटर्न को इस बार जनता खत्म करने जा रही है। चुनाव आयोग को भी उस वक्त आरोपियों के कटघरे में खड़ा करना पड़ेगा!