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संपादकीय : अकाल!

इस साल का मानसून सूखा ही जाता नजर आ रहा है। महीने भर के विश्राम के बाद कुछ हिस्सों में बारिश की वापसी हुई फिर भी मराठवाड़ा, नगर जिला सहित महाराष्ट्र के कई भागों में अगस्त-सितंबर महीने में बरसात नहीं होने की वजह से बुआई व्यर्थ हो गई है। कई तालुका में पीने के पानी और मवेशियों के चारे की गंभीर समस्या खड़ी होती जा रही है। जमीन में दरार पड़ने लगी है, लेकिन राजनेता अपनी राजनीति में मशगूल हैं। राज्य में तीन पार्टियों की सरकार है। सरकार को एक मुख्यमंत्री और दो अनुभवी उपमुख्यमंत्री मिला है। इन तीनों अवतारी पुरुषों को प्रधानमंत्री मोदी का आशीर्वाद मिला है। इसके बावजूद महाराष्ट्र का किसान अकाल से त्रस्त हो चुका है। उसका खेत सूख चुका है और चूल्हा बुझ चुका है। कभी गीला तो कभी सूखा अकाल, कभी यह बादल तो कभी यह तूफान, ऐसे चक्र से किसान घिर गया है। मराठवाड़ा, नगर, उत्तर महाराष्ट्र की परिस्थिति भयावह हो गई है। मराठवाड़ा में अगस्त महीने में सौ से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है। यदि सरकार ने आंखें नहीं खोलीं तो और लाखों किसान आत्महत्या का रास्ता अपना सकते हैं। सूखी-बंजर जमीन, कर्ज से घिरे किसानों का जीवन त्याग करना यह महाराष्ट्र की संस्कृति को शोभा नहीं देता। एक ओर एकनाथ शिंदे, अजीत पवार और देवेंद्र फडणवीस अपने गुट के विधायकों, सांसदों पर करोड़ों की निधि की बरसात कर रहे हैं, लेकिन बरसात के अभाव में परेशान हो चुके किसानों तक इस लूटी गई रकम का एक रुपया भी नहीं पहुंच रहा है। राजनीति के लिए पैसे हैं, लेकिन किसानों के लिए नहीं। ना.धो. महानोर आज हमारे बीच नहीं हैं। एक बार उन्होंने अकाल पर चिंतन किया था। उन्होंने कहा था कि ‘अकाल पहले से ही है, लेकिन राहत महत्वपूर्ण होती है। आज के नेता वह देते नजर नहीं आते। पहले यशवंतराव, वसंतदादा, शरद पवार इस समस्या पर टूट पड़ते थे। जलयुक्त शिवार योजना का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है, लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर जमीन स्तर पर अपना कार्य नहीं है। केवल विज्ञापन देने से काम नहीं हो जाता। लोगों को सही तौर पर राहत प्रदान करने के लिए लगातार काम करना होगा। किसानों की कर्जमाफी की बातें होती हैं, लेकिन किसानों को कर्जमाफी नहीं, बल्कि अपने पैरों पर खड़े होने के लिए ताकत की आवश्यकता है। उन्हें मिलनेवाला मामूली अनुदान समय पर दीजिए। खेत में छोटी बोरिंग के लिए एकाध लाख रुपए दीजिए। पूरा कर्ज नहीं, बल्कि उसकी ब्याज माफी दें। लाख रुपए वह किश्तों में चुुका देगा। इसके लिए वसूली को त्रैवार्षिक अवधि की करें। फल बाग के लिए अनुदान दीजिए। इससे किसानों का आत्मसम्मान भी बना रहेगा।’ महानोरा ने किसानों के मुद्दे को सटीक स्पर्श किया था लेकिन महाराष्ट्र के कृषि मंत्री को इसका क्या भान है? वर्तमान कृषि मंत्री यह तोड़फोड़ और खुद के कोर्ट-कचहरी के चक्करों में उलझे हुए हैं। उनकी खेती, बीज अलग हैं। अजीत पवार का सभा-सम्मेलन आयोजित करने में ही समय निकल जाता है। बीड़ जिले में जेसीबी खड़े कर उसमें से खुद पर फूल बरसवाते दिखाई देते हैं, लेकिन किसानों का क्या? पूर्ववर्ती कृषि मंत्री भी ठन-ठन गोपाल ही थे। असल में, खेती की उपज को सही मूल्य, कृषि मजदूरों को न्यूनतम वेतन, ग्रामीण बेरोजगारों को काम इन तीनों विषयों पर कृषि मंत्री को तन्मयता से काम करना चाहिए, लेकिन वह सत्कार करने और पुष्पहार स्वीकार करने में मग्न हैं। किसानों का मुनाफा दोगुना अर्थात ‘डबल’ करेंगे यह प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की थी, लेकिन किसानों को आधी रोटी भी नसीब नहीं हो रही है यह वास्तविकता है। महाराष्ट्र का अकाल चिंगारी की तरह चटका दे रहा है। मुख्यमंत्री शिंदे खुद को किसान पुत्र समझते हैं। वह सातारा के अपने खेत में हेलिकॉप्टर उतारते हैं और खेती करते हैं। फडणवीस-अजीत पवार भी इसी तरह फाइव स्टार किसान हैं। पवार-शिंदे को पता नहीं है कि शकरकंद जमीन में उगता है या पेड़ पर, लेकिन महाराष्ट्र के अकाल निवारण का उनके पास उपाय नहीं है। किसानों की आत्महत्या पर वे रोक नहीं लगा पा रहे हैं। आज किसानों के मुद्दे पर प्रभावी उपाय खोजने की जरूरत है। तुरंत अनुदान, कृषि बीमा, बिजली बिल माफी पर पैâसला होना आवश्यक है। पीने के पानी का संकट बना हुआ है। इसके लिए ‘टैंकर्स’ बढ़ाने पड़ेंगे। मवेशियों के चारा-पानी को लेकर सरकार क्या उपाय करनेवाली है? मुंबई के शिवसेना नगरसेवकों को फोड़ने के लिए कब तक ७०० करोड़ खर्च हो चुके हैं। इसके अलावा मनपा निधि भी है। विधायकों पर नगरविकास विभाग का अपव्यय जारी है। इसे रोक कर सभी पैसे अकाल निवारण के लिए, किसान बंधुओं के प्राण बचाने के लिए खर्च करने की आवश्यकता है। मराठवाड़ा के बीड़ जिले में अकेले अगस्त में ३० से ज्यादा आत्महत्याएं हो चुकी हैं। अब इन मृतकों पर क्या कृषि मंत्री ‘जेसीबी’ से पुष्प बरसाने वाले हैं? महाराष्ट्र में इस बार जून से अगस्त इन तीन महीनों में औसतन आठ प्रतिशत कम बारिश हुई है। इस महीने में उसकी कितनी कृपा‘वृष्टि’ होगी इसका अंदाज मौसम विभाग को भी नहीं है। राज्य के बांधों में औसतन ४२ प्रतिशत पेयजल मौजूद है। इसलिए भविष्य में पीने के पानी का भी मामला गंभीर होनेवाला है। नगर जैसे जिले में आज ही लोग टैंकर के पानी पर आश्रित हो गए हैं, राज्य के ३५८ में से २६४ तालुकाओं में अकाल की आग है। ऐसा हुआ तो शैक्षणिक संस्थान बंद हो जाएंगे। छोटे उद्योग थम जाएंगे। गांवों से पलायन होगा। मुंबई-पुणे जैसे शहरों में भीड़ बढ़ जाएगी। इस गंभीर परिस्थिति के बीच से रास्ता निकालने वाली इच्छाशक्ति आज के राजनेताओं में नजर नहीं आ रही है। मुख्यमंत्री और दो उपमुख्यमंत्रियों में जनता के सामने जाने की हिम्मत नहीं है। कुल मिलाकर, महाराष्ट्र में अकाल की स्थिति चिंताजनक है। इसमें भी अक्ल का अकाल पड़ने से रास्ता निकलना मुश्किल हो गया है।

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