जब भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात कर रहे थे, तभी चीन की पीठ में खंजर घोंपनेवाली विश्वासघाती हरकत सामने आई। उधर डोभाल चीनी विदेश मंत्री के साथ गले से गले मिलते हुए ‘तू मेरा भाई’ का मैसेज दे रहे थे और इधर चीन द्वारा हमारे डोकलाम इलाके में करीब आठ नए गांव बसाए जाने की सैटेलाइट तस्वीरें सामने आ रही थीं। यह इस बात का एक और उदाहरण है कि चीन किस कदर कपटी, धोखेबाज और धूर्त है। भूटान से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक, चीन भारतीय सीमा पर कृत्रिम गांव बसाने से लेकर सड़क, पुल और हवाई अड्डे बनाने तक हरकतें कर रहा है और यह कोई नई बात नहीं है। सैटेलाइट तस्वीरों से चीन की ये करतूतें सामने आई हैं। बदले में हमारे हुक्मरान ‘यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा’ जैसे कागजी तीर चलाते हैं, लेकिन इन तीरों को चीनी ड्रैगन फेंक देता है और भारतीय सीमाओं पर अपनी कारस्तानियां जारी रखता है। अब भूटान के साथ-साथ डोकलाम क्षेत्र में भी जो चीनी करतूतों में उफान आया है, वे चीन की इसी लालची और दुस्साहसवादी नीति का हिस्सा हैं। अभी दो सप्ताह पहले ही हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने लोकसभा में जानकारी दी थी कि
संबंधों में थोड़ा-बहुत सुधार
हो रहा है। जयशंकर ने दावा किया था कि (एओसी) एक्चुअल लाइन ऑफ कंट्रोल पर शांति कायम करने में सफलता मिली है। पिछले चार साल से इस इलाके में दोनों देशों के बीच लगातार तनावपूर्ण माहौल बना हुआ है। गलवान घाटी में सैनिकों के बीच हुई भीषण मुठभेड़ से ऐसे हालात बन गए थे कि जैसे दोनों देशों के बीच और कटुता बढ़ जाएगी। लेकिन हाल के महीनों में मोदी सरकार बड़े जोर-शोर से दावा कर रही है कि करीब दो दर्जन दौर की बातचीत और अन्य बैठकों से सीमावर्ती इलाकों में यह माहौल ठीक हो गया है। अक्टूबर महीने में भारत और चीन दोनों ने अपनी सेनाएं हटा लीं और अप्रैल २०२० की स्थिति बहाल कर दी। इस घटना को लेकर भी मोदी सरकार ने खूब ढिंढोरा पीटा था। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी चीन के रक्षा मंत्री डोंग जून से मुलाकात की और कहा कि पूर्वी लद्दाख में स्थिति ‘सकारात्मक’ हो गई है। मोदी सरकार ने डंका बजाते हुए इस तरह से शेखी बघारी थी कि जैसे चीन को सैन्य वापसी समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर कर ‘लंका जीत’ ली! मोदी भक्त यूं अकड़ रहे थे कि चीनी राष्ट्रपति
मोदी के ‘५६ इंच’ सीने से डर गए
और उन्होंने डील पर हस्ताक्षर कर दिए, लेकिन चीन तो चीन है। साफ है कि उसकी पूंछ टेढ़ी ही रहेगी। गले मिलने पर गला काटने और विश्वासघात करने की चीन की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। भले ही आप चीनी राष्ट्रपति को साबरमती नदी के किनारे झूले पर बैठाकर फाफड़ा-जलेबी खिला दें, फिर भी भूटान से लेकर अरुणाचल तक भारतीय क्षेत्र को निगलने की उनकी राक्षसी महत्वाकांक्षा लेशमात्र कम नहीं होगी। चीन हमारे साथ सैन्य वापसी समझौते का दिखावा करेगा और दूसरी ओर सीमाओं पर भारत विरोधी कारस्तानी जारी रखेगा। अब भी, जबकि मोदी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के ‘गले मिलने’ का ढिंढोरा पीट रही है और चीन द्वारा हमारी सीमाओं पर २२ गांव बसाए जाने की सैटेलाइट तस्वीरें सामने आ गई हैं। यह महज एक संयोग नहीं, बल्कि चीनी ड्रैगन का असली चेहरा है। एक ओर वह भारतीय हुक्मरानों के साथ ‘गले लगता’ और दूसरी ओर विश्वासघात कर भारत की पीठ पर खंजर घोंप देता है। चीन है ही ऐसा! हमें समय-समय पर इसका बुरा अनुभव हुआ है। तो सवाल चीनियों का नहीं, बल्कि भारत-चीन रिश्ते सुधर गए हैं के ‘क्लोरोफॉर्म’ के असर में गाफिल मोदी सरकार का है!