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संपादकीय: ‘इंडिया’ जीतेगा!

२०२४ का खेल शुरू हो चुका है। मुकाबला तगड़ा होगा, माहौल से कुल मिलाकर ऐसा ही नजर आ रहा है। पटना के बाद सभी देशभक्त पार्टियों की बंगलुरु में बैठक हुई और २६ पार्टियों के गठबंधन को एक नया नाम दिया गया, ‘इंडिया’। गठबंधन को अब मजबूत नाम ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस’ संक्षेप में ‘इंडिया’ ऐसे जोरदार नाम से यह गठबंधन जाना जाएगा। हिंदुस्थान के संविधान के अनुच्छेद- १ में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ‘इंडिया’ अर्थात भारत है। यह कई राज्यों का एक ‘संघ’ होगा। भारत में कई राज्य, उनमें भाषा और संस्कृति में विविधता होगी, फिर भी देश एक संघ है। वैसे ही ‘इंडिया’ एक संघ है। ‘इंडिया जीतेगा, भाजपा हारेगी’ के नारे अभी से सुनाई देने लगे हैं। ‘जुड़ेगा भारत, जीतेगा इंडिया’ अगला नारा है। राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा से देश में एकता और प्रेम का माहौल बना। इसलिए ‘भारत’ के ‘संघ’ देश में तानाशाही को नष्ट करके लोकतंत्र और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए काम करेगा। ‘इंडिया’ एक विजेता संघ है और इंडिया को पराजित करने का ख्याल किसी के मन में नहीं आएगा, लेकिन अच्छी और पवित्र चीजों में रुकावट होती ही है। बंगलुरु में ‘इंडिया’ संघ की बैठक शुरू होते ही भारतीय जनता पार्टी ने अपने ‘एनडीए’ गुट को लामबंद करना शुरू कर दिया और दिल्ली में बैठकें आयोजित कीं। कल तक, इस टोली ने ‘एनडीए’ को कचरा बनाकर फेंक दिया था। ‘मोदी सरकार’, ‘भाजपा सरकार’ ऐसे ढोल बज रहे थे। इस दौरान ‘भाजपा इस बार ४०० पार’ जैसे नारे दे रही थी, लेकिन ‘इंडिया’ संघ को मिल रहे समर्थन ने इन्हीं लोगों ने प्राणहीन बना दिए गए ‘एनडीए’ में जान फूंकने का प्रयास शुरू हो गया है, जो लोग एनडीए को खत्म करने जा रहे थे उन्हें फिर से ‘एनडीए’ बनाना पड़ा, यही ‘इंडिया’ टीम का पहला विजयी छक्का है। एक समय एनडीए में शिवसेना, अकाली दल, जनता दल यूनाइटेड, इतना ही नहीं बल्कि तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक जैसे बलशाली पार्टियां भी थीं। लेकिन आज एनडीए के मंच पर सब सूखे हुए केले और यहां-वहां से नोचे हुए पौधे ही नजर आते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने एक मजेदार बात कही है। ‘इंडिया’ संघ पर हमेशा की तरह टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, ‘यह गठबंधन मजबूत नहीं बल्कि मजबूरी है, जिन्होंने आजीवन वैचारिक विरोध किया, उनके साथ ही गठबंधन करने का यह प्रयोग देश की जनता देख रही है। भ्रष्टाचार के इरादे से जब युति बनती है, तब वह देश को अधिक नुकसान पहुंचाती है।’ मोदी ने एक तरह से ‘एनडीए’ की ओर ही उंगली उठाई है। मोदी ने भ्रष्टाचार की बात छेड़ी, परंतु उन्हीं के मंच पर भ्रष्टाचार के कीचड़ दिख रहे थे। कल तक जिन पर भ्रष्टाचार के, लूटमार के आरोप लगाए, ‘एनसीपी’ के उन्हीं नेताओं की टोली मोदी के साथ सटकर बैठी थी। शिंदे गुट में भी सब नामी भ्रष्ट हैं। वो शिंदे भी ‘एनडीए’ के मंच पर नजर आए। एनसीपी छोड़ते समय प्रफुल्ल पटेल ने कहा था कि ‘विपक्ष की बैठक के लिए पटना गया था तो उनमें एक पार्टी ऐसी थी, जिसका एक भी सांसद नहीं था।’ लेकिन अब मोदी के नए एनडीए में २४ पार्टियां ऐसी हैं कि जिनका एक भी सांसद नहीं है। फिर अब वही पटेल वहां वैâसे गए? नए ‘एनडीए’ में शिंदे व अजीत पवार के बागी गुट को बुलाया गया। उनकी पार्टी का पैâसला अभी होना बाकी है। सर्वोच्च न्यायालय ने तो शिंदे और उनके गुट को अपात्र ठहराया है। अजीत पवार के गुट का भी वही हाल होगा। ऐसे असंवैधानिक लोगों को एकत्र करके मोदी ‘इंडिया’ से लड़ने का प्रयास कर रहे हैं। यही उनकी बेबसी और एक प्रकार से मजबूरी है। मोदी को २०२४ के लिए एनडीए का जीर्णोद्धार करना पड़ा। इसका अर्थ ये है कि भाजपा व मोदी की शक्ति, लोकप्रियता घट गई है। भाजपा के लिए अब अपने दम पर चुनाव लड़ना कठिन हो रहा है। इसलिए उन्हें मजबूरी में एनडीए का गट्ठर बनाकर भ्रष्टाचार के दाग वाले कलंकितों को साथ लेना पड़ रहा है। इस वजह से अपने राजनीतिक विरोधियों पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने से पहले खुद के आस-पास एक बार नजर घुमा लें। २६ राजनीतिक पार्टियां एक साथ आकर ‘इंडिया’ नामक देशभक्तों का संघ बनाती है। आमतौर पर किसी को भी महत्व न देनेवाले मोदी ‘इंडिया’ के खिलाफ प्रतिकार के लिए खड़े होते हैं। अर्थात ‘इंडिया’ ही जीत रहा है। ‘इंडिया’ अवश्य ही जीतेगा। तानाशाही और मनमानी की पराजय होगी। बंगलुरु की बैठक का यही परिणाम है!

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