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संपादकीय : महंगाई और तंगी …तो हवा-पानी खाओ!

गणेशोत्सव से ठीक पहले जीवनोपयोगी चीजों की महंगाई की चपत आम लोगों को लगनी शुरू हो गई है। कुछ दिनों पहले गैस सिलिंडर की कीमत में कटौती करके केंद्र सरकार ने महंगाई कम करने का बड़ा दिखावा किया था। लेकिन इसकी धूल अभी तक हटी नहीं थी कि दाल से लेकर शक्कर तक सभी चीजों की कीमत ने उछाल लेना शुरू कर दिया है। शक्कर की कीमत पिछले छह सालों में सबसे ऊंचाई पर पहुंच चुकी है। पिछले १५ दिनों में शक्कर की कीमत तीन प्रतिशत बढ़कर प्रति किलो ४०-४१ रुपए से बढ़कर ४५ रुपए तक पहुंच गई है। गणेशोत्सव से ठीक पहले आम लोगों का मुंह शक्कर की महंगाई ने कड़वा कर दिया है। संपूर्ण अगस्त महीने में बरसात ने डांडी मारी, जिसके चलते कई दिनों में खेत में ही गन्ने की फसल जल गई है। राज्य के लगभग सभी जिलों में खरीफ की फसल अन्नदाता किसानों के हाथों से लगभग निकलती दिख रही है। खेत में लहलहाने से पहले ही गन्ने की फसल के जल जाने से शक्कर की कमी और महंगाई यह दोहरी मार आम आदमी को झेलना पड़ेगा। वहीं दूसरी ओर पड़ोसी राज्य कर्नाटक में भी इस बार बारिश की अवकृपा है। वहां भी गन्ने की फसल पर संकट मंडरा रहा है। इसलिए २०२३-२४ के मौसम में शक्कर के कुल उत्पादन में तीन-चार प्रतिशत की कमी हो सकती है। इसलिए यदि भविष्य में शक्कर की कमी होगी तब आम व्यक्ति के लिए शक्कर कितनी ‘कड़वी’ होगी, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि के बाद जैसे सभी क्षेत्रों में महंगाई बढ़ जाती है, यही हाल शक्कर की महंगाई से हो सकता है। इसका मतलब यह है कि इतना होने के बावजूद राजनेताओं को आगामी चुनाव में अपना क्या होगा, इसी बात की चिंता घेरे हुए है। शायद इसीलिए फलां वस्तु की कीमत बढ़ी तो, सीधे निर्यात पर पाबंदी का आसान उपाय लागू कर देना, यही कुछ दिनों से चल रहा है। पिछले महीने प्याज के मामले में यही हुआ। देश के अंतर्गत गोदामों में प्याज की संख्या बढ़े, मूल्य नियंत्रण में रहे, इसी के नाम पर केंद्र सरकार ने प्याज के निर्यात शुल्क में लगभग ४० प्रतिशत वृद्धि करने का नाटक किया। लेकिन इसका फायदा न तो प्याज उत्पादक किसानों को हुआ और न ही आम लोगों को। राज्य के ‘उप’ प्रमुख द्वारा सरकारी प्याज खरीदी का जापान से छोड़ा गया गुब्बारा ही फुस्स साबित हुआ। इसी दौरान टमाटर २०० से २५० रुपए तक पहुंच गया था। लेकिन राज्य चलानेवाले हाथ में हाथ बांधे और चुप्पी साधे आराम से बैठे रहे। अब शक्कर की आसमान छूती कीमत के बावजूद सरकारी स्तर पर कहीं कोई हलचल दिखाई नहीं दे रही है। हो सकता है कि शक्कर के मामले में भी निर्यातबंदी का आसान तरीका इस्तेमाल किया जा सकता है। शक्कर के अलावा चावल, ज्वारी, दाल और अन्य अनाज की कीमतें भी आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गई हैं। तुअर दाल की कीमत चार दशकों में सबसे ऊंचाई पर पहुंच गई है, जिस वजह से ग्राहकों ने अब इससे हाथ जोड़ लिया है। चना दाल की भी यही स्थिति है। ज्वारी, चावल की कीमतें ९ से १५ प्रतिशत तक बढ़ गई हैं। पहले टमाटर, फिर प्याज, अब शक्कर, दाल, चावल, ज्वारी जैसे महंगी होती जा रही वस्तुओं की सूची बढ़ने लगी है। उस पर भी देश के बृहद क्षेत्र में अकाल के बादल मंडरा रहे हैं। इसलिए तंगी का भी साया है। जीवनोपयोगी वस्तुओं की महंगाई और भविष्य में होनेवाली तंगी के चलते किसान चिंता में, आम आदमी हैरान और व्यापारी परेशान जैसी वर्तमान स्थिति देश की हो गई है। लेकिन केंद्र के राजनेता जी-२० के ‘अंतर्राष्ट्रीय आनंद’ में और राज्य के सत्ताधारी आत्मानंद में मग्न हैं। आनेवाले समय में आम आदमी की थाली से सभी जीवनावश्यक चीजें गायब हो जाएंगी। लेकिन ‘टोमेटो’ नहीं खाए तो क्या बिगड़ जाएगा?’ ऐसा ऊलजलूल सवाल करनेवाले शासक जनता को ‘शक्कर, दाल-चावल नहीं है तो हवा-पानी खाइए’ ऐसी सलाह दे सकते हैं। रोम जलते समय बांसुरी बजानेवाले और ‘रोटी’ नहीं है तो केक खा’ ऐसा कहनेवाले शासक यदि सत्ता में हों तो उनसे दूसरी क्या उम्मीद करेंगे!

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