देश के विद्वान गृहमंत्री अमित शाह ने आखिरकार विवादित उद्योगपति गौतम अडानी पर अपना मुंह खोल दिया है। जिस किसी के पास भी अडानी के संबंध में कोई सबूत है तो वह कोर्ट में जाए। बिना वजह आरोप लगाने से क्या फायदा? ऐसी बहुमूल्य सलाह उन्होंने दी है। बेवजह आरोप लगाने से क्या फायदा? यह कहते हुए केंद्रीय गृहमंत्री ने देश के सबसे बड़े भ्रष्टाचार पर एक तरह से कवच कुंडल ही डाल दिया। श्री शाह ने एक और मजेदार बयान दिया। उन्होंने मजाक में ऐसा कहा कि उसके आगे सभी कॉमेडी शो फीके पड़ जाएं। उन्होंने कहा कि सीबीआई, ईडी जैसी संस्थाओं का काम काफी निष्पक्ष तरीके से चल रहा है। श्री शाह का यह बयान केंद्र सरकार के दिमाग में जो केमिकल लोचा हुआ है, उसका सबूत है। अडानी के खिलाफ कोर्ट जाओ, ऐसा गृहमंत्री अमित शाह कहते हैं तो इस समय ईडी आदि निष्पक्ष संस्था क्या कर रही हैं? यह सवाल है। अडानी के खिलाफ लोग कोर्ट जाएं, लेकिन उसी वक्त कानून मंत्री श्री रिजिजू सार्वजनिक तौर पर अदालतों को धमकी दें। रिजिजू न्यायपालिका के खिलाफ बेलगाम बोल रहे हैं। ‘कुछ सेवानिवृत्त जज भारत विरोधी गैंग में हैं और उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। ये रिटायर्ड जज न्यायपालिका को सरकार के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं और इसकी उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। ऐसी धमकी भरी भाषा न्यायाधीश के बारे में देश के कानून मंत्री बोलें, इसे भारतीय लोकतंत्र का दुर्भाग्य कहा जाना चाहिए। मूलरूप से देश विरोधी का क्या अर्थ है और इसमें कौन शामिल हुआ? जिन्हें लगता है कि सरकार के फैसले के खिलाफ राय व्यक्त करना देशद्रोह का कार्य है, वे सभी लोकतंत्र और स्वतंत्रता के विरोधी हैं। इसलिए देश के गृहमंत्री और कानून मंत्री ‘लोकतंत्र’, ‘आजादी’, ‘तटस्थता’ आदि शब्दों का प्रयोग कर जो भ्रम पैदा कर रहे हैं, वह मानने योग्य नहीं है। चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए समिति गठित करने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का भी कानून मंत्री रिजिजू ने विरोध किया था। इसमें हैरान होने की कोई बात नहीं है। चुनाव आयोग ऐसा बर्ताव कर रहा है, जैसे वह भाजपा का घरेलू नौकर हो। भारतीय जनता पार्टी की जीत में चुनाव आयोग का बड़ा योगदान है, इसका खुलासा अब हो चुका है। दुनिया के तमाम देशों ने ‘ईवीएम’ से चुनाव कराना बंद कर दिया है। क्योंकि इसमें घोटाले हो रहे हैं, लेकिन सिर्फ हिंदुस्थान में ‘ईवीएम’ चल रही है। क्योंकि भाजपा बिना घोटाले के नहीं जीत सकती। चुनाव आयोग के जरिए पार्टी तोड़ी गई। सरकारें गिराकर और उन्हें चाहिए वैसी सरकार बनाने के लिए एक ठेकेदार के रूप में चुनाव आयोग फिलहाल भाजपा की मांडलिक की भूमिका निभा रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पर हथौड़ा चलाने पर कानून मंत्री ने विरोध किया। यदि चुनाव आयोग स्वतंत्र व निष्पक्ष नहीं है तो देश में चुनाव और उससे बनने वाली सरकारें भी निष्पक्ष नहीं हो सकतीं। पिछले सात वर्षों में देश की सभी एजेंसियों, निकायों को या तो भ्रष्ट बना दिया गया है या फिर अपनी जेब में डालने का काम हुआ है। गौतम अडानी का हालिया मामला इस दृष्टिकोण से विचार करने जैसा है। गृहमंत्री कहते हैं, सबूत है तो कोर्ट जाएं। फिर राजनीतिक विरोधियों के मामले में ‘ईडी’, ‘सीबीआई’ ने पहले गिरफ्तारियां कीं और बाद में कोर्टबाजी की। गिरफ्तार करने के लिए झूठे सबूत गढ़े। पांच-पचास लाख के लेन-देन के लिए विपक्षियों को गिरफ्तार किया गया तब अमित शाह ने ‘पहले कोर्ट में जाएं’ की सलाह नहीं दी, लेकिन गौतम अडानी के मामले में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह विपक्ष से सबूत मांग रहे हैं। अगर अडानी के खिलाफ सबूत है तो विपक्ष कोर्ट जाए, ऐसा केंद्रीय गृहमंत्री का कहना और उससे पहले कानून मंत्री का कोर्ट को धमकाकर मुक्त हो जाना। यानी कल कोई उद्योगपति अडानी के खिलाफ कोर्ट जाता है, इस मामले में न्यायाधीश ने कुछ रुख अपनाया और यदि यह सत्ता पक्ष को स्वीकार्य नहीं है, तो कानून मंत्री रिजिजू कहते हैं, उसी तरह उस न्यायाधीश को देश विरोधी गिरोह का सदस्य ठहराकर बदनाम किया जाएगा। यह देश के लोकतंत्र की वर्तमान स्थिति है। हिंदुस्थान में लोकतंत्र की हत्या हो रही है, ऐसा राहुल गांधी ने अपने विदेश दौरे के दौरान कहा। अब उन्हें भी देश विरोधी ठहराकर कीमत चुकानी पड़ेगी। राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता रद्द करने की अब हलचलें शुरू हो गई हैं। इसे क्या संकेत माना जाए? देश में लोकतंत्र के नाम पर ‘धमकी राज’ शुरू हो गया है। यह निराशा का आखिरी लक्षण हो सकता है।