जब अंत:करण भर आता है, तब हमारे मन में भावना और कल्पना को व्यक्त करने के लिए शब्द अपर्याप्त पड़ जाते हैं। महाराष्ट्र के सत्ता संघर्ष के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच द्वारा दिए गए फैसले का हम सम्मान करते हैं। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने राम शास्त्री की शैली में व्यवहार किया और निडरता से उनके द्वारा पढ़े गए फैसले से यह स्पष्ट हो गया, ‘राजनीति, सत्ता, संवैधानिक संस्थाएं भले ही मर गई हों, लेकिन न्याय मरा नहीं है!’ महाराष्ट्र में शिंदे की सरकार बनाते समय संसदीय आदर्श, सरकारी तंत्र, राज्यपाल, संवैधानिक प्रावधान जैसे सब कुछ पैरों तले रौंद दिया गया। अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि ‘उद्धव ठाकरे ने स्वेच्छा से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। अगर उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया होता तो उन्हें मुख्यमंत्री के पद पर बहाल करना संभव होता।’ यह बात देश के सर्वोच्च न्यायालय ने कही है। इसका मतलब आज के मुख्यमंत्री और उनकी सरकार को अवैध करार दिया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी बागी गुट मूल पार्टी पर दावा नहीं कर सकता। बागी गुट द्वारा नियुक्त किए गए प्रतोद भरत गोगावले अवैध हैं। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि शिवसेना के सुनील प्रभु ही असली प्रतोद हैं। तत्कालीन राज्यपाल की भूमिका संदिग्ध है। जो नहीं करना चाहिए था, वह उन्होंने किया। नई सरकार के गठन की अनुमति देते समय उनके द्वारा की गई कृति को भी सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक ठहरा दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया। यानी विश्वास मत प्रस्ताव के दौरान बहुमत परीक्षण को मंजूरी देना राज्यपाल की गलती थी और उससे बनी अवैध सरकार को शपथ दिलाना असंवैधानिक हो जाता है। आज महाराष्ट्र में सरकार पूरी तरह से ‘अपात्र’, असंवैधानिक साबित होने के बाद भी शिंदे-फडणवीस चेहरे पर गुलाबी मेकअप करके कह रहे हैं, ‘हम ही जीते!’ विधायकों की अयोग्यता का निर्णय विधानसभा अध्यक्ष लेंगे, ऐसा सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है। लेकिन उनका गुट नेता अवैध, व्हिप अवैध और उनकी सरकार को मतदान करने का आदेश भी अवैध। ऐसे समय पर कानून के पंडित विधानसभा अध्यक्ष कानून और संविधान की हत्या करके क्या सरकार को बचाएंगे? श्री फडणवीस वकील हैं। वे बेहद गलत तरीके से राजनीतिक सुविधा का अर्थ इस फैसले का निकाल रहे हैं। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री की तरह फडणवीस की वकील की डिग्री पर भी कल लोग संदेह करने लगेंगे। लोकसभा हो या विधानमंडल, ये निकाय देश और राज्य की सार्वभौम आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। सदन के अध्यक्ष के पद पर आसीन व्यक्ति पर ही संसदीय लोकतंत्र की सफलता निर्भर रहती है। विधानसभा की स्वतंत्रता और सच्चाई का जतन करने का कार्य विधानसभा अध्यक्ष के पद पर बैठे व्यक्ति को करना होता है। लेकिन लोकसभा और विधानसभा के अध्यक्ष ही अगर लोकतंत्र का उपहास उड़ाने का काम करेंगे तो उनका नाम देश के इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जाएगा। राज्यपाल द्वारा बहुमत परीक्षण के लिए दिया गया निर्णय गलत साबित हुआ और फिर भी उससे बनी सरकार सत्ता में आने जा रही है तो यह बेईमानी है। देवेंद्र फडणवीस इस बेईमानी की वकालत कर रहे हैं। वे गृहमंत्री हैं। वे राज्य के कानून व न्याय विभाग के मंत्री भी हैं। इसका मतलब सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय जो भी हो, हम उस फैसले की व्याख्या अपने तरीके से करेंगे और कुर्सियों पर चिपक कर बैठेंगे। संवैधानिक ढांचे का उल्लंघन करके जो सरकार राज्य में सत्ता पर विराजमान हुई है, वह असंवैधानिक साबित होती है। अब सवाल केवल १६ विधायकों की अयोग्यता का नहीं बचा है, बल्कि पूरी सरकार को ही अयोग्य ठहरा दिया गया है। नीचे गिरकर भी टांग ऊपर करके बोलनेवाले मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को यह बात समझनी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ का ऋण लोकतंत्र, संसदीय व्यवस्था नहीं भुला पाएगी। राजनीतिज्ञों द्वारा की गई बेईमानी पर उन्होंने तीखी टिप्पणी की, वे दबाव के आगे नहीं झुके। सरकारें आएंगी और जाएंगी, राजनीतिक उतार-चढ़ाव आते रहेंगे, लेकिन देश के संविधान और न्याय व्यवस्था में अभी भी ‘चंद्रचूड़’ हैं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने दिखा दिया है कि न्याय मरा नहीं है। यहां तक कि शिंदे और उनके बागी गुट का अंतर्वस्त्र भी सर्वोच्च न्यायालय ने उतार दिया, फिर भी ‘जितंमय्या’ के आवेश में वे नाच रहे हैं तो यह उनका सवाल है!