बीते महीने भर से हिंसाचार के दावानल में फंसा मणिपुर अभी भी शांत नहीं हो पाया है। राज्य के विभिन्न हिस्सों में हिंसाचार और आगजनी की घटनाएं घट ही रही हैं। इंफाल पश्चिम जिले के इरोसेंबा में हिंसक भीड़ ने मंगलवार को इसी तरह के हमले में एक एंबुलेंस को जला दिया। उस एंबुलेंस में एक मां अपने ८ साल के जख्मी बच्चे को अस्पताल ले जा रही थी। परंतु बीच में ही कुछ लोगों ने एंबुलेंस को रोक दिया और उसमें आग लगा दी। इस घटना में जख्मी लड़के, उसकी मां और साथ में मौजूद रिश्तेदार ऐसे तीन लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। ये तीनों मैतेई समाज से थे और फिलहाल असम रायफल के शिविर में रह रहे थे। हमलावर भीड़ ने एंबुलेंस में जख्मी बच्चे और उसकी मां के बारे में नहीं सोचा। अर्थात एक महीने के बाद भी मणिपुर में जातीय भावनाओं का आक्रोश कम नहीं हुआ है। मणिपुर की हिंसा में अब तक १०० लोगों की मौत हो चुकी है तो वहीं ३०० से अधिक लोग घायल हुए हैं। कुल २७२ राहत शिविरों में ३७ हजार ४५० से अधिक लोग रह रहे हैं। ये सब सुरक्षा तंत्र के रक्षा कवच में होंगे, फिर भी इरोसेंबा की भयंकर घटना से ये शरणार्थी सुरक्षित नहीं हैं, ऐसा स्पष्ट हो गया है। इसके अलावा मानवता, परस्पर प्रेम, दया के लिए कोई स्थान नहीं बचा है, यह भी दिखाई दिया है। अन्यथा घायल मासूम, उसे इलाज के लिए ले जानेवाली मां और रिश्तेदार ऐसे तीन लोगों की भीड़ द्वारा इतनी नृशंस हत्या नहीं की गई होती। दरअसल, बीते सप्ताह केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हिंसाग्रस्त मणिपुर का दौरा किया था। उन्होंने वहां की जनता से शांति की अपील की थी। उसे कुछ हद तक प्रतिसाद मिल रहा है, ऐसा भी कहा जा रहा था। लेकिन इस प्रतिसाद का बुलबुला इरोसेंबा की भयंकर घटना से फूट गया है। मणिपुर ईशान्य हिंदुस्थान में स्थित एक छोटा राज्य होगा फिर भी देश की सुरक्षा के नजरिए से वह बेहद महत्वपूर्ण प्रांत है। वहां भी आतंकी और अलगाववादी कई समूह काफी पहले से सक्रिय हैं। उन्हें हमारे पड़ोसी शत्रुदेश बरगलाते हैं। वे इन गुटों को हर तरह की मदद उपलब्ध कराते रहते हैं इसलिए मणिपुर का दीर्घकाल तक अशांत और हिंसा के दावानल में फंसना देश की सुरक्षा के दृष्टिकोण से असहनीय है। बीच के कुछ वर्षों में मणिपुर शांत हुआ है, ऐसा लग रहा था। सालों साल से विवादित साबित हुए ‘अफस्पा’ नामक कानून भी बीच में वापस ले लिया गया। इसलिए मणिपुर व्यवस्थित हो गया है, ऐसा महसूस होने के दौरान ही महीने भर पहले वहां अचानक आदिवासी बनाम गैरआदिवासी ऐसा संघर्ष भड़क उठा। आज भी उस दावानल में मणिपुर की आम जनता जल रही है। केंद्रीय गृहमंत्री द्वारा किसी भी तरह की हिंसक गतिविधि को सख्ती के साथ नाकाम करने का निर्देश मणिपुर की संबंधित एजेंसियों को दिए जाने के बाद भी हिंसा पूरी तरह से रुकी नहीं है। मणिपुर की हिंसक गतिविधियां आगजनी की घटनाओं में कमी आई है, ऐसा केंद्र सरकार का दावा है। उसमें कुछ हद तक सच्चाई होगी भी, परंतु मंगलवार को इरोसेंबा में एंबुलेंस को जलाकर उसमें निर्दोष मां-बेटे की बलि लेने की नृशंस घटना इस दावे पर सवालिया निशान लगाती है। मणिपुर में हिंसा पीडित कुकी समुदाय के लोगों को दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री के निवास के बाहर अपना डर, वेदना व्यक्त करने की नौबत आती है, इसका अर्थ ये है कि मणिपुर में जातीय विद्वेष का ज्वालामुखी आज भी धधक ही रहा है। आदिवासी और गैर आदिवासी के बीच तनाव की चिंगारी धधक ही रही है। मणिपुर और केंद्र में भाजपा की ही सरकार होने के बावजूद ये चिंगारी महीने भर बाद भी नहीं बुझी है। मणिपुर आज भी अशांत ही है। मणिपुर जैसे संवेदनशील सीमाई राज्य को शांति की पटरी पर वापस लाना एक चुनौती ही है। केंद्र के सत्ताधारी इससे कैसे पार पाते हैं, इस पर मणिपुर सहित ईशान्य हिंदुस्थान की शांति और स्थिरता निर्भर है।