क्या नरेंद्र मोदी में बदलाव होगा? (मतलब है क्या वे अब भी सुधरेंगे?) कई लोगों को अक्सर यह सवाल सूझता होगा। तीन बार प्रधानमंत्री पद पर बैठे इंसान को कम से कम देश को गुमराह करने और झूठ बोलने की आदत तो छोड़ ही देनी चाहिए, लेकिन मोदी तीसरी बार शपथ लेने के बाद भी बदलने को तैयार नहीं हैं। उनकी लफ्फाजी जारी है। बुधवार को राज्यसभा में उनका भाषण लफ्फाजी का एक आदर्श नमूना है। मोदी को लगा कि अब उन्हें विकास की बात करनी चाहिए। पिछले दस साल में कोई विकास नहीं हुआ। अगर मोदी देश के ८० करोड़ लोगों को हर महीने ५ किलो अनाज मुफ्त देने को विकास मानते हैं तो वे देश को धोखा दे रहे हैं। राज्यसभा सदस्य मनोज झा ने कहा, ‘ग्रामीण इलाकों में मजदूर नहीं मिलते। लोगों को घर बैठे मुफ्त अन्न मिल रहा है। इससे लोग आलसी हो रहे हैं। मजदूरों की कमी के कारण काम रखड़ रहे हैं।’ मोदी और उनकी सरकार ने गरीबी उन्मूलन के नाम पर करोड़ों लोगों को निठल्ला और आलसी बना दिया है। ऐसा लगता है कि मोदी की नीति यह है कि घर बैठो और मुफ्त में अन्न लो, बदले में हमें वोट दो। मोदी ने अपने भाषण में जो पतंगें उड़ार्इं वो भी सामान्य थीं। वही शराब, वही बोतल और क्या? मोदी ने भ्रष्टाचार मिटाओ का पुराना नारा दिया। भ्रष्टाचारियों और अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा। ईडी, सीबीआई के नाम पर यूं ही हंगामा मत करो। आश्चर्य होता है जब मोदी कहते हैं कि ये संस्थाएं अच्छा काम कर रही हैं। केंद्रीय जांच एजेंसियां भाजपा के घरेलू नौकर की तरह काम कर रही हैं। ये संस्थाएं यदि तटस्थता से काम करतीं तो उन्हें दोष देने का कोई कारण नहीं था, लेकिन पिछले दस वर्षों में ईडी, सीबीआई ने केवल विपक्षी दल के नेताओं पर छापे मारे, उन पर केस दर्ज किए, उन्हें गिरफ्तार किया। क्या यह सच नहीं है कि जब इनमें से कुछ प्रमुख ‘आरोपी’ भाजपा में चले गए तो उन्हें अभय मिल गया और कार्रवाइयां बंद हो गर्इं? ये मोदी ही थे जिन्होंने अजीत पवार और अशोक चव्हाण के हजारों करोड़ के भ्रष्टाचार पर हमला बोला था। ये दोनों नेता आज मोदी की गोद में बैठे हैं। ऐसे कई भ्रष्टाचारी आज मोदी के तंबू में सुख की नींद सो रहे हैं। फिर भी मोदी कहते हैं कि वे भ्रष्टाचारियों को नहीं छोड़ेंगे। केवल मोदी ही इतनी ढीठता से झूठ बोल सकते हैं। ईडी, सीबीआई, आयकर संस्थाएं पक्षपातपूर्ण हैं। कोर्ट ने खुद कहा कि अनिल देशमुख, संजय राऊत, हेमंत सोरेन के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का कोई सबूत नहीं है। ईडी कोर्ट का कहना है कि केजरीवाल को नाहक फंसाया गया, तो वैâसे मान लिया जाए कि ये संस्थाएं सरलमार्गी हैं और इन पर कोई राजनीतिक दबाव नहीं है? लेकिन मोदी बिंदास झूठ बोलते हैं। चुनाव प्रचार सभा में मोदी ने कहा कि अंबानी और अडानी टेंपो भरकर कांग्रेस को पैसे देते हैं। ये बात प्रधानमंत्री ने कही है तो ये सच होगा। क्या ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स ने अडानी, अंबानी को पूछताछ के लिए बुलाया? कम से कम मोदी को बुलाओ। इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में भाजपा ने कई कंपनियों को ‘ठेके’ देकर और उन्हें धमकाकर अपने खाते में हजारों करोड़ रुपए जमा कराए। भाजपा को पैसा देने वाली कई कंपनियों पर ईडी की कार्रवाई चल रही है। यानी यह अपराध का पैसा भाजपा ने ‘मनी लॉन्ड्रिंग’ के जरिए इकट्ठा किया और मोदी साहसपूर्वक भ्रष्टाचार को खत्म करने का दावा करते हैं। इसे ढोंग ही कहना चाहिए। मोदी गौहत्या और गौमांस एक्सपोर्ट कंपनियों से धन स्वीकार करते हैं और लोकसभा में हिंदुत्व पर प्रवचन झाड़ते हैं। मोदी का हिंदुत्व तो दरअसल अयोध्या में ही हार गया, क्योंकि सत्यवादी राम को भाजपा का झूठ स्वीकार नहीं था। मोदी अपने भाषणों में झूठ की पतंग उड़ाते हैं। उनकी झूठ की इन उड़ानों से लोग तंग आ गए। भले ही मतदाताओं ने मोदी के पैरों तले से बहुमत का गलीचा खींच लिया है, फिर भी मोदी सुधरने को तैयार नहीं हैं। मोदी को अकारण ही पचास साल पहले के आपातकाल ने परेशान कर रखा है। सच तो यह है कि मोदी के पास परेशान होने की कोई वजह नहीं है, क्योंकि उनके राज में आपातकाल से भी बदतर हालात चल रहे हैं। क्या मोदी इस बात को स्वीकार करते हैं कि १९७५ में विपक्षी नेताओं ने सैनिकों को सरकार के खिलाफ विद्रोह के लिए उकसाया था? मोदी अपने खिलाफ बनाए गए कार्टूनों को सहन नहीं कर सकते। वे कार्टूनिस्टों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दायर करते हैं। वहां तो देश की सेना को ही देश विरोधी कृत्यों के लिए आह्वान किया गया था। चरण सिंह और अन्य नेता कह रहे थे कि पुलिस को सरकारी आदेशों का पालन नहीं करना चाहिए और यह भयानक था। जॉर्ज फर्नांडिस ने बम बनाने का कारखाना खोल दिया था और वह इंदिरा गांधी को उड़ा देना चाहते थे। जब यह सब किया जा रहा था तो मोदी का सुझाव क्या है जो इंदिरा गांधी को करना चाहिए था? श्रीमती गांधी ने घोषित आपातकाल लगाया। एक तरह से मोदी के राज में तो ‘मार्शल लॉ’ जैसे हालात पैदा हो गए हैं। मोदी के पास सुधार करने का, खुद को दुरुस्त करने का मौका था, लेकिन यह मुश्किल लग रहा है।